हिमालय से जुड़े हिममानव का अस्तित्व वास्तव में है क्या

May 1999

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वह एक रहस्य है फिर भी युगों से लोगों के मन मस्तिष्क पर छाया हुआ है। कही वन देवता पर्वतों की देवात्मा के रूप में पूज्य, कही अपने पगचिन्हों से पर्वतारोहियों और खोजी व्यक्तियों के रोमाँच का विषय और कही मानव विकास की लुप्त कड़ियों को खोजते वैज्ञानिकों का रोचक विषय यही है हिमाच्छादित -पर्वत श्रृंखलाओं में अपने रहस्यमय अस्तित्व के साथ विचरण करने वाला हिममानव येती।

लद्दाख से तिब्बत -नेपाल होते हुए सिक्किम -अरुणाचल प्रदेश तक लाखों वर्ग कि .मी . में फैली हिमालय की ऊँची बर्फीली चोटियों से ढकी घाटियों में रहने वाले लोग हिममानव को सदियों से जानते है। अलग अलग क्षेत्रों में इसे येती मिटे शुफ्पा, मीगो और कगामी आदि नामों से जाना जाता है। कही इसे शिकार व वन के देवता और पर्वत की आत्मा के रूप में पूज्य मानते है, तो कही यह रोचक पुराणकथाओं का नायक है। पर्वतीय लोगों में येती खोज या जिज्ञासा की जगह श्रद्धा का विषय अधिक रहा है।

येती को देखने का सर्वप्रथम विवरण सन १ में मिलता है, जब एक नेपाली व्यापारी ने नेपाल तिब्बत मार्ग पर एक पशु मानव देखने का दावा किया था। वह लगभग दस फुट ऊंचा था और उसका शरीर लाल रंग के बालों से ढका हुआ था। सन १८६७ में रोगर पेटर्सन इसकी फिल्म लेने में सफल हो गया। यह सब एकाएक हो गया फिल्म दूर से लिए जाने व प्रकाश का सामंजस्य न हो पाने के कारण अत्यंत धुँधली आयी। किन्तु इससे येती की अस्तित्व को बहुत बल मिला। सन १८७२ में प्रसिद्ध पर्वतारोहियों पुंडराक ने तथा १८७७ में नवे के एक पर्वतारोही ने बर्फ पर सहित ऋतु की अंत में अत्यंत विशालकाय मानव पगचिह्न देखने की बात कही थी। सन १८८९ में कर्नल बेडेले ने मानव के पैरों के बिशाल्के चिन्ह देखे थे, परन्तु किसी वैज्ञानिक ने इसका अध्ययन नहीं किया। इसी प्रकार सन १९०६ में हेनरी एल्यूस ने हिमालय के एक ग्लेशियर में विचित्र पदचिह्न देखे थे, परन्तु इन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया।

हिमालय के हिममानव येती संबंधी सर्वप्रथम प्रामाणिक दावा १९२१ में एवरेस्ट आरोहण दल के अध्यक्ष सी. के. पारी ने किया। उन्होंने देखा की नीचे बर्फीली ढलान पर एक बड़े बालों वाला विशालकाय प्राणी चला आ रहा है। जिसकी आकृति मनुष्य से मिलती है। साथी शेरपाओं ने बताया कि यही येती है। इसके बाद में अपनी हिमालय यात्रा का वर्णन करते हुए वुड किक्लैंड और मेक्स ने लिखा है कि

४००० मीटर की ऊंचाई पर उन्होंने दो पैरों से चलने वाले बालों से लदे लंगूरों को देखा। नवे निवासी फ्रास्तिस और यार्वर्ग हिमालय में येती के पदचिह्नों का पीछा करते हुए अचानक बिखरे हुए बालों वाले रो बशाल हिममानवों से जा भिड़े। जब दोनों खोजकर्ताओं ने कमंद फेंककर उन्हें पकड़ने की कोशिश की तो येतियों ने फ्रास्तिस पर हमला करके उसका कन्धा नोच डाला। यार वर्ग ने हवाई फायर करके अपने साथी की जान बचाई। इतने समीप से हिममानव देखने व छूने की संभवाना यह प्रथम घटना थी। समूचे विश्व के सामने हिममानव के अस्तित्व का सबसे प्रथम प्रमाण एरिक शिफ्तन ने १९५१ में हिममानव की पदचिह्नों की फोटो खींचकर प्रस्तुत किया। जंगलों की जाँच -पड़ताल करने वाले दल के इस नेता को ये पदचिह्न २० फुट नेमलंग ग्लेशियर पार करते समय मिले थे। शिफटन द्वारा हिममानव के पदचिह्नों के फोटो प्रस्तुत करने के बाद विश्वभर के पर्वतारोहियों एवं खोजी वैज्ञानिकों का रुझान इस ओर बढ़ा। दो वर्ष बाद १९५३ में सर जान हट के नेतृत्व में गए एवरेस्ट अभियान दल के एक सदृश्य विलफिड बोडस ने पर्वतारोहियों के दौरान एक विचित्र सी आवाज सुनी थी और उसे किसी के पद चिन्हों के निशान भी दिखाई दिए थे। उन्हें ऐसा लगा था जैसे कोई हिममानव चोटी से उतरकर उन लोगों के शिविर तक आया और फिर लौट गया।

