अपनों से अपनी बात - नवसृजन के निमित्त महाकाल तैयार हैं

December 2003

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परमपूज्य गुरुदेव क्राँतिधर्मी साहित्य की एक अति महत्वपूर्ण पुस्तक ‘नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी’ में लिखते हैं- “बीज बोने का समय थोड़ा ही होता है। वृक्ष का अस्तित्व लंबे समय तक स्थिर रहता है, सन 1990 से लेकर 2000 तक के दस वर्ष जोतने, बोने, उगाने, खाद-पानी डालने और रखवाली करने के हैं। इक्कीसवीं सदी से वातावरण बदल जाएगा, साथ ही परिस्थितियों में भी भारी हेर-फेर होगा। इन सभी के विस्तार में एक शताब्दी ही लग जाएगी- सन 2000 से 2099 तक। उस बीच इतने बड़े परिवर्तन बन पड़ेंगे, जिन्हें देखकर जनसाधारण आश्चर्य में पड़ जाएंगे। सन् 1900 में जो परिस्थितियों थीं, वे तेजी से बदलीं और क्या से क्या हो गया, यह प्रत्येक सूक्ष्मदर्शी जानता है। अगले दिन इतने आश्चर्यजनक परिवर्तनों से भरे होंगे, जिन्हें देखकर प्रज्ञावानों को यही विदित होगा कि युग बदल गया, अनुभव होगा कि मनुष्य का शरीर तो पहले जैसा ही है, किंतु उसका मानस, चिंतन व दृष्टिकोण असाधारण रूप से बदल गया और समय लगभग ऐसा आ गया, जिसे सतयुग की वापसी कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी।” (पृष्ठ 25-26)

हमारी अपनी तैयारी कितनी है, जरा विचारें

तूफानी प्रवाह आ रहा है

यही है युग- परिवर्तन की-युग के नवनिर्माण की पृष्ठभूमि। आज के असुरता के विनाशकारी ताँडव से भरे दृश्यों को देखकर सहज ही किसी को लगता होगा कि ऐसे में युग कैसे बदलेगा? परिस्थितियाँ कैसे बदल जाएँगी? देखते-ही-देखते अनुकूलताएँ कैसे आ जाएँगी? भारत किस तरह व कब एक समर्थ राष्ट्र-सारे विश्व का सिरमौर एक शक्तिशाली राष्ट्र बनकर खड़ा होगा? ये प्रश्न स्वाभाविक हैं और हर किसी के मन में ये आते हैं। उन्हीं के लिए पूज्यवर लिखते हैं, “प्राचीनकाल में समय की गति धीमी थी, परिवर्तन क्रमिक गति से होते थे, पर अब की बार प्रवाह तूफानी गति से आया है और दो हजार वर्षों में होने वाला कार्य मात्र एक सौ वर्ष में पूरा होने जा रहा है। नई शताब्दी नए परिवर्तन लेकर तेजी से आ रही है।” (उपर्युक्त- पृष्ठ 26)

इसके पहले भी कई बार पूज्यवर कह चुके हैं कि दो हजार वर्षों की गुलामी-परावलंबन से उपजा कचरा तुरंत साफ हो जाए, संभव नहीं। परंतु यह कार्य 2000 से आरंभ हो जाएगा और दस वर्ष के भीतर ही जनसामान्य युग-परिवर्तन के चिह्न देखने लगेगा। हम इक्कीसवीं सदी के तीन वर्ष इस माह पूरे कर रहे हैं। दिसंबर, 2003 के तुरंत बाद हम चौथे वर्ष में प्रवेश कर जाएँगे। विगत तीन वर्षों की उपलब्धियों पर हम दृष्टि डालें तो प्रतीत होगा कि विध्वंस की तुला में सृजन तेजी से हुआ है, देवमानवों का उत्पादन बढ़ा है, जनसामान्य अति अल्प अवधि में अध्यात्म तंत्र की ओर उन्मुख हुआ है एवं ढेरों रचनात्मक कार्य एक साथ कई जगह चल पड़े हैं। 2003 के सूर्यास्त के समय हम काफी उम्मीदों के साथ 2004 के अरुणोदय का स्वागत करने जा रहे हैं। हमें आशा करनी चाहिए कि आने वाला वर्ष और भी नई सुखद संभावनाएं लेकर आएगा।

