किशोरवय के इस छात्र की प्रतिभा के सभी कायल थे। विद्यार्थियों के साथ शिक्षकों को भी उसकी मेधा पर पूरा यकीन था। गणित, विज्ञान व इतिहास आदि सभी विषयों पर उसकी समान गति थी। पर साहित्य में उसकी प्रतिभा का निखार कुछ विशेष ही था। उच्च स्तरीय साहित्यिक पुस्तकों का पठन, उनकी समीक्षा-समालोचना उसके प्रिय कार्य थे। उसकी साहित्यिक अभिरुचि में पठन के साथ सृजन भी सम्मिलित था। उसके मौलिक सृजन की प्राञ्जल भाषा, सम्मोहक शब्दावली, अनूठी वाक्य रचना, संतुलित भाव सामान्य जनों को ही नहीं विशेषज्ञों को भी चकित करते थे।
अपनी अनगिन विशेषताओं के साथ उसमें एक छोटा सा दोष भी था। वह समय का पाबन्द नहीं था। अपने किसी कार्य को समय से पूरा करना, समय की गति और लय के साथ उसे निभाना उसके लिए सम्भव नहीं बन पड़ता था। इसके लिए उसे कभी-कभी विद्यालय में चेतावनी भी मिला करती थी। कभी-कभी तो उसे कार्य दिए जाने के साथ ही चेतावनी भी मिल जाती। उस दिन भी ऐसा ही हुआ था। विद्यालय में कहानी की प्रतियोगिता आयोजित की गयी थी। कहानी लिखने के लिए ठीक एक महीने का समय था। इस प्रतियोगिता की सूचना उसे देते समय साहित्य के अध्यापक ने उसे चेताया था- अर्नेस्ट! तुम साहित्य लेखन में सर्वश्रेष्ठ हो, पर तुम्हें समय का ध्यान रखना है।
जी सर! कहकर वह अपने विचारों में खो गया। उसकी साहित्यिक प्रतिभा को देखते हुए न केवल उसे, बल्कि उसके साथियों एवं अध्यापकों को विश्वास था कि पुरस्कार उसको ही मिलेगा। हालाँकि उसे हैरानी इस बात की थी कि एक कहानी के लिए एक महीने का समय क्यों दिया गया है। कहानी को तो वह दो घण्टे में भी लिख सकता है। अपनी इसी सोच के कारण उसने कहानी प्रतियोगिता पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। प्रतियोगिता के लिए जब एक दिन बाकी रह गया- तब उसने आनन-फानन में एक कहानी लिखी और प्रतियोगिता संयोजक के पास जमा करा दी।
जिस दिन पुरस्कार की घोषणा होनी थी, उस दिन अर्नेस्ट बड़े उल्लास के साथ अपने विद्यालय पहुँचा। परिणाम की घोषणा हुई। लेकिन कहानी लेखन का प्रथम पुरस्कार उसे नहीं किसी और को दिया गया था। इस परिणाम पर सभी को आश्चर्य हुआ। वह स्वयं तो इतना उदास हुआ कि वह फूट-फूट कर रो पड़ा। बड़ी बहन ने उसकी स्थिति भाँप ली। वह भी विद्यालय के इस समारोह में उसके साथ आयी थी। वह बोली, पुरस्कार न मिलने के कारण रो रहा है न? अरे, यह तो होना ही था। तू समय की इस कदर उपेक्षा करेगा तो और क्या होगा? महीने भर का काम कहीं एक दिन में किया जाता है?
फिर वह उसका सिर सहलाते हुए स्नेहपूर्वक बोली, अब रोना छोड़, अगर सचमुच तुझे पराजय की पीड़ा है तो इसे आगे बढ़ने की पहली सीढ़ी मान ले। भविष्य में कभी भी इस भूल को मत दोहराना। बड़ी बहन की बातों को वह ध्यान से सुन रहा था। वह उसकी ओर प्रेमपूर्ण दृष्टि से देखते हुए कह रही थी- अच्छा लिखना है, तो अच्छी तरह से पढ़ो, तथ्यों एवं विचारों को संकलित करो। मानवीय जीवन के किसी अछूते, किसी की नजर में न आए हुए मर्म स्पर्शी पहलू को अपने साहित्य-सृजन की आधारभूमि बनाओ। भावों और विचारों को फिर भाषा का सौंदर्य प्रदान करो और जो लिखा है- उसे कम से कम दो बार पढ़ो, उसकी कमियाँ ढूंढ़ो। इसके बाद फिर से उसे लिखो। अपने ही लिखे हुए को कम से कम दो बार अवश्य पढ़ना चाहिए। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि सारा काम समय की गति व लय के साथ होना चाहिए। ध्यान रहे समय के संगीत में जो अपने कर्मों के गीत को पिरोता है, वही महान् बनता है।
बड़ी बहन के इस सीख ने अर्नेस्ट की आँखें खोल दी। उसने समय के संगीत के साथ अपनी साहित्य साधना का गीत रचा। भविष्य ने उसे विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार अर्नेस्ट हेर्माग्वे के नाम से पहचाना। उसके साहित्य सृजन को नोबुल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।