एक साधु की कुटिया थी। एक राहगीर ने पूछा, आपके गाँव के लोग कैसे है? साधु ने उलटकर पूछा, तुम्हारे गाँव के कैसे है? राहगीर ने कहा, बहुत बुरे। साधु ने कहा, हमारे गाँव के और भी बुरे है।
थोड़ी देर में एक और राहगीर आया। उसने भी वही प्रश्न किया। साधु ने उससे भी उलटकर पूछा, तुम्हारे गाँव के कैसे है? राहगीर ने कहा, बहुत अच्छे।
अब साधु का जवाब था; बिल्कुल सज्जन।
कुटिया में बैठे एक आदमी ने साधु से दुहरे उत्तर का कारण पूछा- आपने दो राहगीरों से दो तरह की बातें क्यों कहीं?
साधु ने कहा, अपना दृष्टिकोण ही अन्यत्र दीखता है। इन राहगीरों का जैसा दृष्टिकोण है, गाँव के लोग भी उसी तरह दीखेंगे।