गुरुकथामृत − 37 - एक पिता, एक मार्गदर्शक, एक भविष्यद्रष्टा संगठक

November 2002

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

‘साधना की धुरी पर संगठन बनाने का शिक्षण’ शीर्षक से इस धारावाहिक शृंखला की पिछली कड़ी (अक्टूबर-2002) में परमपूज्य गुरुदेव के परमवंदनीया माताजी को लिखे पत्रों के माध्यम से कई ऐसे तथ्य प्रस्तुत किए गए थे, जो अभी तक आम कार्यकर्त्ताओं, परिजनों-पाठकों की जानकारी में नहीं रहे है। उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए गुरुसत्ता की प्रव्रज्या अवधि में लिखे पत्रों से कुछ और सीखने का प्रयास करते है। ये पत्र वस्तुतः हम सभी के लिए वे मार्गदर्शक सूत्र प्रदान करते है, जिनसे किसी संगठन को सुव्यवस्थित ढंग से खड़ा किया जाता है। बीज बोने के बाद पानी दिया जाता है, अंकुरित होने की प्रतीक्षा की जाती है, निराई-गुड़ाई से खरपतवार निकाले जाते है एवं फिर उस पौधे की चारों ओर से सुरक्षा कर दी जाती है। निरंतर पानी देने, खाद की व्यवस्था का तंत्र बना दिया जाता है। तब जाकर वह गुरुत्वाकर्षण के विपरीत जमीन फाड़ता हुआ बाहर निकलता है व देखते-देखते एक वटवृक्ष का आकार ले लेता है, जिसकी छाया में असंख्यों को आश्रय मिलता है। यह पुरुषार्थ, जो बीच बोने से वृक्ष के खड़े होने तक किया गया, एक परिपूर्ण साधना है। संगठन भी इसी तरह खड़े खोते है। उनमें भी सब तरह की सतर्कता रखनी होती है एवं एक-एक पक्ष पर गहराई से चिंतन कर उसकी देखभाल करने वालों का एक तंत्र खड़ा किया जाता है। गायत्री परिवार ऐसा ही एक वटवृक्ष है, जो परमपूज्य गुरुदेव के तप एवं वंदनीया माताजी के सजल स्नेह भरे सिंचन से खड़ा हो आज करोड़ों के लिए मार्गदर्शन बना हुआ है।

चाँद्रायण सत्र व साधना द्वारा देवमानवों के निर्माण संबंधी गुरुवर की व्यग्रता उनके क्षेत्र से भेजे पात्रों द्वारा हम पिछली कड़ी में जान चुके है। यहाँ अहमदाबाद से 25-11-71 का लिखा एक पत्र प्रस्तुत है, जिसमें पूज्यवर ने ‘ध्यान-धारणा’ के विषय में लिखा है। क्षेत्र में परिभ्रमण करते हुए भी उनका ध्यान सतत अपनी आगे की रणनीति को बनाने व शिविरों की क्वालिटी सुधारने की ओर रहता था। पत्र पढ़े।

चि. भगवती आशीर्वाद,

कल अंजार-भुज-गाँधीधाम के तीन प्रोग्राम पूरे करके हम आज प्रातः यहाँ लौट आए। आज रात तक पाँच प्रोग्राम पूरे करेंगे। दो रातें रेल में निकली। ढर्रा अपने ढंग से चल रहा है। गाड़ी रुकी नहीं। हमारे पत्र मिल रहे होगे। शायद एकाध दिन में तुम्हारा और कोई पत्र मिले। घर के समाचार जानने की इच्छा रहती है।

इधर जहाँ भी गुँजाइश थी, सभी जगह ध्यान-धारणा का कार्यक्रम था। बड़ा प्रभावशाली और आकर्षक लगा। मन है कि तीनों ध्यानों का एक संयुक्त रूप और बनाया जाए, जिससे एक ही ध्यान में तीनों का समावेश हो। एक पुस्तक में तीनों ध्यान छप रहे है। उसमें इतनी गुँजाइश छोड़ना कि चार पृष्ठ का एक चौथा संयुक्त ध्यान भी दिया जा सके।

