पत्ता पीला पड़ा और झड़कर नीचे गिर पड़ा। देखने वालों ने उसे पत्ते का दोष और दुर्भाग्य बताया, पर जानने वालों ने जाना कि इस पते को पूरे वृक्ष का परोक्ष समर्थन प्राप्त था। यदि वृक्ष के रसवाही तंतु समर्थ रहे होते तो पत्ते के जोड़ ढीले न पड़ते और वह असमय इस प्रकार अपने परिवार से विमुख होकर धूल न चाट रहा होता। पूरे पेड़ में घुसी विकृति को दोष कौन दे, पत्ते को ही कोस देना पर्याप्त मान लिया गया, यही जग की रीति है। उत्थान पतन के लिए सारा तंत्र श्रेय अथवा दोष का भागीदार होता है।