लक्ष्य से भ्रष्ट (kahani)

July 2003

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राहगीर ने पत्थर मारा, आम के वृक्ष से कई पके आम गिरे। राहगीर ने उठाए और खाते हुआ वहाँ से चल दिया।

यह दृश्य देख रहे आसमान ने पूछा, “वृक्ष! मनुष्य प्रतिदिन आते हैं, तुम्हें पत्थर मारते हैं, फिर भी तुम इन्हें फल क्यों देते हो?”

वृक्ष हंसा और बोला, “भाई! मनुष्य अपने लक्ष्य से भ्रष्ट हो जाए तो क्या हमें भी वैसा पागलपन करना चाहिए”


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