क्या कोई हमें बुला रहा है सुदूर अंतरिक्ष से

December 2003

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अज्ञात् परलोकवासियों के प्रति प्रबल जिज्ञासा भी वैज्ञानिक खोज एवं अनुसंधान की एक प्रेरक शक्ति रही है। यह जिज्ञासा नई नहीं है बल्कि प्राचीन काल से ही इनके प्रति रोमाँचक कल्पना की जाती रही है। इनके सम्बन्ध में तरह-तरह की कथा-किम्वदंतियां गढ़ी एवं कही जाती रही है। परन्तु जैसे-जैसे ज्ञान-विज्ञान का प्रकाश फैलता गया इस मोहक परिकल्पना में नये-नये पन्ने जुड़ते गये, नित नये आयाम खुलते गये। आज विज्ञान का आधुनिक अन्वेषण यह प्रमाणित करने में जुटा है कि परलोकवासियों के अस्तित्व की कल्पना महज परिकल्पना ही नहीं है वरन् यह एक यथार्थ सच्चाई है। विज्ञान के इस प्रयत्न-पुरुषार्थ में कुछ आशा की किरणें झलकी हैं, कुछ अनजान जानकारियाँ प्राप्त हुई हैं, अबूझ रहस्य की हल्की सी झलक-झाँकियाँ भी मिली है।

विज्ञान के अन्वेषण का आधार प्रत्यक्ष है अप्रत्यक्ष नहीं। यह प्रत्यक्ष को प्रमाण मानता है। यही इसकी प्रमाणिकता और सर्वोपरि सच्चाई है और इस सच्चाई को चुनौती देती है- परलोकवासियों की अनबूझ हलचलें, रहस्यमयी गतिविधियाँ। परलोकवासी भ्रमण करते-करते कभी किसी उड़न तश्तरी या विचित्र यान से धरती के वायुमण्डल में पहुँच जाते हैं। इस यान एवं इसके यात्रियों के क्रियाकलाप अपनी धरती से अनमेल एवं अनोखे होते हैं और यह घटना इतना प्रत्यक्ष होती है कि इसे वैज्ञानिक नकार भी नहीं सकते। एक बार परलोकवासियों की उड़नतश्तरी का विस्फोट हुआ, जिसके मलबे से निकला एक भी तत्त्व धरती के किसी तत्त्व से मेल नहीं रखता था। आखिर ये तत्त्व हैं क्या? और कहाँ से आये? कौन इसका निर्माता है और इसी कारण इन अनसुलझे रहस्य को सुलझाने में विज्ञान के तमाम अन्वेषण-अनुसंधान निरत हो गये।

परलोकवासियों की चित्र-विचित्र उड़न तश्तरियों का पीछे करने के बावजूद जब कुछ हाथ नहीं लगा तो रेडियो तरंगों के माध्यम से उनसे संपर्क साधने का प्रयास किया गया। अनन्त आकाशगंगा में रेडियो तरंगों के माध्यम से परलोकवासियों की खोज-खबर लगाने की सिलसिला सन् 1960 में अमेरिकी रेडियो खगोल विज्ञान फ्रेंक ड्रेक ने वेस्ट वर्जीनिया के ग्रीन बैंक में प्रारम्भ किया। इस अहायान को ‘आजमा’ कहा गया। इस अहायान से प्रेरित होकर इसके कुछ समय पश्चात् प्रसिद्ध अमेरिकी अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन नासा ने भी इसी उद्देश्य के लिए एक बड़ी परियोजना प्रारम्भ की। इस परियोजना को सेती (स्श्वञ्जढ्ढ) अर्थात् सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरीटोरियल इंटेलीजेंस का नाम दिया गया। सेती अत्याधुनिक कंप्यूटर नेटवर्किंग कार्यक्रम से जुड़ा है।

नासा का सेती परलोकवासियों से संपर्क साधने के लिए सतत् रेडियो तरंगों को प्रक्षेपित करता है। चूँकि परलोक से धरती की दूरी स्थायी नहीं है। यह घटती-बढ़ती रहती है। इससे रेडियो तरंगों की आवृत्ति में भी अन्तर आता है। इस सबको ध्यान में रखकर सेती ने हाइड्रोजन परमाणु की आवृत्ति का चुनाव किया है, क्योंकि ब्रह्मांड में यही तत्त्व सर्वाधिक एवं पर्याप्त मात्रा में विद्यमान है तथा रेडियो संकेतों के रूप में सर्वाधिक उपयुक्त है। इस अन्वेषण के दौरान अब तक लगभग सैकड़ों अनजानी-अजनबी रेडियो तरंगों को प्राप्त किया जा चुका है। परन्तु इससे परलोकवासियों के किसी रहस्य का उजागर-उद्घाटन नहीं होता है। इसके दो कारण हैं- प्रथम ये सिगनल एक बार प्राप्त होने के पश्चात् दुबारा नहीं मिल सके। इससे संदेह होना है कि ये संकेत परलोकवासियों के हैं या नहीं। दूसरा कारण है इन संकेतों की उपस्थिति अत्यन्त क्षणिक व अल्प समय के लिए रही। इसके बावजूद इस प्रयोग परीक्षण को असफल नहीं कहा जा सकता है।

