मनुष्य शरीर की चमत्कारी विद्युत शक्ति

November 1973

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मनुष्य के शरीर में विद्युत शक्ति का भण्डार भरा पड़ा है। उसी के आधार पर मस्तिष्कीय क्रियाकलाप, पाचन-तंत्र रक्ताभिषरण, आकुंचन , प्रकुञ्चन, मल विसर्जन निद्रा, जागरण आदि के विविध क्रियाकलापों का संचरण होता है। मन और बुद्धि की दौड़ में यही बिजली काम करती है। ओजस्, आत्मबल, मनोबल, साहस एवं प्रतिभा के रूप में इसी विद्युत शक्ति को विशिष्ट प्रयोजन पूरे करते हुए देखा जा सकता है।

साधारणतया मानवी शरीर में काम करने वाली बिजली चेतना स्तर की होती है। उसे प्राण कहते हैं। उसकी अपनी विशेषताएँ है। पर जिस तरह भौतिक बिजली झटका मारती है, चिनगारियाँ उत्पन्न करती है वैसा स्वरूप उसका नहीं होता। जड़-चेतन के अन्तर में इतना फर्क रहना तो स्वाभाविक भी है।

किन्तु कभी-कभी ऐसे प्रमाण भी सामने आते हैं जिनमें मनुष्य शरीर की बिजली- भौतिक बिजली की तरह काम करती देखी जाती है। झटका देने और चिनगारियाँ उत्पन्न करने का काम करते हुए भी कई बार मनुष्य शरीर पाये गये है। शरीर-विज्ञान के इतिहास में ऐसे अनेक विवरण उपलब्ध है, जिनसे सिद्ध होता है कि विशेष परिस्थितियों में शरीर की विद्युत शक्ति अपने सूक्ष्म स्वरूप में आगे बढ़कर स्थूल बिजली का भी रूप धारण कर लेती है और जिस प्रकार किसी शक्तिशाली बैटरी, मैगनेट या जनरेटर की समीपता से आघात का अनुभव होता है वैसे ही उन शरीरों का स्पर्श करने से भी अनुभव होता है। ऐसी घटनाएँ इतिहास में थोड़ी सी ही है पर है अवश्य।

सोसाइटी आफ फिजीकल रिसर्च की रिपोर्ट है कि केवल अमेरिका में ही 20 से अधिक बिजली आदमी है। शोधकर्ता कोलराडो निवासी डा. डब्ल्यू. पी. जोन्स के अपने सहयोगी डा. नार्मन लोग के साथ इस संदर्भ में लम्बी शोध की और इस नतीजे पर पहुँचे कि शरीर की कोशिकाओं के नाभिकों की बिजली उनके आवरण ढीले पड़ने के कारण बाहर फैलने लगती है तब उस शरीर के ऊपर परत पर बिजली का प्रवाह दौड़ने लगता है। वस्तुतः नाभिकों में अनन्त विद्युत शक्ति का भण्डार तो पहले से ही है।

शोधकर्ता जोन्स स्वयं ही एक विद्युत मानव ही थे, वे नंगे पैरों धरती पर चलकर भू-गर्भ की धातु खदानों का पता लगाने में आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त करते रहे। धातुओं से बनी वस्तुएं अपने आप उचकने खिसकने लगती और सोते हुए बच्चे झटका लगने से डरकर चिल्लाने लगते। यह विद्युत प्रवाह उसके स्वयं के लिए और घर वालों के लिए एक समस्या बना रहा। दर्शकों और अन्वेषकों का कौतूहल अवश्य रहा।

अमेरिका के मोन्टाना राज्य के अंतर्गत मेडालिया नगर में जेनी मोरेन नामक लड़की के शरीर में ऐसी विद्युत शक्ति थी कि जो उसे छूता जोरदार झटके का अनुभव करता। अँधेरे में उसका शरीर स्पष्ट प्रकाशवान दिखाई पड़ता। अँधेरी रात में वह अपने शरीर से निकलने वाले प्रकाश के सहारे ही रास्ता तय कर लेती और उसके साथ वाले भी किसी जीवित लालटेन के साथ चलने का अनुभव करते।

अमेरिका में डेनी मोरेन नामक युवती चलता-फिरता बिजली घर थी। एक लड़के से उसने दोस्ती जमाने की कोशिश की तो युवक एन्थोनी एस्क्रम्पूर छूते ही झटका खाकर औंधे मुँह खाकर गिर पड़ा और बिजली के प्रवाह से उसकी अँगूठी में जड़ा हुआ चमकीला नग काला पड़ गया। इससे पूर्व उससे प्यार करने के चक्कर में एक बिल्ली अपनी जान गँवा चुकी थीं। उसके स्पर्श मात्र से 100 वाट का बल्ब जल उठता था। धातु से बनी वस्तुओं को वह छू नहीं पाती थी। जैसे ही ऐसी कोई वस्तु छूती उसके शरीर में चिपक जाती और फिर उसे छुड़ाना कठिन हो जाता। यह लड़की 30 वर्ष की आयु तक जी और एकान्त कमरे में उसने कैदी का जीवन बिताया। वह किसी दूसरे कमरे में घुसती तो बत्तियाँ अपने आप जलने लगती।

