धर्म-विज्ञान केंद्र की महत्वाकाँक्षी स्थापना

November 2002

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देव संस्कृति विश्वविद्यालय में साधना संकाय के अंतर्गत ‘धर्म विज्ञान केन्द्र’ की विधिवत स्थापना हो गयी। इस धर्म विज्ञान केन्द्र या सेण्टर ऑफ थियोलॉजी का उद्देश्य धर्म के मर्म को बताने वाले विभिन्न तत्त्वों, सत्यों, सूत्रों एवं व्यावहारिक क्रियाओं की गहन शोध एवं व्यापक शिक्षण व प्रसार है। आज के दौर में यह विचित्र एवं आश्चर्यपूर्ण विडम्बना है कि भ्रान्तियों से मुक्ति दिलाने वाला धर्म स्वयं ही भ्रान्तियों के महाघटाटोप से बुरी तरह से घिर गया है। धार्मिक संवेदना साम्प्रदायिक कट्टरता के विष दंशों से छटपटाती हुई मूर्छित प्राय है। धर्म के नाम पर केवल कुछ रीति रिवाजों, रूढ़ियों, मान्यताओं एवं परम्पराओं को निभाने का प्रचलन है। भले ही वर्तमान युग में उनकी कोई सामयिक उपयोगिता, आवश्यकता एवं औचित्य हो अथवा फिर न हो। धर्म को मात्र लकीर पीटे जाने की प्रथा मान लिए जाने के कारण आज इसे विश्व भर के बुद्धिजीवियों, मनीषियों व वैज्ञानिकों की घोर उपेक्षा सहनी पड़ रही है। इसके औचित्य पर नित्य नए प्रश्न चिह्न लग रहे हैं।

युग की आवश्यकता

इस स्थिति से जूझना और उबरना युग की आवश्यकता है। और इसे पूरा करने का उपाय एक ही है कि धर्म के स्वरूप एवं उपयोगिता पर आधुनिक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में गहन शोध-अनुसंधान हो। अनुसंधान प्रविधि से जाँचे-परखे और खरे पाए गए निष्कर्षों के आधार पर धर्म शिक्षण व प्रसार की व्यापक व्यवस्था बनायी जाय। इसके लिए आयु, योग्यता एवं जीवन की वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप विभिन्न स्तर के पाठ्यक्रम तैयार किए जाएँ। उदार, भावनाशील, विचारवान एवं धर्मतत्त्व के प्रति गहन रुचि रखने वाले विद्यार्थियों का चयन हो। तदनुरूप अध्यापन के लिए सुयोग्य ऋषिकल्प जीवन जीने वाले आचार्य हों। जिन्हें यह अनुभूति हो कि धर्म का सही अर्थ मानव मात्र के प्रति प्रेम एवं मनुष्य में अन्तर्निहित दैवी संवेदनाओं एवं सम्भावनाओं का विकास है। साथ ही ऐसा वातावरण हो जहाँ महर्षियों की तप ऊर्जा का प्रखर तेज एवं सघन धार्मिक भावनाएँ सदा ही उमड़ती-उफनती रहें।

