नई राहें (Kavita)

December 2003

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दिशा दिखाई दिव्य गुरु ने हमने भी तो ठानी है। विकसित कर अपनी प्रतिभा को राहें नई बनानी है॥1॥

सूख गए संवेदन के स्वर निष्ठुरता अपनाई है, भावों की संकीर्ण वृति ने भीषण आग लगाई है, भेद मिटा दो आज यहाँ से अपने और विराने का, सबके हित संकल्पों का है वक्त आज दोहराने का, अंतर का उल्लास जगाकर ममता मधुर जगानी है॥2॥

काम बड़ा है आज सामने नवयुग के निर्माण का, गीध गिलहरी वानर भालू के जैसे अभियान का, जो भी अपनी बने भूमिका उसका आज निभाना है, श्रेष्ठ कार्य के लिए समर्पण का जौहर दिखलाना है, युगों-युगों में मिले सुअवसर बाजी नहीं गंवानी है॥3॥

दृष्टि दोष ने छीन लिया है दिल दिमाग का बड़ा सकून, अवाँछनीयता जोंक की तरह चूस रही काया का खून, सबसे पहले निज सुधार की शपथ हमें है खानी, फिर परिवार समाज देश के लिए बने बलिदानी, हर कुरीति से लड़ना है हर शंका दूर भगानी है॥4॥

सूक्ष्मलोक से गुरुवर द्वारा मिलता प्रखर प्रकाश है, विकट समस्या के निदान का चलता सतत प्रयास है, एक अनोखी नई कहानी का सुपात्र बन जाना है, अपने सत्कर्मों से ही धरती को स्वर्ग बनाना है, अब अनुग्रहीत अनुदानों की बही धार तूफानी है॥5॥

-शोभाराम शशाँक


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