पत्र सरल-सा है, पर ध्यान-धारणा के प्रयोगों के आधार पर चिंतन उभरता है कि यह प्रयोग जो समूह मन के जागरण की प्रक्रिया है, अब और विस्तार ले। इसी मार्गदर्शन के अनुसार ‘ब्रह्मवर्चस की पंचाग्नि विद्या’ पुस्तक में वह ध्यान दिया गया, जिससे ढेरों साधकों ने अपनी आत्मिक प्रगति का पथ प्रशस्त किया एवं आज वही संयुक्त ध्यान परमपूज्य गुरुदेव के स्वर में नित्य प्रातः 4-30 से 5 तक शाँतिकुँज में संपन्न कराया जाता है।

मात्र ध्यान ही नहीं, हर उस गतिविधि से जो आज शाँतिकुँज में अथवा शाँतिकुँज द्वारा क्षेत्रों में सम्पन्न हो रही है। पूज्यवर का मानसिक जुड़ाव इस सीमा तक था कि प्रतिदिन के पत्रों में उनका उल्लेख होता था। साथ ही शाँतिकुँज में चल रहे निर्माण कार्य की प्रगति का दिग्दर्शन भी वे वहीं बैठे-बैठे करते रहते थे। एक पत्र लाँजी (बैतूल) से लिखा 19-12-81 का प्रस्तुत है

वसंत पंचमी पर अबकी बार प्रज्ञा पुराण और फार्मेसी का उद्घाटन होना चाहिए। सावित्री ब्लॉक पूरा बन जाए और गैरेज बने तो ठीक है। उसमें कर्मकाँड परंपरा का नया उद्घाटन हो, तो एक साथ तीन उद्घाटन हो जाएँगे, इसलिए उन वर्गों से संबंधित सभी चीजें तैयारी करने का प्रयत्न करना चाहिए। सीमेंट हो तो सावित्री ब्लॉक तथा फैक्टरी-शेड सभी तैयार करा लेना चाहिए। पुस्तक छप सके, इसके लिए पूरा-पूरा प्रयत्न इन दिनों किया जाए।

प्रज्ञापुराण, फार्मेसी, सावित्री ब्लॉक व हॉल का निर्माण, कर्मकाँड द्वारा धर्मतंत्र से लोकशिक्षण की प्रक्रिया का शुभारंभ, यह 1982 की बसंत से आरंभ करने का पूज्यवर का मन था। वे सभी व्यवस्था बनाकर आए थे, पर संगठन वही होता है, जो व्यस्त होते हुए भी हर कार्य पर दृष्टि रखता है एवं बार बार सभी संबंधित व्यक्तियों का ध्यान खींचता रहता है। आज क्षेत्र में प्रज्ञापुराण कथाओं के आयोजन भारी भीड़ खींच रहे है। जनमानस को प्रचलित कथाकारों के बीच एक नई दिशा मिली है। उसके चारों खंड उन्हीं दिनों पूरे होने जा रहे थे। फार्मेसी तब आरंभ की जा रही थी, आज उसकी एक बड़ी बिल्डिंग गायत्री कुँज-विश्वविद्यालय परिसर में बन चुकी है एवं बड़े स्तर पर उत्पादन कार्य चल रहा है। अगले वर्ष के अंत तक वनौषधि विज्ञान, आयुर्वेद, वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति पर शोध का एक नया भवन बनकर खड़ा हो जाएगा। इतना विस्तार होते हुए भी आधार वही छोटी फार्मेसी होगी, जिस पर यात्रा के दौरान भी गुरुवार का ध्यान बना ही हुआ था व प्रगति के लिए वही से वे प्रेरित कर रहे थे। सावित्री ब्लॉक कार्यकर्त्ताओं के रहने के लिए बनाया जा रहा था। आज उसके पीछे की भूमि भी लेने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। सावित्री ब्लॉक की तरह ही करीब छह और भवन बनकर तैयार है, जिनमें प्रायः 1200 से अधिक कार्यकर्त्ता-समयदानी रहते है, पर हम कैसे भूले, उस मार्गदर्शक को, जो हम सभी को क्षेत्र से अनवरत मिलता रहा।

21-12-81 को राजनाँदगाँव (छ.ग.) से लिखे पत्र में पूज्यवर लिखते है-

प्रज्ञापुराण छपने में देर हो, तो हर अध्याय का नंबर 1/1, 2/1, 3/1 क्रम से चालू कराया जा सकता है और कई प्रेस में एक साथ छपा सकता है। नंबर पेज संबंधी कठिनाई इस प्रकार हल हो सकती है।

प्रज्ञा पुराण-आयोजन-डाक-दोनों चौके, फार्मेसी, सावित्री ब्लॉक, कथा-कीर्तन आदि जो क्रम प्रमुख थे, उन्हें समेटना चाहिए। जयपुर-अंबाला वीरेश्वर हो आए होंगे।

