पथिक ने वृक्ष से कहा, “तुम बिना किसी प्रयास के यों फलो-फूलो में और मैं मारा-मारा फिरूं, क्या यह अन्याय नहीं है?’
वृक्ष ने कहा, “इस तरह की ईर्ष्या करने से पहले तुमने सोचा होता कि मैं कितनी सरदी, गर्मी, बरसात और पतझड़ की तपश्चर्या के उपराँत यह सौभाग्य प्राप्त करता हूँ, फलता-फूलता हूँ और इस अनुदान-उपहार को परोपकार में ही लगाता हूँ। तुम तो सब जीवों में श्रेष्ठ, वरिष्ठ मनुष्य हो। तुमसे भी श्रम और पुरुषार्थ की आशा की जाती है।” वृक्ष के उद्बोधन से पथिक का समाधान हो गया ।