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प्रार्थना का संगीत प्रेम की सरगम से सजता है। प्रेम की सजल संवेदनाओं से ही प्रार्थना के स्वर स्फुटित होते हैं। प्रेम के शब्दों को गूँथकर ही प्रार्थना का काव्य रचा जाता है। भावमय भगवान् केवल भावनाओं की सघन पुकारों को सुने बिना नहीं रहते। संवेदनाओं की सजलता ही उन्हें स्पर्श कर पाती है।
सजल संवेदनाओं, सघन भावनाओं एवं प्रेम की प्रतीति को जो अपने जीवन में घोल देते हैं, उनका जीवन सहज ही प्रार्थनामय हो जाता है। सूफी फकीरों में इस बारे में एक घटना बहुप्रचलित है। सूफी फकीर नूरी को उनके कुछ अन्य फकीर साथियों के साथ काफिर होने का आरोप लगाया गया था। इसके लिए इन सबको मृत्युदण्ड भी सुना दिया था।
मृत्युदण्ड की घड़ी में जब जल्लाद फकीर नूरी के एक साथी के पास नंगी तलवार को लहराता हुआ आया, तो नूरी ने उठकर स्वयं को अपने मित्र के स्थान पर पेश किया। ऐसा करते समय नूरी के चेहरे पर गहरी प्रसन्नता और स्वरों में भरपूर नम्रता थी। इस दृश्य को देखकर दर्शक स्तब्ध रह गए। हजारों की भीड़ एक पल को सहम गयी।
अचरज से भरे जल्लाद ने कहा- हे युवक! तलवार ऐसी वस्तु नहीं है, जिससे मिलने के लिए लोग उत्सुक एवं व्याकुल हों और फिर तुम्हारी तो अभी बारी भी नहीं आयी। जल्लाद की इन बातों पर फकीर नूरी मुस्करा उठे। और कहने लगे- मेरे लिए प्रेम ही प्रार्थना है। मैं जानता हूँ कि जीवन, संसार में सबसे मूल्यवान वस्तु है। लेकिन प्रेम के मुकाबले वह कुछ भी नहीं है। जिसे प्रेम उपलब्ध हो जाता है, उसके लिए सारा जीवन प्रार्थना बन जाता है। और प्रार्थनाशील मनुष्य का कर्त्तव्य है कि जब भी कोई कष्ट आगे आए, तो स्वयं सबसे आगे हो जाओ और जहाँ सुख-सुविधाएँ मिलती हों तो वहाँ पीछे होने की कोशिश करो।
फकीर नूरी की इन बातों ने जता दिया कि प्रार्थना का कोई ढाँचा नहीं होता। वह तो हृदय का सहज अंकुरण है। जैसे पर्वत से झरने बहते हैं, वैसे ही प्रेम पूर्ण व्यक्ति के प्रत्येक कर्म में प्रार्थना की धुन गूँजती है।