चैक जनरल हैटमैन की चमड़ी का ढोल (Kahani)

December 2003

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आक्रमणकारी जर्मनों के विरुद्ध चैक लोग अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए कट-कटकर लड़ रहे थे, तो भी जर्मन की सेना और साधन अधिक होने से उनमें उदासी छाने लगी।

चैक जनरल हैटमैन लड़ाई में बुरी तरह घायल हुआ। मरने से पूर्व उन्होंने अपने साथियों से कहा, “मरने के बाद मेरी चमड़ी उखाड़ ली जाए और उसका ढोल मढ़कर सारी चैक सेना में यह मुनादी कराई जाए कि कोई हिम्मत न हारे, अंततः जीत चैक सेना की ही होगी।”

वैसा ही किया गया। उस ढोल की आवाज सुनकर सेना में दूना उत्साह उपजा और वे इतनी बहादुरी से लड़े कि जर्मनों के पैर उखड़ गए और जीत चैक सेना की ही हुई।

श्रावस्ती में अंगुलिमाल में आत्मसमर्पण किया। संचित समस्त संपदा को धर्मचक्र प्रवर्तक के लिए समर्पित करके प्रायश्चित की किस्त पहले ही चुका दी थी। दूसरी किस्त के रूप में अपना जीवन प्रव्रज्या के लिए समर्पित करना था। परिशोधन के लिए तप-साधना में प्रवेश पाने का आज संस्कार समारोह था।

इस अवसर पर विशेष उत्सव का आयोजन हुआ। साथ ही कई चर्चाएँ चलती रहीं। एक प्रश्न उठा-इतने बड़े पापी को इतनी जल्दी किस कारण मूर्द्धन्य वर्ग में प्रवेश दिया गया? उसकी साधना आरंभ से ही क्यों न चलाई गई? चर्चा तथागत के कानों तक पहुँची। शिष्यों का समाधान करते हुए वे बोले-संकल्पपूर्ति के लिए दृढ़ता अपनाए रहने की साधना का पूर्वार्द्ध अंगुलिमाल पहले ही पूरा कर चुका था। देवता पर प्रतिदिन पाँच उँगलियाँ काटकर न चढ़ा सकने की प्रतिज्ञा टूटते देखकर उसने एक दिन अपने बाएँ हाथ की पाँच उँगलियाँ काटकर चढ़ाई थीं। क्या यह घटना आप सबको मालूम नहीं?

संकल्प पूर्ण करने के साहसी प्रकाराँतर से अध्यात्म का पूर्वार्द्ध कर चुके होते हैं। अंगुलिमाल की इसी विशेषता से उसे मूर्द्धन्य वर्ग में लिया गया है।


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