हिममानव को देखे जाने की एक घटना मार्च, ७ को हुई। उस दिन ब्रिटिश पर्वतारोहियों का एक दल अन्नपूर्णा शिविर पर कठिन चढ़ाई का प्रयास कर रहा था। इस प्रयास में जब रात हो गयी तो पर्वतारोहियों ने अपने-अपने तम्बू लगा दिए। रात के समय दल के एक सदस्य ने एक विशालकाय दोपाए जीव को तम्बू के इधर उधर घूमते देखा। सूचित किये जाने पर उसके अन्य साथियों ने भी इसे दिखा। निरीक्षण करने पर पाया गया कि यह जीव कहानियों में वर्णित येती से मिलता -जुलता था। सन १९७६ में ब्रिटिश एवरेस्ट अभियान साल ने दावा किया था कि उसे हिममानव दिखाई दिए थे, पर वे उन्हें देखकर भाग खड़े हुए। इनके पगचिह्न ३१ सेंटीमीटर लम्बे और ० सेंटीमीटर चौड़े थे। बी. बी. सी. ने इनके फोटो टेलीविजन पर भी दिखाए थे।

एवरेस्ट पर सर्वप्रथम विजय पताका फहराने वाले शेरपा–तेनजिंग के साथी सर एडमंड–हिलेरी ने भी अपने स्मरणों में हिममानव की चर्चा की है। एक बार उन्हें हिममानव का बाल भी मिला था जो मोटा, खुरदरा, काला और लम्बा था। हिममानव के पदचिह्नों का उल्लेख करते हुए एडमंड हिलेरी ने लिखा है, ये चिन्ह सचमुच किसी विशालकाय जीव के थे। बारह इंच लम्बे और चार इंच चौड़े, देखने में ताजे थे। शायद पिछली रात ही वह वहाँ से गुजरा होगा। अगले भाग में अंगूठे और पिछले भाग में एड़ी के साफ निशान थे।

हिममानव के रहस्यमय अस्तित्व के चर्चे हिमालय तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विश्व के सभी ठण्डे व बर्फीले क्षेत्रों में इसका प्रभाव पुराणकथाओं से लेकर प्रत्यक्ष आमना सामना व पदचिह्नों के रूप में देखा जा सकता है, किन्तु येती की ही तरह इसके जीवंत प्रमाण अभी रहस्य के दायरे में ही है। हिमालय के अतिरिक्त कनाडा, अमेरिका व साइबेरिया के बर्फीले क्षेत्रों में इसके पाए जाने के उल्लेख मिले है। यहाँ इसे बिगफुत, सेस्कुएच और याली आदि नामों से जाना जाता है।

न्यू साउथ वेल्स के इकस गिलरय ने याली से जुड़ी एक हजार घटनाओं का विवरण एकत्रित किया है, जो अमेरिका के चालीस राज्य तथा कनाडा के पाँच प्रान्तों से सम्बंधित है। ये सभी विवरण सन १९४० के बाद के है, जो अमेरिका के मूल निवासियों के विवरणों से मिलते है, जो इसे ष्बिडिगो के नाम से पुकारते है। क्रेफोई काउंटी कन्सास के टिम्बले का कथन है कि याली मनुष्य से इस सीमा तक मिलता है कि कोई इसे मरना नहीं चाहता। न्यू साउथ वेल्स के डेविड स्कमार्स ने विशाल याली के दिखने का दावा किया है, जो आठ फुट ऊँचा था। उसके लगभग तीन इंच लम्बे भूरे बाल शरीर पर थे। बड़ी -बड़ी भूरी भूरी व नीली आंखें थी, चेहरा आधा लंगूर व आधा मानव जैसा था। उसने भूमि के अन्दर प्रवेश करने से पूर्व जिस वृक्ष को खरोंचा था, वह भूमि से १ फुट ऊँचाई पर था।

