असफलता का ही मुँह (Kahani)

November 2002

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एक साधु तीर्थयात्रा पर निकले। मार्ग व्यय के लिए किसी सेठ से कुछ माँगा, तो उसने कुछ दिया तो नहीं, पर अपना एक काम सौंप दिया। एक बड़ा दर्पण हाथ में थमाते हुए कहा, प्रवासकाल में जो सबसे बड़ा मूर्ख आपको मिले, उसे दे देना। संत बिना रुष्ट हुए उसका काम कर देने का वचन देकर दर्पण साथ ले गए। बहुत दिन बाद वापस लौटे, तो सेठ को बीमार पड़े पाया। संग्रहीत धन से वे न अपना इलाज करा पाए और न किसी सत्कर्म में लगा पाए। मरणासन्न स्थिति में संबंधी, कुटुँबी उनका धन-माल उठा-उठाकर ले जा रहे थे। सेठ जी को मृत्यु और लूट का दुहरा कष्ट हो रहा था। साधु ने सारी स्थिति समझी और दर्पण उन्हीं को वापस लौटा दिया। कहा, आप ही इस बीच सबसे बड़े मूर्ख मिले, जिसने कमाया तो बहुत, पर सदुपयोग करने का विचार तक नहीं उठा।

कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए भारत के माने हुए इंजीनियर बनने में सफल हुए विश्वेश्वरैया ने अपनी आत्मकथा में उन सिद्धाँतों पर प्रकाश डाला है, जिनके कारण वे प्रगति पथ पर अग्रसर हो सके। पुस्तक का नाम है, मेमायर्स ऑल माई वर्किंग लाइफ।

वे लिखते है- मैंने चार सिद्धाँतों को आदि से अंत तक अपनाए रखा। जो मेरी ही तरह सफल जीवन जीना चाहते है, उन्हें उन्हीं का स्मरण दिलाना चाहता हूँ और अनुरोध करता हूँ कि इन्हें मेरी ही तरह अपनाएँ। वे सिद्धाँत इस प्रकार है-

1. लगन से काम करो। मेहनत से जी न चुराओ। आराम कड़ी मेहनत के उपराँत ही अच्छा लगता है।

2. निर्धारित कामों का समय नियत करो। समय पर काम करने की आदत डालने से काम अधिक भी होता है और अच्छा भी।

3. यह सोचते रहो कि आज की अपेक्षा कल किस तरह अधिक अच्छा काम हो। जो सीख चुके हो, उससे अधिक सीखने का प्रयत्न करो। सोचो, योजना बनाओ, गुण-दोषों पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के उपराँत काम में हाथ डालो।

4. अहंकारी न बनो। नम्रता का स्वभाव बनाओ। साथियों के साथ मिल-जुलकर काम करने की आदत डालो।

इसके विपरीत येन-केन-प्रकारेण सफलता पा लेने वालों को तो एक दिन अपमान, असंतोष और असफलता का ही मुँह देखना पड़ता है।


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