महाकवि माघ अपनी उदारता के लिए प्रसिद्ध थे। उन दिनों उनकी आर्थिक स्थिति खराब चल रही थी, फिर भी हृदय की उदारता पहले जैसी ही थी। एक रात उनके घर पर एक याचक आया। उसने बताया कि मुझे अपनी कन्या का विवाह करना है और पास में कुछ भी नहीं है। आपकी ख्याति सुनकर आपके पास आया हूँ। कुछ सहायता मिल जाए तो मेरा काम बन जाए।
कवि माघ का हृदय भर आया। घर की संपत्ति पर दृष्टि डाली। पास में कुछ भी नहीं था। तभी पास ही सो रही पत्नी के शरीर पर दृष्टि गई। धीरे से एक कंगन उतारा और अतिथि को देते हुए बोले, “इस समय अधिक के लिए मैं विवश हूँ। जो कुछ पास में है, उसे ही स्वीकार कीजिए।”
तभी पत्नी की आँख खुली, वस्तुस्थिति को समझा। मंद मुस्कराहट के साथ बोली, “भला विवाह जैसा कार्य एक कंगन में कैसे हो सकेगा। यह दूसरा भी ले जाइए।” और दूसरा कंगन भी उतारकर दे दिया। माघ पत्नी के इस कृत्य पर पुलकित हो उठे।