आशा-निराशा के कुहासे में डूबते-उतरते 15 अगस्त 1966 को आहियो में एक अनजान रेडियो संकेत को दर्ज किया गया। यह संकेत अत्यन्त अनोखा एवं अद्भुत था, जो धनु तारामण्डल के अज्ञात परलोकवासियों द्वारा सम्प्रेषित किया गया था। सिगनल ने वैज्ञानिकों को चकित व हतप्रभ कर दिया था। इसके ‘वाउ सिगनल’ कहा गया। इसके ठीक एक दशक पश्चात् 10 अगस्त 1986 इसी तारामण्डल से एक और सिगनल मिला।

इसे हार्बर्ड में दर्ज किया गया। इसी प्रकार कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक अद्भुत सिगनल प्राप्त करने का दावा किया है। इसी प्रकार कन्या, मीन और सर्पधारी तारामण्डलों से भी रेडियो संकेत प्राप्त हो चुके हैं।

ठोस एवं सटीक संकेत प्राप्त करने के लिए सन् 1974 में अरीसिवो (न्यूटीरिको) स्थित संसार के सबसे बड़े रेडियो टेलिस्कोप से हर्क्युलिस तारामण्डल की ओर एक प्रभावी रेडियो संदेश भेजा गया। इसमें कम्प्यूटर की बाइनरी प्रणाली का उपयोग किया गया। संदेश की पहली लाइन में एक से दस की संख्याएँ हैं। इसके बाद की तीन लाइनों में उन रासायनिक यौगिकों को दर्शाया गया है जो जीवों के लिए आवश्यक है। इसके नीचे डी एन ए अणु की तस्वीर अंकित है। इसके ठीक नीचे मानव आकृति बनी है जिसके दोनों ओर संख्याएँ हैं। दायीं ओर की संख्या मानव की लम्बाई बनाती है और बाई ओर की संख्या धरती पर मानव की आबादी दर्शाती है। अगली लाइन में सूरज और धरती समेत सौरमण्डल के सभी ग्रहों को अंकित किया गया है। सबसे नीचे रेडियो टेलिस्कोप की तस्वीर बनी है जिससे संदेश प्रसारित किया गया है। यूँ तो हर्क्युलिस तारामण्डल हमसे 24,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है और इससे जवाब आया भी तो सन् 5000 में आयेगा। इस सबके बावजूद वैज्ञानिक परलोकवासियों के किसी संकेत सूत्र के प्रति आशान्वित हैं।

परलोकवासियों से संपर्क साधने के लिए रेडियो संदेशों के अलावा चित्रों व ध्वनियों का भी प्रयोग किया जा रहा है। नासा के अन्तरिक्ष अनुसंधानकर्त्ता समय-समय पर कुछ ऐसे मानवरहित खोजी यान अन्तरिक्ष में भेजते रहते हैं। ये अन्तरिक्ष यान हमारे सौरमण्डल से दूर एवं आगे जाते हैं। इन यानों में चित्र लगाये जाते हैं। इस क्रम में स्पेस भ्रोजा पायोनियर-10-2-11 पर एक ऐसा चित्रपट लगाया गया जिससे परलोक के बुद्धिमान प्राणी हमारी धरती के संदर्भ में जान व समझ सकें। इसमें हाइड्रोजन परमाणु नर-नारी की आकृति, एक अन्तरिक्ष यान का रेखाचित्र और सौरमण्डल अंकित किया गया है। सही दूरी दर्शाने के लिए हाइड्रोजन परमाणु के तरंग दैर्ध्य को इकाई माना गया है। इसी तरह वायेजर-1 और वायेजन-2 नामक स्पेस प्रोब्स में धरती की विभिन्न प्रकार की आवाजों और व्यक्तियों को एक एल.पी. (लाँग प्लेइंग रिकार्ड) में रिकार्ड किया गया है। इसमें विभिन्न भाषाओं में अभिनन्दन-अभिवादन के स्वर भी अंकित हैं। साथ ही धरती की जानकारी देने वाले चित्र भी चित्रित हैं। सम्भव है कोई परलोकवासी इस स्वर को सुने और इस पता के माध्यम से धरतीवासियों से संपर्क साधें।