प्रख्यात मनोवैज्ञानिक कार्ल गुस्ताव युँग ने अपनी पुस्तक में याली का चित्रण करते हुए लिखा है कि इसके बाजू लम्बे व हाथ विशाल होते है। चेहरे पर घने बाल होते है, जिससे यह भयानक दिखता है। अधिकतर यह दोनों पैरों से चलते है, किन्तु कभी कभी यह दोनों हाथों का भी प्रयोग करते है। इसी पुस्तक में एक घटना का भी उल्लेख है कि सन १९१७ के पतझड़ के मौसम में गेरी जेनिस और जिम निवेल ओरिगास के जंगलों में शिकार करने गए थे। गेरी ने एक हिरन मार गिराया इससे पहले कि वह उसे उठा लेता एक नौ फुट ऊंचा लम्बे बालों वाला जीव वहाँ आ पहुँचा। उसने हिरन को उठाया और वहाँ से चल दिया। गेरी ने उस पर गोलियाँ दागी, किन्तु ऐसा कोई संकेत नहीं मिला, जिससे यह लगे कि उसे कोई हानि पहुँची हो। केवल सी सी की आवाज प्रत्येक बार सुनाई दी। उससे आभास होता था कि वह दर्द के मारे चिल्ला रहा है।

जिस जीवात्मा ने मन और इंद्रियों सहित शरीर को जीत लिया है उस जीवात्मा के तो आप ही मित्र है और जिसके द्वारा मन तथा इंद्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है, उसके लिए वह आप ही शत्रु है सदृश शत्रुता में वर्तता है।

गोली लगने कि अन्य घटनायें भी हुई है, किन्तु थोड़ा रक्त निकलने के अतिरिक्त और कोई प्रभाव नहीं हुआ।

हिममानव सम्बन्धी इसी घटनाओं का उल्लेख ई. आर. डोदास ने अपनी पुस्तक ग्रीक्स एण्डदी एरेक्सल में किया है। हिममानव की चर्चा करने वाली अन्य पुस्तकें है -पैट्रिक हार्वर की डेमोनिक रियल्टी, काँलिन और बोर्ड जेनेट की बिगफुत, केपबुक्क - इलाइन एनीमल, प्रो. लायोंटिल की पुस्तक एपोलॉजी फोर दी फेबिल्स ऑफ रोमर और द डिफेक्टिव आरेकुलम।

चीन और रूस में भी हिममानव के रहस्यमय अस्तित्व पर शोधकार्य चल बार हिममानव को देख चुका है। वयोक्या ब्लादिमोर के आग्रह पर उसके घर रुकी और उन्होंने रात्रि की घटना से हिममानव के अस्तित्व को स्वीकारा।

उस रात ब्लादिमोर के घर में खिड़की के पास खटखटाने की आवाज हुई। बाहर कुत्ता भी जोर जोर से भौंक रहा था। जब तक खिड़की खोली जाती वातावरण शाँत था। प्रातः तलाश करने पर कुत्ते की लाश जंगल में मिली। उसका शरीर दो भागो में तोड़ दिया गया हो। वयोक्या के अनुसार हिममानव का काम था।

इसी तरह चीनी वैज्ञानिकों के एक दल ने भी १४ मई ए १९७६ को हवई प्रान्त के चुनसुइया गाँव के पास एक येती को देखने का दावा किया। इसके बाद पीकिंग विश्वविद्यालय ने अन्वेषकों को येती की खोज में लगा दिया। लेकिन अभी तक उसे रहस्य की घेरे से बहार नहीं निकला जा सका है।

