पश्चाताप (Kahani)

December 2003

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उन दिनों कटक में जोरों को हैजा फैला था। उसका प्रकोप मुसलमानों की गरीब बस्ती डडिया बाजार में था। व्यक्ति कीड़े-मकोड़ों की भाँति मर रहे थे। सुभाषचंद्र बोस की अध्यक्षता में एक सेवादल संगठित हुआ। लोग बीमारों के पास जाते, उन्हें दवाइयाँ, पथ्य देकर अन्य सदस्यों को बीमारी से सुरक्षा के नियम बताकर उन्हें ढाढ़स बँधाते थे। हैदर खाँ बेहद गुँडा प्रकृति का था, उसी मुहल्ले में रहता था। उसने दल के सदस्यों को धमकाया तथा मुहल्ले में इस बात का प्रचार किया कि यह सेवादल बाबू पाँडे के व्यक्तियों का है, क्योंकि उस मुहल्ले में वकील रहते हैं। वकीलों के कारण मुझे जेल काटनी पड़ी। इसलिए ये सब मेरे शत्रु हैं।

एक दिन हैदर के बड़े लड़के को रोग ने अपने पंजों में दबोच लिया। हैदर को कोई भी डॉक्टर उपलब्ध न हो सका, क्योंकि सभी डॉक्टर रोगियों की सेवा में व्यस्त थे।

संध्या समय जब हैदर निराश होकर अपने मकान पर गया तो उसने देखा कि सेवादल के व्यक्ति उसके लड़के की सेवा-सुश्रूषा करने तथा दवा देने में व्यस्त हैं। उसने सेवादल के नवयुवकों से कहा, आप मेरे घर क्यों आए? स्वयंसेवकों ने कहा, यह हमारा भाई है, यदि हम न आते तो यह दुनिया से कूच कर जाता। हमारी शत्रुता आपसे हो सकती है, इस बेगुनाह लड़के की जिंदगी से नहीं।

हैदर का सारा कलुष इन शब्दों से घुलकर आँखों में आ गया। उसने युवक से रो-रोकर कहा, मेरे बच्चे मुझे क्षमा करो।


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