सत्य और सज्जनता (Kahani)

December 2003

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एक राजा को अपने मंत्री का चुनाव करना था। सभी दरबारी इकट्ठे किए गए।

राजा ने दरबार में एक बोतल बंद करके पानी छिड़क दिया और सभी से पूछा, “यह इत्र कन्नौज से आया है। इसकी सुगंध कैसी है अपनी-अपनी सक्षमता बताओ तो?”

राजा को खुश करने के लिए सभी दरबारी सुगंधि की भरपूर प्रशंसा करने लगे। अंत में दबी जबान से एक जमादार ने कहा, “सुगंधि तो जरा भी नहीं आती। कारण मेरी नाक खराब होना भी हो सकता है।” राजा ने उस सत्यवक्ता को मंत्री बनाया।

लोमड़ी और खरगोश पास-पास रहते थे। खरगोश घास चरता और खेत को नुकसान न पहुँचाता। किसान भी उसकी इस सज्जनता से परिचित था। सो रहने के लिए एक कोने में जगह दे दी।

एक दिन लोमड़ी उधर से आई और खरगोश से पूछने लगी, “मक्की पक रही है, कही तो पेट भर लूँ?” खरगोश ने कहा, “खेत से पूछ लो। वह कहे, वैसा करना।” लोमड़ी ने आवाज बदलकर खेत की ओर से कहा, “खा लो, खा लो।”

इतने में किसान का पालतू कुत्ता आ गया। वह सब देख और सुन रहा था। उसने आते ही खेत से पूछा, “बताओ तो इस धूर्त लोमड़ी को मजा चखा दूँ?” फिर स्वर बदलकर कहा, “धूर्त लोमड़ी की टाँग तोड़ दो।”

कुत्ते को झपटते देखकर लोमड़ी नौ-दो-ग्यारह हो गई। सज्जनता का व्यवहार छद्मयुक्त होने के कारण आकर्षक तो लगता है, पर उसकी पोल अंततः खुल ही जाती है।


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