महाप्रज्ञा का अवतरण होना ही है

परमपूज्य गुरुदेव इसी पुस्तिका में लिखते हैं, “समय बदल रहा है। रात्रि का पलायन और प्रभात का उदय हो रहा है। उसका निमित्त कारण एक ही बनने जा रहा है कि लोग अपने को बदलेंगे। स्वभाव में परिवर्तन करेंगे। गिरने और गिराने के स्थान पर उठने और उठाने की रीति-नीति अपनाएँगे और पतन के स्थान पर उत्थान का मार्ग ग्रहण करेंगे। यही नवयुग है, सतयुग है, जो अब निकट से निकटतम आता जा रहा है।” (पृष्ठ 32) कितनी स्पष्ट घोषणा है और हम हैं कि निराशावादी- पलायनवादी तथाकथित ब्रह्मज्ञानी बनकर समाधान यहाँ-वहाँ खोजने जा रहे हैं। समस्याएँ सुलझेंगी लोकमानस के परिष्कार से, महाप्रज्ञा के मानवमात्र में अवतरण से, पुण्य-परमार्थ और धर्म-धारणा में लाखों-करोड़ों देवमानवों के नियोजन से। हमारी सारी गतिविधियाँ, युगचेतना विस्तार, विराट यज्ञायोजनों की शृंखला, सम्मेलनों के आयोजन, बौद्धिक सभाएँ, विश्वस्तर पर व्यापक जनसंपर्क, भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा का दिग्-दिगंत तक प्रायः सभी भाषाओं में विस्तार तथा देवसंस्कृति विश्वविद्यालय का बढ़ता व्यापक स्वरूप इसके परिचायक हैं। एक ऐसी नई युवा पीढ़ी युगनायकों की, महामानवों की खड़ी होने जा रही है जो आगामी दो दशकों में अपने क्रिया-कलापों से सभी को अचंभित कर देगी।

परमपूज्य गुरुदेव इसीलिए इस पुस्तिका में लिखते हैं, “नवयुग का आगमन-अवतरण निकट है। उसे स्रष्टा किसके माध्यम से पूरा करने जा रहे हैं, यह जानना हो तो समझना चाहिए कि युग अवतरण का श्रेय उन्हीं को उपहार स्वरूप भगवान दे रहे हैं, जो उनके काम में लगे हैं। ऐसे लोगों को ही बड़भागी और सच्चा भगवद्भक्त मानना चाहिए।” (पृष्ठ 32)

हम सभी को अपनी-अपनी भूमिका तय कर लेनी है। अगले दिनों युग के नवनिर्माण में, लोकमानस के परिष्कार में हमारी क्या भूमिका होगी, यह हमें ही तय करना होगा। देवमानव अपने उपार्जन से न्यूनतम अपने लिए खरच करते हैं और शेष को परमार्थ-प्रयोजनों में लगा देते हैं। ऐसे देवमानवों का अधिकाधिक उत्पादन-प्रशिक्षण-नियोजन हमें अगले दिनों करना है। कार्यक्षेत्र पूरा भारत ही नहीं, विश्व-वसुधा होगी। मानव शरीर में प्रतिभावान देवदूत प्रकट होने जा रहे हैं। पूज्यवर के अनुसार इनकी पहचान एक ही होगी- वे अपने समय का अधिकाँश भाग प्रभु की प्रेरणा के लिए लगाएँगे।

एक महत्वपूर्ण वर्ष में प्रवेश

आगामी वर्ष ‘ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान’ के रूप में ‘विज्ञान और अध्यात्म के समन्वयात्मक प्रतिपादन हेतु स्थापित एक तंत्र’ की रजत जयंती का वर्ष है। 1979 में यह स्थापना हुई थी। गत पच्चीस वर्षों में इसके तत्वाधान में ढेरों कार्य हुए हैं। शोध के नए आयाम स्थापित हुए हैं। वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की अब सभी चर्चा करने लगे हैं। अब देवसंस्कृति विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ-साथ दोनों की समन्वित कार्यशैली से और भी महत्वपूर्ण कीर्तिमान भरे कार्य सामने आने जा रहे हैं। कट्टरवाद-उपभोक्तावाद-खुले बाजार की बात करने वाले वैश्वीकरण के समर्थक तंत्र ने कितनी हानि पहुँचाई है, यह सभी जानते हैं। समाधान एक ही है- विज्ञानसम्मत अध्यात्म का जीवन में समावेश। अपने अंतः में प्रसुप्त पड़े वर्चस् का योग-साधना द्वारा जागरण, प्रतिभा का समाज के उन्नयन में नियोजन तथा युवाशक्ति द्वारा रचनात्मक अभियानों को गति दिया जाना। इन सभी कार्यों को अगले वर्ष वरीयता दी जाएगी और इस अभियान को भारतव्यापी बनाना होगा। युग निर्माण सत्संकल्प के अठारह सूत्र सतयुगी समाज के आधार पर बनेंगे। विभूतिवान-प्रतिभाशाली स्वयं इनका जन-जन तक प्रचार करते देखे जाएँगे। इन्हीं में चिंतन को क्रिया में बदलने की शक्ति होती है। ये साक्षात् सजीव प्राणशक्ति होते हैं। बड़े कार्य में ही करेंगे, यह भवितव्यता आगामी वर्ष साकार होती दिखाई देगी।

