यशगान की विजय (Kahani)

November 2002

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अभिमन्यु चक्रव्यूह में अकेला ही घिरा पड़ा था, सब दिशाएँ शत्रुओं से अवरुद्ध थी। ऐसी दशा में भी अर्जुन पुत्र ने समय की महती आवश्यकता और न्याय -नीति को विजयी बनाने की ललक में वह सब कुछ किया, जो उसके बलबूते था। इस संदर्भ में उसे प्राण गँवाने पड़े, पर इतिहासकार अनंतकाल तक उसके यशगान की विजय दुँदुभि बजाते रहेंगे।


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