बुढ़ापा प्रगति में बाधक नहीं होता

November 1973

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ऋतुओं की तरह शरीर में भी समयानुसार परिवर्तन होते हैं। परिवर्तनों में पिछली स्थिति की तुलना में कुछ अच्छाई होती है कुछ बुराई। सर्दी और गर्मी की तुलना की जाय तो दोनों में कुछ अपना महत्व होगा ओर कुछ कठिनाई जुड़ी होगी। जवानी और बुढ़ापे की तुलना भी इसी प्रकार है। जवानी में शरीर बल की अधिकता होती है और जोश की भी किन्तु संजीदगी और समझदारी कम पाई जाती है। बुढ़ापे में बुद्धिबल विवेक और दूरदर्शिता परिपक्व होती है किन्तु शरीर दुर्बल होता जाता है। लाभ-हानि की तुलना करते हुए यही कहा जा सकता है कि दोनों अपने-अपने स्थान पर उपयोगी है। न एक के लिए दुःख मनाया जा सकता है और न दूसरी को सर्वगुण सम्पन्न कहा जा सकता है।

काम की दृष्टि से सर्दी -गर्मी में कोई खास अन्तर नहीं है। दोनों में ही कुछ सुविधाएँ बढ़ती है कुछ असुविधा। इसी प्रकार जवानी और बुढ़ापे का अपना ढर्रा है। काम का स्तर और ढर्रा बदला जाय तो बुढ़ापे में भी आदमी बिना थके इतना काम कर सकता है कि उसे जवानी की तुलना करते हुए कोसने की तनिक भी आवश्यकता नहीं पड़े।

लुडोविको जब 115 वर्ष के हो गये तो उन्होंने अपने लम्बे जीवन के कारणों पर प्रकाश डालने वाली आत्मकथा लिखने की आवश्यकता अनुभव की और उन्होंने उस महत्वपूर्ण पुस्तक को धीरे-धीरे लिख ही डाला। सुकरात ने साठ वर्ष पार करने के उपरान्त यह अनुभव किया कि बुढ़ापे की थकान और उदासी को दूर करने के लिए संगीत अच्छा माध्यम हो सकता है, अस्तु उन्होंने गाना सीखना आरम्भ किया और बजाना भी। यह क्रम उन्होंने मरते दिनों तक जारी रखा।

रोम के राज नेता केटो जब अस्सी वर्ष के थे तो उन्होंने समझा कि उन्हें अच्छा भाषा ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। अस्तु इसी क्रम में उन्होंने ग्रीक की विधिवत् पढ़ाई आरम्भ की।

सर हेनरी स्पेलमैन अग्रगण्य विज्ञानवेत्ता हुये है। वे 60 वर्ष तक दूसरी तरह के काम करते रहे। इस उम्र में उन्हें वैज्ञानिक बनने की सूझी सो उन्होंने साइंस की पुस्तकें पढ़ना आरम्भ की और उस दिशा में उनकी बढ़ती दिलचस्पी ने उन्हें उच्चकोटि की वैज्ञानिक सफलताएँ प्राप्त की। इटली का प्रख्यात उपन्यासकार बोकेशियो को ढलती उम्र में साहित्यकार बनने की बात सूझी। उस ओर वह दिलचस्पी के साथ जुटा और अन्ततः मूर्धन्य कलाकार बनकर चमका।

फ्राँस के राजनेता कालवर्ट ने 60 वर्ष के उपरान्त कानून की कक्षा में अपना नाम लिखवाया और वह बूढ़ा विद्यार्थी अपने युवक साथियों से किसी विषये में पीछे नहीं रहा। ओग्लिवो की ख्याति होमर के सफल अनुवादक के रूप में है। वे 50 वर्ष की आयु में ग्रीक भाषा आरम्भ करने वाले विद्यार्थी बने, इसके उपरान्त साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश किया। वे पचास वर्ष की आयु तक दर्शन शास्त्र से अपरिचित रहे। रुझान इसके बाद ही उत्पन्न हुई और वह उन्हें विश्व ख्याति बना कर ही रही।

संसार के कोने-कोने में ऐसे उदाहरण भरे पड़े है जिनमें वयोवृद्ध व्यक्तियों द्वारा अपने पुरुषार्थ उत्साह और साहस जगाकर प्रगति की मंजिल इतनी तेजी से पूरी की जितनी कि नई उम्र के नवयुवक भी नहीं कर पाते। वृद्धावस्था में किसी को निराश होने की आवश्यकता नहीं है। यदि साहस और उत्साह कायम रखा जा सके तो आयु का अवरोध किसी के मार्ग में अड़चन उत्पन्न नहीं कर सकता।


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