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Akhand Jyoti
Year 2003
Version 2
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July 2003
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जो व्यक्ति उदारतापूर्वक सबके हित की बात सोचता है, वही मनुष्य लोकसेवी के श्रेय का अधिकारी हो सकता है।
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Page Titles
स्मरण और समर्पण
व्यक्तित्व-गठन के छह महत्वपूर्ण चरण
प्रयासों में सहायता मिली (kahani)
ध्यानं निर्विषयं मनः
बुद्धि नहीं, सद्बुद्धि को महत्व मिले
महामानव बना देता है (kahani)
अकर्मण्यता - एक विष
रामकृष्ण परमहंस (Kahani)
आत्मोत्कर्ष हेतु तपश्चर्या के दो पक्ष
दोष का भागीदार (kahani)
आवश्यकता है प्रेम के परिष्कार एवं सुख के आध्यात्मीकरण की
सतत दान देता रहा (kahani)
इनसान बस अपने को जान ले
लक्ष्य से भ्रष्ट (kahani)
प्रभु! जड़-चेतन में, रोम-रोम में शाँति दीजिए
Quotation
गलत प्रव्रज्या में शरण दुःखदाय है
कागावा देश का गाँधी (kahani)
भारत का इतिहास, महाकाल का प्रसाद है - गंगा
बड़ी जिम्मेदारिया (kahani)
VigyapanSuchana
मिली समय-प्रबंधन की सीख
पवित्र, उच्च विचारों से आप्लावित उपनिषदों का ज्ञान
प्रभु की भूख (kahani)
हम अपने भाव में शाँत हो भर जाएं
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आयुर्वेद-5 - प्रदर रोग निवारण हेतु यज्ञोपचार प्रक्रिया
स्वार्थ से ऊपर उठकर पारिवारिक उत्तरदायित्व (kahani)
समर्पण, विसर्जन, विलय का महापर्व
वृक्ष उद्बोधन से पथिक का समाधान (kahani)
गुरु पूर्णिमा (13 जुलाई, 2003)- - विशेष-जनम-जनम के साक्षी व साथी हैं हमारे गुरुदेव
श्रम के देवता की आराधना (kahani)
शिष्य संजीवनी-1 - समर्पित दृढ़ता से आरंभ होती है यह साधना
महाकवि माघ की उदारता (kahani)
अंतर्जगत की यात्रा का ज्ञान विज्ञान- - अभ्यास की सफलता हेतु कुछ अनिवार्य शर्तें
कृति हमेशा के लिए अमर बना गई(kahani)
गुरुगीता-12 - शिवभाव से करें नित्य सद्गुरु का ध्यान
स्वामी रामतीर्थ (kahani)
परमवंदनीया माताजी की मातृवाणी - गुरु को वरण करके तो देखिए
युगागीता- 45 - योगेश्वर का प्रकाश स्तंभ बनने हेतु भावभरा आमंत्रण
VigyapanSuchana
चेतना की शिखर यात्रा-17 - सिद्धि के मार्ग पर संकल्प-1
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गुरुकथामृत-54 - सदगुरु के सदकै करूं, दिल अपनी का साछ
VigyapanSuchana
केंद्र के समाचार-विश्वव्यापी हलचलें- - क्या हो रहा है इन दिनों गायत्री परिवार में
अपनों से अपनी बात - कलातंत्र को परिष्कृत कर अब नई दिशा देनी है।
शिष्य की अभिव्यक्ति (kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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