अमेरिका की यात्रा के दौरान एक व्यक्ति जहाज में स्वामी रामतीर्थ से ज्ञान-ध्यान की चर्चा कर रहा था। उतरते समय उसने सामान्य शिष्टाचार से पूछा, “आप कहाँ ठहरेंगे? आपके मेजबान का पता क्या है? समय मिला तो आपसे संपर्क का प्रयत्न करूंगा।”
स्वामी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, “अमेरिका में मेरा एक ही मित्र है और वह हैं आप।” व्यक्ति चकित रह गया। साथ ही स्वामी जी के आत्मविश्वासपूर्ण सौजन्य से प्रभावित भी कम नहीं हुआ। उसने स्वामी जी को साथ ले लिया। अपने घर रखा और जब तक अमेरिका में ठहरे, तब तक उनके लिए आवश्यक सामग्री जुटाता रहा।