दो नैतिक कहानियाँ

November 2002

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वस्तुओं का पूरा सदुपयोग करने की आदत डालें!

बापू का उस दिन मौन व्रत था। वे प्रातःकाल आश्रम के बच्चों को साथ लेकर टहलने गए।
रास्ते में एक तीन इंच लंबा सुई का टुकड़ा पड़ा दिखाई दिया। गांधी जी ने एक छोटी लड़की से उसे उठा लेने का इशारा किया।

लड़की ने उठा तो लिया, पर उलट-पुलटकर देखने पर उसे निरर्थक पाया और आगे चलकर फेंक दिया।

शाम को मौन टूटा, तो गांधी जी ने लड़की से वह टुकड़ा माँगा, पर वह तो उसे निरर्थक समझकर फेंक चुकी थी। गांधी जी नाराज हुए और ढूंढ लाने के लिए उसे भेजा।

टुकड़ा मिल गया। उसे साफ करके गांधी जी ने उससे सूत काता और कहा, वस्तुओं का पूरा सदुपयोग करने की आदत सभी को डालनी चाहिए, बरबादी तनिक भी न करें।

कर्मफल का सिद्धांत

चित्रगुप्त अपनी पोथी के पृष्ठों को उलट रहे थे। यमदूतों द्वारा आज दो व्यक्तियों को उनके सम्मुख पेश किया गया था। यमदूतों ने प्रथम व्यक्ति का परिचय कराते हुए कहा, यह नगर सेठ है। धन की कोई कमी इनके यहाँ नहीं। खूब पैसा कमाया है और समाजहित के लिए धर्मशाला, मंदिर, कुआँ और विद्यालय जैसे अनेक निर्माण कार्यों में उसका व्यय किया है। अब दूसरे व्यक्ति की बारी थी। उसे यमदूत ने आगे बढ़ाते हुए कहा, यह व्यक्ति बहुत गरीब है। दो समय का भोजन जुटाना भी इसके लिए मुश्किल है। एक दिन जब ये भोजन कर रहे थे, एक भूखा कुत्ता इनके पास आया। इन्होंने स्वयं भोजन न कर सारी रोटियाँ कुत्ते को दे दी। स्वयं भूखे रहकर दूसरे की क्षुधा शांत की। अब आप ही बतलाइए कि इन दोनों के लिए क्या आज्ञा है? चित्रगुप्त काफी देर तक पोथी के पृष्ठों पर आँखें गड़ाए रहे। उन्होंने बड़ी गंभीरता के साथ कहा— "धनी व्यक्ति को नरक में और निर्धन व्यक्ति को स्वर्ग में भेजा जाए।"

चित्रगुप्त के इस निर्णय को सुनकर यमराज और दोनों आगंतुक भी आश्चर्य में पड़ गए। चित्रगुप्त ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा— "धनी व्यक्ति ने निर्धनों और असहायों का बुरी तरह शोषण किया है। उनकी विवशताओं का दुरुपयोग किया है और उस पैसे से ऐश और आराम का जीवन व्यतीत किया। यदि बचे हुए धन का एक अंश लोकेषणा की पूर्ति हेतु व्यय कर भी दिया, तो उसमें लोकहित का कौन-सा कार्य हुआ? निर्माण कार्यों की पीछे यह भावना कार्य कर रही थी कि लोग मेरी प्रशंसा करें, मेरा यश गाएँ। गरीब ने पसीना बहाकर जो कमाई की, उस रोटी को भी समय आने पर भूखे कुत्ते के लिए छोड़ दी। यह साधन संपन्न होता, तो न जानें कितने अभावग्रस्त लोगों की कितनी सहायता करता? पाप और पुण्य का संबंध मानवीय भावनाओं से हैं, क्रियाओं से नहीं। अतः मेरे द्वारा पूर्व में दिया गया निर्णय ही अंतिम हैं। सबके मन का समाधान हो गया।"


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