असंभव को सम्भव करने वाला पुरुषार्थ

कहा जा सकता है कि पाश्चात्य संस्कृति की भौतिकतावादी बाढ़ से ग्रसित जीवन में यह सब एकदम असम्भव है। ऐसा करना तूफानी चक्रवातों में दीप जलाने जैसा है। परिस्थितियों की यह सच्चाई कितनी ही दारुण क्यों न हो, पर शान्तिकुञ्ज के संचालन एवं निर्देशन में काम कर रहे देव संस्कृति विश्वविद्यालय का उद्देश्यनिष्ठ संकल्पवान साहस भी कुछ कम नहीं। विश्वविद्यालय की एकजुट समर्पित टीम ने युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव की वरद्छाया में प्रचण्ड तूफानों में महादीप प्रज्ज्वलन का साहस करते हुए असम्भव को सम्भव करने वाला पुरुषार्थ पूरा कर दिखाया है। इन कुछ ही महीनों में धर्म विज्ञान केन्द्र की स्थापना के साथ, इसके संचालन के लिए जरूरी सभी आवश्यकताओं को अनिवार्यता मान कर पूरा कर लिया गया है। ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में वर्षों से चल रही शोध प्रक्रिया के निष्कर्षों को ही पाठ्यक्रम का आधार बनाया गया है। सर्टिफिकेट, पी.जी डिप्लोमा, ग्रेजुएट एवं पोस्ट ग्रेजुएट आदि विविध स्तरीय पाठ्यक्रमों का निर्माण धर्म के तत्त्व का गहन ज्ञान रखने वाले मेधा सम्पन्न मनीषी कर रहे हैं। इनमें त्रैमासिक सर्टीफिकेट पाठ्यक्रम तैयार भी हो चुका है।

इन पाठ्यक्रमों का अध्यापन करने के लिए ऋषिकल्प आचार्यों की सेवाएँ भी दैवी कृपा ने जुटा दी है। रही बात वातावरण की सो युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव की तपश्चेतना एवं उनकी दिव्य तपस्थली शान्तिकुञ्ज के संरक्षण ने देव संस्कृति विश्वविद्यालय को स्वाभाविक रूप से दिव्य वातावरण प्रदान किया है। देवात्मा हिमालय की सुरम्य छाँव एवं माता गंगा की लहरों के आँचल में बसे देव संस्कृति विश्वविद्यालय में धार्मिक चेतना सदा-सर्वदा अविराम तरंगित होती रहती है। इतिहास के जानकर एवं पुरातत्त्व विशेषज्ञ यहाँ पुरातन महर्षियों की धर्म साधना की बात मुक्त कण्ठ से स्वीकारते हैं। पौराणिक कथाओं के अनेकानेक प्रसंग भी इस सत्य की साक्षी देते हैं। तपश्चेतना एवं धर्म भावना की अदृश्य तरंगों से किस तरह यहाँ का दृश्य जीवन हिलोरे लेता रहता है, इसे केवल अनुभूति से जाना जा सकता है। इस सुयोग, सौभाग्य से लाभान्वित होने वाले लोकसेवी एवं धर्मप्राण विद्यार्थी भी स्वाभाविक रूप से आ जुटे हैं। इन सभी विद्यार्थियों की एक ही आशा और एक ही अरमान है कि वे अपने जीवन में धर्म के मर्म को साकार कर लें और दूसरों को उसका सुगम बोध करा सकें।

धर्म विज्ञान केन्द्र के उद्देश्यों का बिन्दुवार स्पष्टीकरण

धर्ममय जीवन के लिए समस्त सुयोग, सौभाग्य, साधन और साधना को अपने में समेट लेने वाले धर्मविज्ञान केन्द्र के उद्देश्यों का बिन्दुवार स्पष्टीकरण कुछ इस तरह से किया जा सकता है-

1. साम्प्रदायिक कट्टरता को मिटाकर धार्मिक सद्भाव का जागरण।

2. सर्वधर्म समभाव व विश्वधर्म समभाव का विकास।

3. विभिन्न धर्मों की एकता को सिद्ध करने वाले सत्यों का शोध-अनुसन्धान।

4. धर्म के शाश्वत व सनातन तत्त्व की शोध में सहायक विभिन्न साधनात्मक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अनुसंधान।

5. विभिन्न धर्मों के वैयक्तिक एवं सामाजिक पहलुओं पर दार्शनिक एवं वैज्ञानिक अनुसन्धान।

6. सनातन धर्म सहित अन्यान्य धर्मों के प्रवर्तकों एवं महापुरुषों के आदर्शों का शिक्षण।