कनाडा के स्वास्थ्य इतिहास में ओण्टोरयो क्षेत्र के अंतर्गत बोण्डन की एक 17 वर्षीय लड़की का वर्णन है जिसके शरीर में से बिजली की धारा निकलती थी। जो भी उसे छूता झटका अनुभव करता। उसके कमरे में प्रवेश करने वाला व्यक्ति मस्तिष्कीय दृष्टि से अपने को अशक्त अनुभव करने और झपकी लेने लग जाता था।

मास्को निवासी कुमारी नेल्सा माइखेलोवा नामक रूसी महिला को ऐसी शक्ति प्राप्त है कि वह अपनी तीखी नजर का प्रयोग करके चलती हुई घड़ी की चाल रोक देती है- उसे तेज या मंद कर देती है। कम्पास की सुई को इधर-उधर कर देती है। इतना ही नहीं, मेज़ पर रखी वस्तुओं को वह बिना छुए इधर से उधर कर देती है।

रूस के प्रमुख समाचार पत्र ‘प्रावदा’ के संवाददाता ने नेल्सा से भेंट की तो उसने अपने चमत्कार दिखाये। कारण और रहस्य बताते हुए उसने इतना ही कहा- यह अत्यधिक एकाग्रता और इच्छा-शक्ति के प्रयोग का प्रतिफल है। उसके करतबों की फिल्म ली गई है, ताकि वैज्ञानिक उसका अध्ययन कर सके। वैज्ञानिकों ने इसे मस्तिष्कीय विद्युत की गुरुत्वाअकर्षण तथा इलेक्ट्रो मैगनेटिक शक्ति की विद्यमानता निरूपित किया है। इस संदर्भ में अधिक विचार करने वाले अन्वेषकों का कहना है कि इस प्रकार की विद्युत शक्ति मनुष्य के पास मौजूद है और वह नेल्सा की तरह देर तक अभ्यास करने के बाद उसे विकसित करने में सफलता प्राप्त कर सकता है।

फ्रांस के मेडिकल टाइम्स एण्ड गजट में एक ऐसे बच्चे की रिपोर्ट छपी थी, जिसके शरीर में झटका देने जितनी बिजली प्रवाहित होती थी। लियोन्स नगर में उत्पन्न हुआ यह बच्चा 10 महीने जिया, उसे इतने दिनों बहुत सावधानी से जिन्दा रखा जा सका। क्योंकि उसे छूते ही जमीन पर पटक देने वाला झटका लगता था। उसके स्पर्श में आने वाले सभी उपकरण लकड़ी, काँच आदि के थे और कपड़े रबड़ के पहनाये गये थे। जब वह मरा तो 10 सेकेंडों तक उसके शरीर से हल्की नीली प्रकाश किरणें निकलती देखी गई।

फ्राँस के जोलिया क्षेत्र में सोंदरवा कस्बे में जन्मे एक ऐसे बालक की रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग ने नोट की है, जिसके शरीर से बिजली की तरंगें उठती थी। जब वह मरने लगा तो डाक्टरों ने प्रकाश की तीव्र किरणें निकलती और अन्ततः मंद होकर समाप्त होते देखी थी।

आस्ट्रेलिया से एक बाईस वर्षीय युवक न्यूयार्क इलाज कराने के लिये लाया गया था। उसके शरीर की स्थिति बिजली की बैटरी जैसी थी। जब यह बिजली मंद पड़ जाती तो वह बेचैनी अनुभव करता। जिन चीजों में फास्फोरस अधिक होता उन मछली सोव आदि पदार्थों को ही वह रुचि पूर्वक खाता था, सामान्य लोगों का आहार तो वह मजबूरी में ही करता था।

कोलोराडो क्षेत्र के अंतर्गत लेडबिली निवासी डब्ल्यू. पी. जोन्स नामक व्यक्ति के शरीर में कुछ ऐसी विशेषता थी कि वह जमीन के नीचे की धातुओं को अपने शरीर में उत्पन्न होने वाली सनसनी के आधार पर पहचान लेता। भिन्न प्रकार की धातुओं के कारण उसके शरीर में भिन्न प्रकार की सनसनी होती थी। उस अनुभव के आधार पर वह यह बता देता था कि जहाँ वह खड़ा है, उसके नीचे अमुक धातु की खदान इतनी गहराई पर है। पहले तो उसके इस कथन का मजाक उड़ाया जाता रहा। पीछे जब उसकी बात खरी उतरी तो कई भू-स्वामियों ने उसकी सहायता से खदानें पाई, जिनमें सोने की खाने भी शामिल थी। जोन्स को इसमें हिस्सा मिला और उसने प्रसिद्धि के साथ साथ सम्पत्ति भी कमाई।