परलोकवासियों के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि ब्रह्मांड अनन्त है और इसमें हमारी पृथ्वी जैसी अनेकों-असंख्यों ग्रह हो सकते हैं जिसमें हमारी धरती के समान या इससे उन्नत विकसित सहायताएँ हो सकती हैं। धार्मिक मान्यताएँ इसे पुष्ट करती भी हैं। इसके अनुसार विश्व ब्रह्मांड में अनेकों लोक-लोकान्तर हैं और वहाँ पर आवागमन का अपना विशिष्ट विधि-विधान भी हैं। इन गुप्त रहस्यों का अनावरण करके इन लोक-लोकान्तर का आनन्दपूर्वक भ्रमण किया जा सकता है। वैज्ञानिक इन तथ्यों-रहस्यों से तो सहमत नहीं है परन्तु अपने कुछ वैज्ञानिक कारणों के द्वारा वे भी मानने लगे हैं कि इस असीम अनन्त अन्तरिक्ष में धरती जैसी किसी उन्नत एवं विकसित सहायता का अस्तित्व विद्यमान है। इसके लिए वे कई प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।

समस्त ब्रह्मांड में प्रकाश, ध्वनि और गंध व्याप्त हैं। परमात्मा की इस सृष्टि में कोई कार्य निष्प्रयोजन नहीं होता है। क्या इस विराट् ब्रह्मांड में इन भौतिक द्रव्यों का प्रयोजन केवल पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्य मात्र के लिए है या किसी और लोक में रहने वाले परलोकवासियों के लिए भी उपयोगी है? वैज्ञानिक स्वीकारते हैं कि यदि अन्य लोक के निवासी हैं तो उनके पास इन संवेदनाओं को ग्रहण करने वाली इन्द्रियाँ भी होनी चाहिए। साथ ही इन पर नियंत्रण एवं नियमन करने के लिए मन-मस्तिष्क के साथ संचार तंत्र भी विद्यमान होना चाहिए। इस प्रकार इन तथ्यों से अन्य लोकों के निवासियों की एक शारीरिक संरचना की परिकल्पना उभरती है। इस परिकल्पनाओं के आधार पर अनेकों लेख, वृत्तचित्र, चलचित्र एवं धारावाहिकों का भी निर्माण हो चुका है, जिसमें अन्तरिक्षवासियों की शारीरिक संरचना एवं अन्य क्रियाकलापों पर रोमाँचक कल्पना को दृश्यचित्र में उतारा, उकेरा गया है।

वैज्ञानिक मनुष्य की आँखों एवं कानों की सीमित क्षमता के विपरीत अन्तरिक्षवासियों की आँखों एवं कानों को व्यापक एवं विस्तृत रूप में परिकल्पित करते हैं। इनमें पराबैंगनी किरणों को देखने की सामर्थ्य तथा अल्ट्रा व सुपरसोनिक ध्वनि को सुन सकने की सम्भावना हो सकती है। इसी कारण वे जब धरती पर आते-जाते हैं तो उन्हें जाना-पहचाना नहीं जा सकता है। ब्रह्मांड में लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई के तीन आयामों के अलावा एक चौथा आयाम समय भी है, जिसे देखा नहीं जा सकता। एच.जी. वेल्स ने अपनी ‘टाइम मशीन’ में इसकी विस्तृत विवेचना की है। जिसके अनुसार वर्तमान समय के समान भूत और भविष्य के समय में गति की जा सकती है। वैज्ञानिक मान्यता है कि अन्य लोकों के निवासी बहुआयामी हो सकते हैं और इसी कारण हमारा त्रिआयामी मस्तिष्क उनका पता-परिचय न जान पा रहा है।

परिकल्पनाओं के इस परिदृश्य में वैज्ञानिक अन्तरिक्ष वासियों के अस्तित्व की कल्पना करते हैं तथा इसे स्वीकार करते हैं कि सुदूर आसमान में अवश्य ही कोई सहायता व संस्कृति होगी। धार्मिक मान्यता इसकी जानकारी अपने मन के माध्यम से प्राप्त करती है। इस प्रकार वैज्ञानिक अन्वेषणों के साथ धार्मिक एवं यौगिक प्रक्रियाओं को समन्वित किया जा सके तो इन अदृश्य, अजनबी एवं अनजान लोकों का परिचय प्राप्त किया जा सकता है तथा इन लोकों के निवासियों से संपर्क साधा जा सकता है। अगर यह योग एवं समन्वय सम्भव हो सके तो अनेक अप्रकट एवं अनबूझ रहस्यों को अनावृत्त किया जा सकता है और सम्भव है इसमें लोकान्तर गमन की मानवीय जिज्ञासा पूर्ण हो सके।


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