7. मानव में दैवी संवेदनाओं, दैवी भावनाओं व दैवी सामर्थ्यों का विकास।

8. सर्वधर्म समभाव की धार्मिक सहिष्णुता को आधार बनाकर धर्म प्रचारकों, धर्म विशारदों, धर्म विचारकों एवं धर्म विशेषज्ञों की नयी पीढ़ी का निर्माण।

भावभरी शुरुआत

इन उद्देश्यों की पूर्ति के क्रम में एक भावभरी शुरुआत प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम के रूप में की गयी है। तथा इसमें प्रवेश हेतु योग्यता इंटर मीडिएट अथवा हाई स्कूल के साथ दो वर्षों का लोकसेवा अनुभव है। पाठ्यक्रम की अवधि त्रैमासिक है। इस पाठ्यक्रम के निर्माण एवं शिक्षण में कुछ निम्न तत्त्वों का विशेष ध्यान रखा गया है-

1. सनातन धर्म सहित अन्यान्य धर्मों के मूलमत, तत्त्वों एवं सूत्रों की आवश्यक जानकारी।

2. उपासना-साधना एवं आराधना जैसे जीवन सूत्रों पर आस्था। उन्हें जीवन में अपनाते हुए सीखने, सिखाने की प्रारम्भिक दक्षता।

3. किसी देवालय में श्रेष्ठ पुरोहित की भूमिका निभाने में सक्षम।

4. ब्राह्मण जीवन- सादा जीवन एवं उच्च आचार विचार का नैष्ठिक साधक।

5. देवालय के रख-रखाव एवं पूजन क्रम को सम्भालने की क्षमता,

6. जन संपर्क की मर्यादाओं के अनुपालन के साथ संपर्क बढ़ाने में कुशलता।

7. धर्मतंत्र से लोकशिक्षण, कीर्तन, सत्संग, विभिन्न संस्कारों को सम्पन्न कराने व बाल संस्कार शाला जैसे कार्यों हेतु आवश्यक योग्यता का विकास।

भावी सम्भावनाएँ

प्रमाण पत्र के त्रैमासिक पाठ्यक्रम के अतिरिक्त धर्म विज्ञान केन्द्र की भावी सम्भावनाएँ भी अनेकों हैं। इन भावी संभावनाओं में प्रथम- एक वर्षीय पी.जी. डिप्लोमा पाठ्यक्रम का प्रारम्भ है। इसके माध्यम से प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम में अर्जित की गयी विशेषताओं को और अधिक उन्नत स्तर का बनाया जाएगा। पी.जी. डिप्लोमा में प्रवेश लेने वाले छात्र किसी पीठ, आश्रम या संस्थान में साधनात्मक वातावरण बनाने व पूरे क्षेत्र को अनुप्राणित करने, सहयोग जुटाने व सामान्य प्रशिक्षण चलाने में सक्षम होंगे। इस डिप्लोमा पाठ्यक्रम में प्रवेश हेतु योग्यता स्नातक स्तर है। पी.जी. डिप्लोमा के अलावा पोस्ट ग्रेजुएट स्तर का एक और पाठ्यक्रम धर्म विज्ञान केन्द्र के अगले सत्र में शुरू किए जाने की सम्भावना है। इस पाठ्यक्रम के द्वारा छात्र-छात्राएँ धर्म विज्ञान में विशेषज्ञ स्तर की निपुणता अर्जित कर सकेंगे। इसके माध्यम से उन्हें भारतीय संस्कृति के अंतर्गत आने वाली विभिन्न परम्परागत साधना विधियों का सम्यक् बोध कराया जाएगा। साथ ही उनमें विश्व के किसी भी क्षेत्र या धर्म, सम्प्रदाय के प्रति निष्ठ रखने वाले प्रबुद्ध जनों को जीवन साधना के प्रति आस्थावान बनाने की क्षमता विकसित की जा सकेगी। वे स्वयं भी उपासना, साधना व आराधना के क्षेत्र में अच्छी प्रगति कर सकेंगे। और उनमें साधकों की जिज्ञासाओं एवं समस्याओं के समाधान की सम्यक् सामर्थ्य का विकास हो सकेगा।