क्षेत्रीय संगठन की सुव्यवस्थित रीति-नीति

संगठन-सशक्तीकरण की प्रक्रिया सारे देश में गतिशील हो चुकी है। सात जोनल एवं चौदह उपजोनल केंद्र सक्रिय हो चुके हैं। शाँतिकुँज के केंद्रीय प्रतिनिधि इन कार्यालयों में जाकर बैठने लगे हैं। अब यह एक विराट गायत्री परिवार रूपी संगठन का एक सुव्यवस्थित रूप बनकर सामने आ रहा है। अब हर कार्य के लिए क्षेत्र के कार्यकर्त्ता केंद्र का मुँह नहीं देखेंगे। जोनल केंद्र इनकी आवश्यकता को पूरा कर रहे हैं व आगे और दक्षता के साथ संपन्न करेंगे। अब हर यूनिट अपना कार्यक्षेत्र सँभालने लगे और सातों आँदोलनों की योजनाओं को गति देने लगे, यह एक बहुत बड़ी आवश्यकता है। पत्रिकाओं के पाठक अब बढ़ने ही चाहिए। परमपूज्य गुरुदेव का लिखा साहित्य संजीवनी समान है। अपने साहित्य विस्तार पटलों, शक्तिपीठों, ज्ञान केंद्रों, जोनल कार्यालयों के द्वारा पूज्यवर का साहित्य जन-जन तक पहुंचना चाहिए। इस जनजागरण के ज्ञानयज्ञ से ही वह पुरुषार्थ संपन्न होगा, जो प्रतिभाओं को मलाई की तरह तैराकर समाज रूपी दुग्धसागर में ऊपर ले आएगा। ये प्रतिभाएँ ही नवसृजन के कार्यों में लगेंगी।

मिशन का-अखिल विश्व गायत्री परिवार का कार्यक्षेत्र अत्यंत व्यापक है। इसमें हर व्यक्ति के लिए कार्य करने की अनंत संभावनाएँ हैं। न्यूनतम साधन वाले, पर भावना की दृष्टि से प्रबल व्यक्तियों से लेकर साधन-संपन्नों, हर व्यक्ति के लिए स्वयं के समयदान-अंशदान नियोजित करने हेतु एक बड़ा व्यापक क्षेत्र है। शिक्षा से लेकर कृषि, ग्रामीण स्वावलंबन से लेकर स्वास्थ्य-संवर्द्धन तथा युग-साधना विस्तार (देवालय प्रबंधन) से लेकर पर्यावरण के प्रति जागरुकता का संवर्द्धन, नशा-निवारण, कुरीति-उन्मूलन जैसे ढेरों कार्य हमारे सामने हैं। इनमें भागीदारी करने हेतु हमारे क्षेत्र के संगठित समूहों, समन्वय समितियों, प्रज्ञामंडलों, ट्रस्टों से जुड़ी समितियाँ, सभी को प्रतिभाओं से भावभरा आह्वान करना चाहिए। ऐसे सदुद्देश्य व सुनिश्चित कार्यप्रणाली सामने होते हुए ढेरों व्यक्ति सामने आएँगे और विभिन्न आँदोलनों को अपने हाथ में ले लेंगे। अपने परिवार, अखण्ड ज्योति पाठकों के समुदाय में भी ढेरों ऐसे हो सकते हैं, जो अभी उस भूमिका में न उतर पाए हों। उनके लिए भी, प्रशिक्षित हो इस नवनिर्माण के महायज्ञ में भागीदारी हेतु भावभरा आमंत्रण है।

क्या हैं हम तैयार

‘महाकाल’ की तैयारी में हमारी अपनी तैयारी कितनी है, उसका मूल्याँकन करने का सही समय आ गया है। अब शाँत बैठकर भजन करने का नहीं, समाजदेवता-राष्ट्रदेवता की आराधना हेतु स्वयं को नियोजित करने का समय आ गया है। भविष्य निश्चित ही उज्ज्वल है। हम आगे बढ़कर श्रेय ले लें, अपनी भूमिका निभा लें। समय चूक जाने पर तो पछतावा ही शेष रहता है।


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