जिस देश में आन्तरिक कलह उमड़ते हैं, वह गृह युद्ध से जर्जरित होकर इतना दुर्बल बन जाता है कि बाहरी शत्रुओं के मुकाबले पराजय की विपदा सहन करे। जिस व्यक्ति के भीतर अन्तर्द्वन्द्व भरे रहते हैं उसकी भीतरी उलझने ही आवश्यक शक्तियों को समाप्त कर देती है। बाह्य जीवन में कोई बड़ी सफलता पाना उनके लिए संभव ही नहीं रहता।
पक्षी जाल में अचानक ही नहीं फंस जाते। फंदे में पैर मजबूती से जकड़ जाने का कारण यह होता है कि तनिक भी फँसाव अनुभव करते ही बेतरह घबराते और फड़फड़ाते हैं पर उसी से फन्दा कड़ा हो जाता है और वे जान गँवा बैठते हैं। यदि पैर फँसते ही वे कठिनाई को समझ जाय और जो उँगली फँसी है उसे धीरे से निकालते तो जाल में फँसने वालों में से अनेकों को छुटकारा मिल सकता है। पर उस उद्वेग को क्या कहा जाय जो आपत्ति का सूत्रपात होते ही आवेश उत्पन्न कर देता है। असंतुलन यह भुला देता है कि उलझन को सुलझाने के लिए क्या किया जाना चाहिए।
अपने अन्तर को उद्वेगों में बचाओ। धीरज वान और दूरदर्शी बनो ताकि अन्तर्द्वन्द्वों से अपनी शक्ति दबा कर प्रगति पथ के अवरोधों को हटा सको। अप्रिय प्रसंगों और अवांछनीय परिस्थितियों में भी अपना संतुलन न खोओ। धैर्य-विवेक और साहस के सहारे संसार की किसी भी विपत्ति का सामना किया जा सकता है। —सन्त फ्राँसीसी