हालाँकि अभी ३ वर्ष पूर्व १९९६ में घटित एक घटना ने हिममानव के अस्तित्व की प्रमाणिकता को एक नया आधार दिया है। यह घटना रूस के साइबेरिया क्षेत्र में घटित हुई, जहाँ रूसी भूगर्भ वैज्ञानिकों को एक शोध अभियान के दौरान बर्फ के नीचे दबे ४ मीटर लम्बे एक जीव का शव मिला। रूसी दैनिक सेवनिया प्रावदा के अनुसार इस जीव के शरीर के ऊपर बाल थे, सिर चपटा व आगे की ओर उभरा हुआ, था। इस शव को हिममानव अथवा येती की संज्ञा दी जा रही है। प्रत्यक्षदर्शी हिममानव की खोज में जुटे वैज्ञानिकों ने इस रहस्यमय जीव के बारे में अब तक जो जानकारियाँ प्रस्तुत की है,उनसे उसके आकार - प्रकार का एक अनुमान अवश्य लगाया जा सकता है। वोयोक्वा के अनुसार येती की ऊँचाई दो मीटर होती है। आंखें अन्दर की ओर धसी, और बहुत छोटी होती है। जबकि सिर अपेक्षा कृत बड़ा होता है। इसका भार किलो तक हो सकता है। रूस में तीन वर्षों पूर्व पाए गए जीव का शव लगभग इसी आकार -प्रकार का था। इसके अतिरिक्त सुप्रसिद्ध वनार्ड होवेल्मेंस की पुस्तक -ऑन द ट्रेक ऑफ अननोन एनिमल्स में हिममानव की तीन जातियाँ बताई गयी है। पहले प्रकार की हिममानव को येती कहा गया है जो पाँच मीटर या इससे भी अधिक ऊँचा हो सकता है। इसका पूरा शरीर बालों से ढका होता है। दूसरा प्रकार शिमिश्का है, ४००० मीटर पर पाए जाने वाले शिमि की ऊँचाई लगभग तीन मीटर बताई गयी है। तीसरी श्रेणी न्याया लामो की है,जो ४००० मीटर से अधिक ऊँचाई वाले बर्फीले स्थानों पर बताया गया है। सफेद चेहरे व बालों से पूरी तरह ढके शरीर वाले न्याया लामो की ऊँचाई चार पाँच मीटर बताई गयी है।

हिममानव के संदर्भ में वैज्ञानिकों का अपना ही मत है। उनके अनुसार यह जीव कुछ गोरिल्ला और कुछ -कुछ औरंग - ओटान से मिलता -जुलता है। इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या हिममानव मानव विकास की कोई खोई हुई कड़ी तो नहीं है, मानव का उद्भव लगभग दस लाख वर्ष पूर्व हुआ उसे आज के रूप में आने के लिए कई परिवर्तनों से होकर गुजरना पड़ा। मानव के उदविकास में निएद्र्थल पूर्ण पुरुष का अपना एक विशेष स्थान है। ऐसे हम पूर्ण मानव नहीं कह सकते। यह पशुओं के समान कंदराओं में रहता था। भोजन की आवश्यकता पड़ने पर शिकार करने निकल जाता था।

निएँडरथल मानव की खोपड़ी की लम्बाई चौड़ाई की अपेक्षा अधिक होती थी। इसमें ठीक हिममानव के समान नेत्र, गोलको के ऊपर अस्थि का एक उभर था। निचले जबड़े में ठोड़ी का अभाव तथा अनेक बड़े आकर के दाँत सब मिलाकर ऐसा प्रतीत होता था मानो निएंद्रथल का जबड़ा मनुष्य का नहीं वरन् किसी विशाल वानर का था।

रीढ़ की हड्डी तथा घुटनों पर झुकाव के कारण उसका शरीर धनुषाकार था, जैसा की गिब्बन और चिपंजी का होता है। बहुत संभव है कि निएंद्रथल मानव की ही किसी शाखा में, किसी समय उत्परिवर्तन के प्रभाव से हिममानव का उद्भव हुआ हो। हिमाच्छादित शैल–शिखरों पर बसे होने के कारण उसके शरीर पर धीरे धीरे मोटे व कड़े बाल विकसित हो गए है। इस तरह वैज्ञानिक हिममानव को मानव विकास की एक कड़ी के रूप में मानते है।

कुछ के लिए हिममानव रहस्यमय कल्पना है। जुँग की अवधारणा श् सामूहिक अवचेतन से जोड़ते हुए कहते है कि ये हमारे पूर्वज के लम्बे बालों वाले अर्धमानव के भय व उनसे संघर्ष की अचेतन स्मृतियों का अंश है, जो यदा कदा ऐसी घटनाओं को जन्म देते है। सत्य कुछ और भी हो सकता है। हिमालय का हिममानव वहाँ के रहस्यों में से एक अद्भुत रहस्य है जो अपने रहस्यमय अस्तित्व के कारण मानवी बुद्धि से लिकाचिपी करता हुआ सबकी जिज्ञासा का केंद्र बनता जा रहा है। यदा-कदा इसके अस्तित्व की झलक व रोमाँचक किस्से बतलाते रहते है। प्रकृति के रहस्य और भी है जो मानवी बुद्धि की लिए चुनौती भी है और जिज्ञासा अनुसन्धान की विषय वस्तु भी।


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