कंप्यूटर का वरदान बन रहा है अभिशाप

December 2003

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कम्प्यूटर का आविर्भाव इस युग की एक क्रान्तिकारी घटना रही है, जिसने मानवीय जीवन की कार्यक्षमता में अप्रत्याशित वृद्धि कर मानवीय सहायता को एक नई दिशा दी। पहले जो कार्य घण्टों एवं दिनों में होते थे वे इसके रहते आज मिनटों में होने लगे हैं। इसके बहुआयामी उपयोग के कारण आज कम्प्यूटर मनुष्य का एक अभिन्न सहयोगी के रूप में उभरकर सामने आया है। इसके बिना जीवन की कल्पना मात्र दूभर है। भारत में हालाँकि इसका प्रवेश अधिक पुराना नहीं है, किन्तु तीव्रता से इसमें वृद्धि हो रही है। इस समय लगभग तीन लाख लोग इसका पेशे के बतौर उपयोग कर रहे हैं। जबकि पश्चिम के विकसित देशों में तो यह तादाद भारी-भरकम है। अकेले अमेरिका में लगभग पाँच करोड़ लोग कम्प्यूटर व्यवसाय के रूप में उपयोग कर रहे हैं।

जिस कम्प्यूटर का आविर्भाव मनुष्य के अभिन्न सहयोगी सहचर के रूप में हुआ, अपनी बहुआयामीय उपयोगिता के कारण जो मनुष्य के लिए एक वरदान के रूप में प्रकट हुआ, वही आज अपने घातक दुष्परिणामों के कारण अभिशाप भी सिद्ध हो रहा है। कम्प्यूटर के अत्यधिक उपयोग के कारण उत्पन्न हो रही नाना प्रकार के भयंकर रोग इसकी सूचना दे रहे हैं। अकेले अमेरिका में इसने हजारों लोगों का जीवन पंगु बना दिया है और अधिकाँश लोगों को अपने व्यवसाय एवं नौकरियाँ छोड़ने के लिए विवश कर दिया है। चिकित्सा विज्ञान ने इन रोगों को ‘कम्प्यूटर रिलेटेड डिसिस’ अर्थात् कम्प्यूटर संबन्धित रोग कहा है। कम्प्यूटर के अत्यधिक उपयोग से होने वाले इन रोगों में ‘रोटेटर कफइंज्यूरस’ अर्थात् कन्धों के जकड़ जाने से होने वाला असह्य दर्द, ‘एपिको इलाइटीस’-टेण्डन घिसने से कोहनी एवं बगल के स्नायु में पीड़ा एवं सूजन आना, ‘टेनोसाइनोवाइटीस’ हथेली की माँसपेशियों में सूजन वाली कोशिकाओं पर अधिक दबाव से स्नायुओं का निष्क्रिय बनना और ‘टेंडिनाइटिस’-टेण्डन में सूजन आने से हाथ के स्नायुओं में जलन व दर्द मुख्य हैं। इन रोगों के प्रमुख शिकार चार्टर्ड एकाउन्टेंट, मैनेजमेंट कंसल्टैंट, शेयर दलाल, वकील एवं पत्रकार हुए हैं, जो पूरा दिन कम्प्यूटर की-बोर्ड पर काम करते और स्क्रीन पर नजरें गड़ाये रहते हैं।

कम्प्यूटर से उत्पन्न रोगों की इसी शृंखला में एक घातक रोग है ‘रिपिटेटीव स्ट्रेस इंज्यूरस’(आरएसआई), जो व्यक्ति को अपंगता के अभिशाप से तक ग्रसित कर देता है। यह रोग मुख्यतः प्रतिदिन एक सा काम करने वाले लोगों को होता है, क्योंकि उनके कुछ निश्चित अंगों को अत्यधिक श्रम करना पड़ता है तथा लम्बे समय तक यह स्थिति बन रहने पर उपरोक्त रोग उन अंगों की अपंगता के रूप में प्रकट होता है।

पिछले दिनों अमेरिका की सुप्रतिष्ठित पत्रिका ‘रायटर’ के संपादक ग्राँट मेककुल कम्प्यूटर जनित इस रोग का शिकार हो गये और अब वह अपनी रिपोर्ट कम्प्यूटर पर कभी नहीं भेज सकेंगे। वह अब कार भी नहीं चला सकता, क्योंकि उसके पीड़ा ग्रस्त हाथों में स्टियरिंग व्हील पर सही नियंत्रण रखने की शक्ति नहीं रही। मेककुल को इस रोग का अहसास तब हुआ जब रोज घण्टों कम्प्यूटर की-बोर्ड का उपयोग करने के बाद उसके हाथों में ज्वर पस्त पीड़ा होने लगी। सुबह उठने के साथ ही उसके हाथों में जलन एवं जोड़ों में भयंकर दर्द होता। चिकित्सकों ने जाँच के बाद ‘मेककुल’ को कम्प्यूटर का उपयोग तत्काल रोक देने की सलाह दी। इस तरह आज में मेककुल उस रोग के कारण अपंग से स्थिति में है जो उंगली, हथेली, कलाई तथा कंधों में स्नायुओं तथा माँसपेशियों के अत्यधिक उपयोग से जन्म लेता है।