शोध परियोजनाएँ

इन सुखद सम्भावनाओं के अतिरिक्त धर्म विज्ञान केन्द्र में महत्त्वपूर्ण शोध परियोजनाओं को भी तैयार किया जा रहा है। यह शोध कार्य सनातन धर्म के साथ अन्य सभी धर्मों की साधना प्रणालियों एवं नैतिक अनुशासनों की उपयोगिता पर किया जाएगा। इस क्रम में मनोवैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक प्रयोगों के माध्यम से साधना व नैतिक अनुशासनों के विधेयात्मक प्रगतिशील पक्षों का प्रतिपादन किया जा सकेगा। इसमें भागीदार होने वाले शोधछात्र अपने में शोध के अनुरूप प्रायोगिक प्रतिफल उत्पन्न करने का विश्वास और कौशल भी विकसित करने में समर्थ हो सकेंगे। धर्म विज्ञान केन्द्र में इन दिनों तैयार की जा रही शोध योजनाओं में धर्म के अत्यन्त गूढ़ तत्त्वों की रहस्यमयता की वैज्ञानिकता को प्रकट करने का प्रयास किया जा रहा है।

सहयोग हेतु आमंत्रण

संक्षेप में देव संस्कृति विश्वविद्यालय में नव स्थापित धर्म विज्ञान केन्द्र धर्म जगत् एवं धर्मावलम्बियों की सुखद एवं उज्ज्वल आशाओं का प्रतीक है। यहाँ की गतिविधियाँ एवं क्रियाकलाप जाति-क्षेत्र की, सम्प्रदाय की सारी संकीर्ण सीमाओं से मुक्त है। भारत के किसी भी कोने सहित विश्व के किसी भी भू-भाग में रहने वाले और किसी भी धर्म में अपना विश्वास रखने वाले लोग यहाँ के अध्ययन एवं शोध कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी निभा सकते हैं। यहाँ पर आमन्त्रण उन आस्थावानों को भी है, जो अपनी धार्मिक भावनाओं की उज्ज्वल परिणति का साक्षात्कार करना चाहते हैं। देश और विश्व के प्रत्येक धर्म प्रवण नागरिक का भावनात्मक एवं आर्थिक सहयोग इस नव स्थापित धर्म विज्ञान केन्द्र के विकास-विस्तार के लिए आमंत्रित है। इस सम्बन्ध में किसी आवश्यक जानकारी के लिए कुलाधिपति, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार अथवा कुलपति, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार के पते पर पत्र लिखकर संपर्क किया जा सकता है।

संक्षेप में देव संस्कृति विश्वविद्यालय में नव स्थापित धर्म विज्ञान केन्द्र धर्म जगत् एवं धर्मावलम्बियों की सुखद एवं उज्ज्वल आशाओं का प्रतीक है। यहाँ की गतिविधियाँ एवं क्रियाकलाप जाति-क्षेत्र की, सम्प्रदाय की सारी संकीर्ण सीमाओं से मुक्त है। भारत के किसी भी कोने सहित विश्व के किसी भी भू-भाग में रहने वाले और किसी भी धर्म में अपना विश्वास रखने वाले लोग यहाँ के अध्ययन एवं शोध कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी निभा सकते हैं। यहाँ पर आमन्त्रण उन आस्थावानों को भी है, जो अपनी धार्मिक भावनाओं की उज्ज्वल परिणति का साक्षात्कार करना चाहते हैं। देश और विश्व के प्रत्येक धर्म प्रवण नागरिक का भावनात्मक एवं आर्थिक सहयोग इस नव स्थापित धर्म विज्ञान केन्द्र के विकास-विस्तार के लिए आमंत्रित है। इस सम्बन्ध में किसी आवश्यक जानकारी के लिए कुलाधिपति, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार अथवा कुलपति, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार के पते पर पत्र लिखकर संपर्क किया जा सकता है।


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