केंद्र के समाचार-विश्वव्यापी हलचलें

November 2002

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प्रस्तुत समाचार स्तंभ ‘अखण्ड ज्योति’ के पाठकों के लिए इस कारण आरंभ किया गया कि केंद्र व सारी जगती में कहाँ क्या घट रहा है, इसकी जानकारी उन्हें मिल सके। चूँकि सभी परिजन-पाठक पाक्षिक ‘प्रज्ञा अभियान’ नहीं मँगाते, समाचार उन्हें मिल नहीं पाते, इसलिए यह स्तंभ आरंभ किया गया। यह पत्रिका तीन माह पूर्व छपने चली जाती है, इसमें समाचार तब के ही होते है, जो पढ़ते समय पुराने लगते है। ताजे व नित्य−नवीन समाचार हेतु पाठक यदि ‘पाक्षिक’ प्रज्ञा अभियान मँगाने लगे (वार्षिक चंदा 20 रुपये), तो वे इस विराट् तंत्र की विधि-व्यवस्था व नई-नई स्थापनाओं की नियमित जानकारी ले सकेंगे। इस अनुरोध के साथ इस अंक के समाचार प्रस्तुत हैं।

दक्षिण का सघन मंथन कन्याकुमारी की तैयारी

दक्षिण भारत के चार प्रांतों के लिए कार्यकर्त्ताओं समयदानियों को योजनाबद्ध ढंग से शिक्षण देने हेतु एक दौरा दक्षिण म. प्र., छत्तीसगढ़ व उड़ीसा का तथा दूसरा नागपुर केंद्र सहित सारे महाराष्ट्र का जुलाई बीस तक संपन्न हो चुका था। अब तीसरा प्रवासक्रम दस कार्यकर्त्ताओं के विभिन्न दिशाओं में भेजे दलों के द्वारा आरंभ हुआ है, जिसमें आँध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम, विजयवाडा, तिरूपति व हैदराबाद तमिलनाडु के चैन्नई, मदुराई, कन्याकुमारी, कोयंबटूर सहित केरल के तिरुअनतपुरम, त्रिचूर एवं कर्नाटक के बैंगलोर, मैंगलोर, मैसूर एवं बेलगाम में कार्यकर्त्ताओं की गोष्ठियाँ आयोजित की गई है। लक्ष्य है कन्याकुमारी में 25 की दिसंबर या 26 की जनवरी से एक विराट् आश्वमेधिक आयोजन एवं तब तक पूरे दक्षिण भारत का संगठनात्मक मंथन। विशाखापट्टनम, विजयवाडा, हैदराबाद, तिरूपति, चैन्नई में कार्यालय स्थापित हो गए है। शेष सभी केंद्रों में क्षेत्रीय (जोनल) उपकेंद्र बनाना इस दौरे का मूल प्रयोजन है।

जोहान्सबर्ग में विराट् आयोजन

दक्षिण अफ्रीका के सबसे बड़े शहर जोहान्सबर्ग में सितंबर में संपन्न ‘अर्थ सम्मिट’ (पृथ्वी सम्मेलन’ के तुरंत बाद गायत्री आश्रम लेनेशिया के कार्यकर्त्ताओं ने मखवासी, डरबन एवं प्रिटोरिया में बड़े आयोजनों का क्रम रखा था, जिसकी तैयारी के लिए एक दल अगस्त के प्रथम सप्ताह में ही जा चुका था। बाद में देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति इस पत्रिका के संपादक भी पहुँचे एवं उनने भावनाशील परिजनों के एक विराट् समुदाय को इस नवीन स्थापना की जानकारी दी। समग्र अफ्रीका से कार्यकर्त्ताओं का वहाँ मिलन समारोह हुआ व संगठनात्मक चर्चाएँ भी हुई। 17 कुँडी महायज्ञ में भाग लेकर हजारों व्यक्ति लाभान्वित हुए।

विश्वविद्यालय में खुलते प्रगति के नए आयाम

धर्म विज्ञान केंद्र की स्थापना के साथ साधना संकाय में एक विशिष्ट प्रशिक्षण देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में आरंभ हो चुका है। अब यहाँ धर्मशास्त्र की सभी विधाओं का, पौरोहित्य-ज्योतिर्विज्ञान का भी शिक्षणक्रम चलेगा। इसके साथ ही बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट, अर्थ समिति एवं बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग भी सितंबर माह में सम्पन्न हो गई। प्रगति संतोषजनक है। छात्र-छात्राएँ, शिक्षक व सारे सदस्य कार्य करने में एक विलक्षण आनंद की अनुभूति करते है। विश्वविद्यालय चूँकि आवासीय है सारे सदस्य एक परिवार की तरह शाँतिकुँज की ही दिनचर्या अपनाकर अपना दैनंदिन कार्य कर रहे है।

सीसवाली-कोटा में एक महाकुँभ

परमपूज्य गुरुदेव ने नरमेध यज्ञ की तैयारी के दौरान जिस क्षेत्र का सर्वाधिक प्रवास किया था, वह था राजस्थान का हाडौती क्षेत्र उसमें भी कोटा व बाराँ वाला क्षेत्र। कोटा से लगभग 7 किमी. दूर सीसवाली स्थित है। शाँतिकुँज के नैष्ठिक कार्यकर्त्ता श्री रामेश्वर नैनीवाल जी ने ग्राम-ग्राम संपर्क कर अगस्त के द्वितीय सप्ताह में एक विराट् आयोजन अपने गाँव सीसवाली में रखा जिसमें 17 कुँडी महायज्ञ, कार्यकर्त्ता महासम्मेलन, गोशाला की स्थापना तथा देवसंस्कृति विद्यालय का भूमिपूजन रखा गया था, शाँतिकुँज से श्रीमती शैलबाला पंड्या एवं डॉ. प्रणव पंड्या भी 11 अगस्त को एक दिन के प्रवास पर पहुँचे। सारे समारोहों में भाग लिया विराट् जनमेदिनी को संबोधित किया एवं लौटते हुए कोटा शक्तिपीठ में नवनिर्मित बहुउद्देशीय हॉल का उद्घाटन किया कार्यकर्त्ता गाँव गाँव से आए थे एवं दृश्य महाकुँभ की तरह था।

आपदा प्रबंधवाहिनी का पुरुषार्थ

उत्तराँचल प्रांत में विगत भूकंप (गुजरात 26, 1, 1) के बाद केंद्र में एक आपदा प्रबंधवाहिनी का निर्माण किया, जिसमें एक फायर ब्रिगेड, एक चलता फिरता अस्पताल, एक जेनरेटर सहित चलने वाला वाहन पानी की टंकी वाला वाहन एवं दो एंबुलेंस है। पिछले दिनों टिहरी जनपद (उत्तराँचल) के बूढ़ा केदार क्षेत्र में बादल फटने पर यह वाहिनी सूचना मिलते ही घटना के चौबीस घंटे के अंदर पहुँच गई। क्षेत्र दुर्गम था, पर साधनों को ले जाने की सुगमता इस वाहिनी के साथ गए राहत दल के कारण भलीभाँति हो गई चिकित्सकों का दल व राहत सामग्री के पहुँचते ही भुक्तभोगियों को लगा कि मानो देवता आ गए हों। तब तक शासन स्तर पर कोई भी सामग्री नहीं पहुँच पाई थी। अपना कार्य सम्पन्न कर आगे का कार्य शासन को सौंपकर पर वाहिनी पाँचवें दिन लौट आई। गायत्री परिवार हर ऐसी आपदा में कर्त्तव्य निभाने को संकल्पित है।


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