मनुष्य की श्रेष्ठता (Kahani)

December 2003

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स्वाइत्जर ने एक पुस्तक लिखी है-’हम वी से एनीमल्स’ (हम जिन्हें जानवर कहते हैं) उसमें एक संस्मरण इस प्रकार है-”मैं शाम को परिभ्रमण करने जाता। एक झील के किनारे बैठकर जंगली बत्तखों की जल क्रीड़ा देखा करता। पक्षी प्रतिदिन शाम को पाँच बजे जंगल की एक उपत्यिका की ओर उड़ जाते थे। एक दिन एक माली ने उनमें से एक बच्चे के पंख काट दिए। उस दिन नियत समय पर पक्षी उड़े, पर आकाश में चक्कर काटते रहे, पर वे गए नहीं, फिर नीचे उतर आए। कुतूहलवश मैंने जाकर देखा-नन्हे बच्चे के स्नेह ने उन्हें घर जाने नहीं दिया। जब तक उस बच्चे के नए पंख नहीं उग आए, पक्षी समुदाय खूंखार जंगली जानवरों से भरे उस जंगल में जी बना रहा।”

यह मार्मिक उदाहरण देकर उन्होंने समझाया कि पशु-पक्षी तक अपने समुदाय की सेवा के लिए जान तक देने को तैयार रहते हैं फिर मनुष्य अपने समाज की पीड़ा न पहचाने तो मनुष्य की श्रेष्ठता कहाँ रही?


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