रेल की पटरी सोच में बैठी थी मेरे पास स्थिरता तो है पर गति का सर्वथा अभाव है।
इंजन उदास खड़ा था। उसमें गति तो थी पर स्थिरता का न होना बहुत खल रहा था।
अपनी-अपनी अपूर्णता दोनों ने समझी और निश्चय किया परस्पर एक दूसरे के पूरक बनेंगे और मिलजुल कर काम करेंगे।
गतिरोध दूर हो गया और अभावजन्य असन्तोष भी चल गया। उसी दिन से लेकर पटरी और इंजन दोनों ही गौरवान्वित हो रहे हैं।