गुरु कुल के दो छात्र आपस में झगड़ रहे थे। दोनों अपनी विद्या प्रतिभा और बलिष्ठता की चर्चा करते हुए अपने बड़प्पन का प्रतिपादन कर रहे थे और अपने को बड़ा सिद्ध कर रहे थे।
विवाद आचार्य तक पहुँचा, उन्होंने सहानुभूति पूर्वक कहा- बच्चों बड़प्पन की निशानी है विनयशीलता और शालीनता। तुम लोगों में से जो अपनी तुच्छता और दूसरे की महत्ता का मूल्याँकन कर सके वही बड़ा है।
छात्रों का सिर झुक गया, उन्होंने अहन्ता और दृष्टता के लिए परस्पर एक दूसरे से क्षमा माँगी।