सबसे नित्य परामर्श मार्गदर्शन का क्रम चालू रखना। अपने स्वास्थ्य का विशेष रूप से ध्यान रखना। अपनी लड़कियों को उचित समाधान स्नेहपूर्वक देती रहती होगी।

सबको आशीर्वाद

श्रीराम शर्मा

पत्र में ध्यान देने योग्य बात है, प्रज्ञागुण की छपाई संबंधी मार्गदर्शन तथा अंत में सबसे नित्य परामर्श-मार्गदर्शन करते रहने की सलाह। परमपूज्य गुरुदेव जिस तरह सभी वरिष्ठ या विभागीय कार्यकर्त्ताओं को लेकर बैठते थे व विचार-विमर्श करते थे, उसी प्रकार परमवंदनीया माताजी का भी क्रम रहता था। अपनी अनुपस्थिति में वह क्रम चलता रहे, इसी पर उनका जोर था। वस्तुतः यह परामर्श-मार्गदर्शन ही कार्यकर्त्ताओं के समूह नेतृत्व के उभार हेतु एक अनिवार्य प्रक्रिया है। इसी के अभाव में बहुत-से संगठन टूट जाते है, शिखर पुरुष के जाते ही छिन्न-भिन्न हो जाते है, परंतु पूज्यवर ने यह लोकताँत्रिक प्रणाली अपने साथ जीवन भर रखी एवं वही सलाह परमवंदनीया माताजी को भी क्षेत्र से देते रहे।

एक पत्र 27-12-81 का जगदलपुर से लिखा दिया जा रहा है, जो स्वयं में बड़ा स्पष्ट है-

हमारे सभी पत्रों को सामने रखकर परामर्शों की एक शृंखला बनाते रहना चाहिए। सबको साथ रखकर सोचने पर कोई कार्यपद्धति क्रमबद्ध रूप से बन सकती है। सभी को बुलाकर परामर्श करते रहने का सिलसिला जारी रखना चाहिए।

जो बात 21-12 के पत्र में लिखी थी, उसी को 27-12 के पत्र में दुहराया है एवं और भी स्पष्ट रूप में लिखा है। सभी पत्रों को सामने रख वरिष्ठ कार्यकर्त्ताओं से परामर्श व सुझावों के आधार पर कार्यपद्धति का निर्धारण, हमें लगता है कि इससे श्रेष्ठ और क्या कार्यकर्त्ता मार्गदर्शिका हो सकती है। आज परमपूज्य गुरुदेव एवं परमवंदनीया माताजी के महाप्रयाण के बाद जो विराट् रूप मिशन का बना है, उसके मूल में यही मार्गदर्शन है। सूक्ष्म रूप में विद्यमान गुरुसत्ता तो सतत यह बताती रहती है, पर ‘मैनेजमेंट’ विधा के विशेषज्ञ जानते है कि ‘ग्रुप डिसकशन’ कितना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यदि यह समय-समय पर होता रहे, तो न कहीं संवादहीनता या असमंजस की स्थिति रहेगी, न कोई महत्वपूर्ण कार्य रुकेगा।

समापन 26-12-81 को सुकमा (बस्तर) से लिखे एक पत्र से कर रहे हैं, जिसमें वे अपनी आगे की रणनीति के बारे में संकेत करते है।

निकट भविष्य में हमारे बिना ही हर कार्यकर्त्ता को अपने पैरों खड़ा होगा। यह तथ्य डराने के लिए नहीं। उनकी मजबूती निखारने के लिए बताते रहना चाहिए। मिशन तो चलेगा, पर उसमें गुरुजी-माताजी की भूमिका जो अब है, कुछ ही दिन बाद वह न रहेगी। इस आधार पर ही सभी को अपना भविष्य निर्धारण करना चाहिए।

कोई भी पिता- अभिभावक अपनी संतानों को इसी तरह मजबूत बनाता है। अपने सामने उन्हें तैयार कर देता है। भवन व संगठन तो बहुत बनते है, पर वहाँ व्यक्ति-प्राणवान कार्यकर्त्ताओं का अभाव रहता है। गुरुसत्ता ने जीवनभर यही पुरुषार्थ किया, प्रवास पर रहते हुए भी कि उनके उत्तराधिकारी सशक्त बने, जिम्मेदार बने।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118