मेधा और प्रतिभा का उपयोग लोककल्याण में होना चाहिए, यह सिद्धाँत जैसे ही महापंडित कुमारजीव के हृदय में घुसा, वैसे ही वे धर्म प्रचार के लिए परिभ्रमण करने चल पड़े।
कुमारजीव चीन चले गए। वहाँ उनने और साथी बनाए और बौद्ध ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद कर डाला, साथ ही भ्रमण करके प्रचार करने लगे। उनके प्रयत्न से स्थिति ऐसी बन गई थी, मानो बौद्ध धर्म का केंद्र भारत न होकर चीन ही हो। बौद्धमठों का निर्माण, धर्मशास्त्रों का अनुवाद तथा प्रचारकों की एक बड़ी सेना का गठन करने के साथ-साथ लाखों शिष्य बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए। इस सफलता में प्रधानतया कुमारजीव की ही प्रमुख भूमिका थी। इस पुण्यकार्य से कुमारजीव स्वयं तो इतिहास में एक वंद्य पुरुष बन ही गए, अन्य सामान्यजनों के लिए एक प्रकाश स्तंभ के रूप में कीर्ति पा गए।