जापान के लिए लड़के कागावा ने पढ़ाई के बाद पीड़ितों की सेवा करना लक्ष्य बनाया और वे उसी में लग गए। पिछड़े, बुरी आदतों से ग्रसित बीमार लोगों के मुहल्लों में वे जाते और दिनभर उन्हीं की सेवा में लगे रहते। पेट भरने के लिए उनने दो घंटे का काम तलाश कर लिया। इस सेवा कार्य की चर्चा दूर दूर तक होने लगी। एक विदुषी लड़की को उनका यह कार्य बहुत पसंद आया। वह भी उनके कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करने का तैयार हो गई। विवाह एक शर्त पर हुआ कि वे लोग वासनापूर्ति नहीं, समाज सेवा हेतु मैत्री की खातिर बंधेंगे। उस लड़की ने भी अपना पेट भरने के लिए दो घंटे रोज का काम तलाश लिया। दोनों के मिलकर काम करने से दूना काम होने लगा।
उदार लोग उनके काम में सहायता देने लगे। फलतः कार्यक्षेत्र बहुत बढ़ गया। सरकार ने पूरे जापान में पिछड़े लोगों को सुधारने का काम उन लोगों को सौंपा। कागावा के प्रति जापान में इतनी श्रद्धा बढ़ी कि उन्हें उस देश का गाँधी कहा जाने लगा।