अकेला मेककुल नहीं, अमेरिका के कारखानों और दफ्तरों में काम करने वाले दो लाख कामगार बाबू इस रोग के शिकार हैं। और हर वर्ष इनकी संख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। यही स्थिति कम्प्यूटर का अत्यधिक उपयोग करने वाले अन्य देशों की है। आरएसआई को घातक प्रभाव किसी एक अंग तक सीमित नहीं है। इसके कारण व्यक्ति की कमर से ऊपर का पूरा हिस्सा कई तरह की तकलीफों को भोगता है। इस रोग का पहला शिकार हथेलियाँ तथा आँखें होती हैं। कम्प्यूटर की-बोर्ड के लगातार उपयोग के बाद उँगलियों में दर्द होने लगता है, एवं कलाइयाँ जवाब देने लगती हैं। उंगलियों के जोड़ों में एक तरह की जलन होने लगती है। कई बार तो हाथों में सूजन तक आ जाती है और उंगलियों की सूक्ष्म रक्त वाहिनियों के कमजोर पड़ जाने से उंगलियों के सिरे सफेद पड़ जाते हैं।

कम्प्यूटर से जुड़े घातक रोगों का अन्य नाम है ‘कार्पेल टनल सिंड्रोम’, जो हथेली में कलाई के समीप वाले भाग की माँसपेशियों में सूजन से शुरू होता है। इस रोग से महीनों और वर्षों तक छुटकारा नहीं मिल पाता। अतः इस रोग के चलते अनेक कर्मचारियों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ता है।

यह तथ्य भी सामने आया है कि अधिक मोटे लोगों को कम्प्यूटर रोग होने के आसार अधिक रहते हैं, क्योंकि उसके दोनों हाथ की-बोर्ड तक पहुँचने में कंधों को अंदर की ओर मोड़ देते हैं।

गर्भवती महिलाओं पर भी कम्प्यूटर के दुष्प्रभावों का आँकलन कई प्रकार से होता रहा है। भ्रूण के विकृत होने, उसके नष्ट होने व असहाय संतान के जन्म तक के दुष्प्रभावों को कम्प्यूटर से सम्बन्धित पाया गया है। हालाँकि कम्प्यूटर विशेषज्ञ एवं गायनेकॉलोजिस्ट इस बात पर अधिक बल दे रहे हैं कि कम्प्यूटर के प्रतिकूल प्रभाव के लिए उसके किरणोर्त्सग की बजाये घण्टों तक एक स्थिति में बैठे रहने के कारण होने वाला ‘स्ट्रेस’ अधिक जिम्मेदार है। अनवरत कम्प्यूटर के सामने बैठे रहने से आँखों पर जो जोर पड़ता है, वह अन्ततः मानसिक तनाव में पलट जाता है।

कम्प्यूटर जनित रोगों के कारण जहाँ व्यक्ति का स्वास्थ्य घातक रूप से प्रभावित हो रहा है, वहीं कम्पनियों एवं संस्थानों की कार्यक्षमता भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। अमेरिका में ही अनेक कम्पनियों को अपने कर्मचारियों की उत्पादन क्षमता घट जाने से हर वर्ष सात अरब डालर का नुकसान उठाना पड़ रहा है। साथ ही कम्प्यूटर रोग से पीड़ित कर्मचारियों की चिकित्सा के पीछे भी करोड़ों डॉलर खर्च करने पड़ रहे हैं। अनेक कम्पनियों ने आरएसआई पीड़ित कर्मचारियों को कम और हल्के काम वाले विभाग में ‘ट्राँसफर’ कर दिया है। दूसरी ओर अधिकाँश कामगार संगठनों की माँग है कि कम्पनी संचालक अपने कर्मचारियों को अधिक बेहतर की-बोर्ड वाले कम्प्यूटर उपलब्ध कराये तथा दफ्तर के फर्नीचर में सुधारकर कम्प्यूटर आपरेटर को प्रति दो घण्टे पर पंद्रह मिनट का विश्राम दें।

कम्प्यूटर रोग के उपचारार्थ अपने स्तर पर प्रयास चल रहे हैं। ‘लास ऐन्जिल्स टाइम्स’ समाचार पत्र ने अपने कार्यालय में ‘रिपिटँटीव स्ट्रेस इंज्यूटस रूम’ खोला है। कम्प्यूटर या वर्ड प्रोसेसर का उपयोग करने वाले कर्मचारी हाथ में पीड़ा अनुभव करे तो इस कक्ष में जाकर बर्फ लगा सकता है। मरहम लगाकर पीड़ा को कम कर सकता है और पीठ में दर्द अनुभव होने पर थोड़ी देर फोम रबर के गद्दे पर लेटकर संकुचित हुई स्नायुओं को विश्राम दे सकता है।


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