श्रमिक पत्थर काटते-काटते थक गया तो सोचने लगा, किसी बड़े मालिक का पल्ला पकड़ लें, ताकि अधिक आय मिले और कम परिश्रम पड़े।
सोचते-सोचते वह पहाड़ पर चढ़ गया और शिखर पर अवस्थित देवी की प्रतिमा से याचना करने लगा। उसने भी बात सुनी नहीं तो सोचा, बड़े देवता की आराधना करें।
बड़ा कौन? तो उसे सूर्य सूझा। सूर्य की आराधना करने लगा। एक दिन बादल आए और सूर्य को अपने आँचल में छिपा दिया। सोचने लगा, सूर्य में बादल बड़ा है। उसने अपना इष्ट बदला और बादल की आराधना करने लगा।
फिर सोचा, बादल तो पहाड़ से टकराते और सिर फोड़कर वहीं समाप्त हो जाते हैं, इसलिए पहाड़ का भजन क्यों न करें।
बाद में सूझा कि पहाड़ को रोज हमीं काटते हैं। अपने आप को सबसे बड़ा क्यों न मानें?
इसके बाद वह सबको छोड़कर अपने आप को सुधारने लगा और कुछ दिन बाद पुरुषार्थ के सहारे उस क्षेत्र के बड़ों में गिना जाने लगा।