हल्कापन ही ऊँचाई और गहराई तक ले पहुँचता है.....

November 1973

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ऊपर उठने के लिये और ऊँचा उड़ने के लिये हल्कापन आवश्यक है। जो जितना भारी है, वह उतना ही असमर्थ रहेगा और महत्वपूर्ण उड़ाने उड़ने की प्रतियोगिता में अपने को अयोग्य पायेगा।

पक्षी इसलिए आकाश में उड़ पाते हैं कि उन्हें हल्केपन का वरदान मिला है। इसलिए वे उन्मुक्त आकाश में स्वच्छन्द विचरण कर सकते हैं और लम्बी उड़ाने भर सकते हैं। मनुष्यों पर भी यह सिद्धान्त लागू होता है कि उसने यदि परिवार के उत्तरदायित्वों का वजन न बढ़ाया हो तो छोटी गृहस्थी के हल्के उत्तरदायित्वों का निर्वाह करते हुए समुन्नत जीवन का निर्माण करने की दिशा में बहुत कुछ कर सकते हैं। पर यदि परिवार की संख्या बहुत बढ़ा ली होगी तो उन्हीं का निर्वाह साधन जुटाने में सारी शक्ति चुकती रहेगी और भार का दबाव ऊँचा उठ सकने योग्य कुछ पुरुषार्थ न करने देगा। जब समय और शक्ति बचेगी ही नहीं तो कुछ महत्वपूर्ण कदम बढ़ा सकने की बात ही कैसे बनेगी?

लोभ और मोह के भार जिसके मन को बोझिल किये हुए है उनके लिए रेंगते हुए दिन काटना ही शक्य है महानता के पथ पर चल सकने योग्य ऐसे व्यक्तियों के पास न उमंग होती है न उत्साह न साहस। कारण कि पहले से ही तृष्णा का पर्वत जितना भार उनके ऊपर लदा होता है। भौतिक महत्त्वाकाँक्षाओं का वजन भी इतना अधिक होता है कि जीवनोद्देश्य की पूर्ति के लिये आवश्यक उड़ाने भर सकना उनके बस से बाहर की बात होती है। पुत्रेषणा, वित्तेषणा, लोकेषणा का भार इतना भारी है कि पृथ्वी का वजन उठाने वाले शेषनाग का कचूमर निकल जाय। इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण विचारों से जिसने अपने को लाद लिया है वे भारवाही मनुष्य रोते कलपते किसी प्रकार मौत के दिन ही पूरे करते है। उत्थान और उत्कर्ष की बात न तो वे सोच पाते हैं और न वैसा कुछ करते उनसे बन पड़ता है।

इस दृष्टि से पक्षी सौभाग्यशाली है कि भगवान के उनकी संरचना हलकी रखी है, भारमुक्त रखा है। इसी देवी वरदान के कारण वे उन्मुक्त आकाश में स्वच्छन्द विचरते हैं और जीवन का आनन्द लेते हैं।

आकाश में उड़ने वाले पक्षी की कार्य क्षमता इस बात पर निर्भर है कि उसकी हड्डियाँ- शेष शरीर की तुलना में कितनी हलकी है। ऊँचे उड़ सकने और देर तक आसमान में मंडराते रहने पक्षियों के अस्थि पिंजर बहुत ही हलके होते हैं। कई बार तो हड्डियों का वजन पंखों से भी कम होता है। जिनकी हड्डियाँ भारी होती हैं वे अपने उड़ सकने की क्षमता गँवाते चले जाते हैं। मुर्गा जाति की हड्डियाँ भारी होते जाने की कठिनाई ने ही उन्हें उड़ने की क्षमता से वंचित कर दिया है। शुतुरमुर्ग जैसे-जैसे वजनी होता गया वैसे वैसे उसकी उड़नशीलता प्रायः पूरी तरह समाप्त हो गई। पक्षी एक तो यो ही हलके होते हैं, साथ ही उनके भीतर हवा भरी रखने की विशेष थैलियाँ भी होती हैं इन्हीं के कारण उन्हें उड़ सकने की क्षमता प्राप्त होती है।

हर प्राणी के लिए आकाश में उड़ना संभव नहीं हो सकता। इसके लिए शरीर में कुछ विशेष प्रकार की अनुकूलता होनी चाहिए भारी संरचना वाले शरीरों में यदि पर उग भी आवे तो भी उन्हें उड़ाने में सफलता प्राप्त करने में भारी कठिनाई अनुभव होगी। प्राणी जितना भारी होगा उसको आकाश में उड़ने के लिए उतना ही प्रबल उत्थापन बल- डाइनैमिक लिफ्ट चाहिए। इसके लिए उसी अनुपात से पंख अधिक बड़े और अधिक मजबूत होने चाहिए। फिर उन्हें चलाने के लिए वैसी ही सुदृढ़ और भारी माँसपेशियों की जरूरत पड़ेगी। इस चक्र को पूरा करने में प्राणी और भी अधिक भारी हो जायेगा, तब अधिक भार संवहन के लिए उस पंख उपजाने की प्रणाली में और भी अधिक जटिलता पैदा हो जाएगी। मनुष्य को यदि उड़ना ही हो तो उसे 140 फुट लम्बे पंख लगाने और उसी के अनुरूप शरीर में शक्ति उत्पादन की जरूरत पड़ेगी।

शुतुरमुर्ग जाति के सैकड़ों पक्षी उड़ने की क्षमता से मुक्त पंख होते हुए भी इसी लिए वंचित होते चले गये कि उनका अस्थियाँ, नाडी संस्थान, तथा माँस आवरण क्रमशः अधिक भारी होता चला गया।