रूस के भौतिक शास्त्री प्रो. लाखसोव ने मनुष्य शरीर से निकलने वाले विद्युत स्फुल्लिंगों को टिमटिमाते दीपकों की तरह अपने विशेष यंत्र पर अंकित किया। वैसे खुली आँखों से इस प्रकार का प्रकाश दिखाई नहीं पड़ता, फिर भी उसका अस्तित्व होता है और मशीनों की सहायता से उसे देखा जा सकता है।

इस प्रकार की घटनाएँ अन्यान्य देशों में हुई होगी, पर वे शोधकर्ताओं व वैज्ञानिकों की जानकारी में न पहुँचने से अविज्ञात ही बनी रही होगी। कई बार उन्हें भूत-प्रेत या कोई रोग विशेष समझकर उपेक्षित कर दिया होगा। चूँकि इस प्रकार के प्रवाहों का घटना-बढ़ना उस व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक स्थिति पर भी निर्भर करता है। इसलिए ऐसा भी हो सकता है कि किसी व्यक्ति में यह शक्ति उभरी हो, किन्तु उसे विभिन्न परिस्थितियों में रहने के कारण उस विशेषता से वंचित रहना पड़ा हो।

दक्षिण पूर्व अमेरिका की नदियों में पाई जाने वाली ‘इल’ नामक मछली में डेढ़ सौ अश्व-शक्ति तक की बिजली पाई जाती है। यदि इसका ठीक तरह से उपयोग किया जा सके तो इतनी ताकत से एक अच्छा-खासा कारखाना चल सकता है। वह अपनी इस शक्ति को आवश्यकतानुसार घटा बढ़ा लेती है। इस शक्ति का उपयोग वह अपने शिकार पर या शत्रु पर आक्रमण करने के लिए करती है। ज वजह झटका खाकर मूर्च्छित हो जाता है तो इल उसे आसानी से उदरस्थ कर लेती है। इस प्रकार का अद्भुत शरीर विद्युत धारण किये हुए अन्य कितने ही पशु-पक्षी तथा छोटे कीड़े-मकोड़े पाये जाते हैं।

मानवी विद्युत झटका भले ही न मारती हो, पर उसकी चेतना युक्त प्रभावशाली शक्ति असाधारण होती है। किन्हीं-किन्हीं का व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक और मोहक होता है, उनकी आँखें और मुखाकृति सहज ही दूसरों का मन अपनी ओर खींचती है। इसमें रंग- रूप की बनावट उतना कारण नहीं होती, जितनी कि व्यक्तित्व में से ओतप्रोत आकर्षण चुम्बकीय शक्ति।

शरीर में यह मानवी विद्युत आकर्षक व्यक्तित्व के रूप में देखी जाती है और मन क्षेत्र में उसका उभार, साहस, विवेक, संतुलन, मुस्कान आदि के गुणों के रूप में देखा जाता है। मनोबल, ओज, शौर्य के रूप में जब वह विकसित होता है तो समीपवर्ती लोगों पर गहरी छाप छोड़ती है। लोग उसका अनुगमन करने और आदेश मानने को बाध्य होते हैं।

शरीर, मन और अन्तः करण में काम करने वाली विद्युत शक्ति के अभिवर्धन और सदुपयोग का विधान प्रक्रिया का नाम ही योग-साधना है। विभिन्न प्रकार के तप-साधन इसी प्रयोजन के लिए किये जाते हैं। प्राणवान व्यक्तियों के समीप रहकर उनके विद्युत प्रवाह का लाभ उसी प्रकार उठाया जा सकता है कि चन्दन वृक्ष के समीप उगे हुए झाड़-झंखाड़ भी सुगन्धित युक्त होने का लाभ उठाते हैं। मौन, एकांत सेवन और ब्रह्मचर्य जैसी साधनाएँ इसलिए है कि वह विद्युत भण्डार निरर्थक कार्यों में खर्च न होकर संग्रहित रखा जा सके। महान व्यक्तित्वों का सान्निध्य सम्पर्क अपने आप में एक बड़ा लाभ है। बिना सत्संग और परामर्श के भी ऐसा सम्पर्क स्वल्प प्राण व्यक्तियों के लिये अमृत वर्षा जैसा अति महत्वपूर्ण अनुदान प्रस्तुत करता है। स्पष्ट है कि आग और बिजली के सम्पर्क में आने वाली वस्तुओं में यदि ग्रहण करने की शक्ति हो तो वे भी उसी स्तर की बन जाती है।

प्रयत्न करने पर यही चेतन चुम्बकत्व के - आत्मबल के रूप में विकसित हो सकता है और आगे चलकर योग साधना की सिद्धियों और देव अनुग्रह से मिलने वाली विभूतियों के रूप में सामने आता है। तपश्चर्या तितीक्षा और कष्टसाध्य साधना पथ पर दूर तक चल सकना, इस आत्मबल के सहारे ही सम्भव होता है। विकसित स्तर का यही आत्मतेज सूक्ष्म जगत में काम करने वाली दिव्य शक्तियों को खींच लाता है और उस व्यक्ति की हथेली पर लाकर रख देता है।


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