पक्षी इसी लिए आकाश में उड़ सकते हैं कि उनका शरीर बहुत हलकी सामग्री से बना होता है। उनके पर ऐसी, कठोर चिकनी स्ट्रीम साइन्ड सतहों का निर्माण करते हैं जो वायु के दबाव को चीरती हुई अपने लिए रास्ता बना सके। पक्षियों की हड्डियाँ खोखली होती है, उनमें वायु भरी होती है जिससे इनका भार कम हो जाता है किन्तु मजबूती में कोई कमी नहीं आती।

बिलकुल ठोस पदार्थों की तुलना में उसी वजन के मुड़े हुए एवं ब्रेस्ड पदार्थों की मजबूती कही अधिक होती है। इमारतों में काम आने वाले लोहे के गार्डर पूरी तरह चौकोर ठोस न होकर नीचे ऊपर से चपटे और बीच में पतले होते हैं इससे उनकी मजबूती घटती नहीं बढ़ती है। पक्षियों की खोखली हड्डियाँ देखने समझने में कमजोर लग सकती है पर वस्तुतः वे अपेक्षाकृत अधिक ही मजबूत होती हैं। आघातों को सहने के लिए प्रकृति के इन हड्डियों के इधर-उधर सहायक पुस्ते भी लगा दिये है। चोंच की हड्डी सबसे मजबूत होती है वह वह भी वजन में हलकी होती है।

पक्षी पोले अण्डे देते हैं और घोंसलों में उन्हें सेते है। यदि उनका भ्रूण पेट में बढ़ता पलता तो फिर मादा के लिए उतना भार वहन करते हुए उड़ान भर सकना संभव नहीं रहता। अण्डे को भी पक्षी देर तक गर्भाशय में नहीं रखते। मुर्गी का अण्डा केवल 26 घण्टे ही माता के पेट में रह कर बाहर निकल आता है।

ऊँचा उठने और ऊपर उड़ने के लिए यह भी आवश्यक है कि उसे तीव्र दृष्टि प्राप्त हो। ऊपर उड़ने वाला ओछी दृष्टि का हो तो उड़ान का न तो आनन्द मिलेगा और न लाभ। दिव्यदृष्टि- दूरदर्शिता- के आधार पर ही प्रगतिशीलता- सम्पन्नता और विभूति सत्ता को किसी उपयोगी काम का बनाया जा सकता है। पक्षियों की तरह ऊँचा उठने वाले मनुष्यों को भी तीव्र दृष्टि का दूरदर्शिता का अभाव नहीं होता।

उड़ने वाले पक्षियों की आँखों में तीव्र दृष्टि न हो तो वे उड़ते हुए भूमि या वृक्षों पर मिल सकने वाले आहार जल निवास विश्राम आदि के साधन धुँधली दृष्टि होने पर देख ही नहीं सकेंगे और उनका जीवन जटिल हो जाएगा।

मनुष्य की आँखें सामने की ही वस्तु देख सकती है किन्तु अधिकाँश पक्षियों की आँखें इस तरह से बनी होती है कि वे अगल बगल से दो भिन्न प्रकार के दृश्य एक ही समय में एक साथ देख सके। कुछ तो पीछे की ओर भी देख सकते हैं।

पक्षियों की आँखों पर तीन पलक होते हैं। इससे पुतली की सुरक्षा होती है। बूँदें पड़ने पर चलती मोटर का ‘वाइपर’ जिस प्रकार शीशे को साफ करता है उसी प्रकार पुतली पर चढ़ा हुआ निचला पारदर्शी पलक आँख की सफाई और सुरक्षा करता रहता है। पक्षी की दूर दृष्टि अक्षुण्ण रहे इसके लिये यह व्यवस्था आवश्यक भी है। मनुष्य की आँख में सबसे अधिक संवेदनशील भाग- मैक्युलर एरिया में लगभग दो लाख कोशिकाएँ होती है किन्तु बाज़ की आँख की संवेदी गर्त फोवीन में कोशिकाओं की संख्या पन्द्रह लाख होती है। इसी अनुपात से उसकी दृष्टि भी साढ़े सात गुना अधिक होती है। यही बात अन्य पक्षियों के सम्बन्ध में भी है।

उड़ने में ही नहिं, पानी पर तैरने की सुविधा भी उन्हें इन हड्डियों के हल्केपन के कारण ही प्राप्त होती है। फुदकते हुए- उछल उछल कर जल्दी चल सकना भी हलकी हड्डियों वाले पक्षियों के लिए ही संभव होता है। शरीर का भारीपन, उड़ना, डुबकी लगाना तो दूर दुरित गति से दौड़ सकना भी संभव बना देती है। जलचरों की शरीर रचना में भी यही तथ्य काम करता है, माँस की तुलना में उनकी भी हड्डियाँ हलकी होती है। उनके भीतर का पोलापन और लचक के कारण ही जल जीवन संभव होता है। उनकी साँस लेने की प्रणाली भी ऐसी होती है जिसमें वे वायु दबाव में बच सके।

मनुष्य और पक्षियों की तुलना करते हुए गति की मंदता और तीव्रता का विश्लेषण माँस पेशियों की स्थिति पर भी निर्भर है। पक्षियों की अधिकाँश माँस पेशियाँ उनकी छाती में होती है जब कि मनुष्य शरीर का अधिकाँश माँस कमर से नीचे ही लदा रहता है।

चाहे ऊपर उठना हो चाहे गहराई में उतरना हो दोनों ही दिशाओं में महत्वपूर्ण प्रगति करने की आकांक्षा वालों को नभचरों और जलचरों की तरह हलका होना चाहिए। जिसका भौतिक भार जितना हलका होगा उसके लिए महती प्रगति का पक्ष उतना ही अधिक प्रशस्त रहेगा।


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