तप कर! तप कर!! (Kahani)

May 1999

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खलीफा दिनभर में जो पाते है, साँझ होते ही सब यतीमो, फकीरों, जरूरतमंदों को बाँट देते। उनका नियम था-उनका उसूल था कि जो पा जाते या जो भी उन्हें देता, उसे बचाकर रखना वे पाप समझते। उन्हें ईश्वर पर इतना विश्वास था कि उन्हें सवेरे की चिंता नहीं रहती और प्रातः फिर कुछ लोग उन्हें देने दरवाजे पर आ पहुँचते। एक अवसर ऐसा आया कि वे रात में बीमार पड़े, पत्नी ने सोचा कुछ बचा लेना चाहिए क्या पता रात में क्या जरूरत पड़ जाए। देने वाला सुबह देगा, किन्तु आधी रात-----? पत्नी ने प्रेम के कारण पाँच दीनार बचाकर रख ली। कहते है खलीफा उस रात सो न सके, करवटें बदलते रहे रात के बारह बजे होंगे, बेचैनी बहुत थी। पत्नी से बोले ऐसी बेचैनी तो कभी नहीं हुई, लगता है जीवन का कोई नियम टूट गया?

मैं सदा चैन से सोता था, आज मेरी हालत वैसी हो रही है जैसे धनपतियों की होती है। करवट बदलता हूँ नींद नहीं आती। मैं सदा का गरीब, मुझे कभी चिंता नहीं सताती थी आज लय हो रहा है, क्या तुमने दिन भर मिलने वाली राशि बाँटी नहीं? कुछ बचाया तो नहीं? पत्नी घबराई और बोली - क्षमा करे बड़ी भूल हो गई। पाँच दीनार मैंने आपकी दवा -दारु के लिए सहेज लिए थे, क्या पता कब जरूरत पड़ जाए। मुहम्मद बोले - यह तुमने क्या किया, मेरे जीवन भर के विश्वास पर पानी फेर दिया। मरते समय इल्जाम लगेगा, खलीफा जरूर कुछ साथ रखता था। मेरी जिन्दगी भर की फकीरी पर दाग लग जाएगा। पत्नी ने आधी रात को दरवाजा खोला देखा दरवाजे पर भिखारी खड़ा है। खलीफा ने कहा- देखती हो जब लेने वाला आधी रात को आ सकता है तो देने वाला क्यों नहीं। जैसे ही पत्नी ने आखिरी पाँच दीनार भिखारी को दिये, कहते है खलीफा ने चादर ओढ़ी और अंतिम साँस ली। जिसे ईश्वर पर इतना अटूट विश्वास -अव्वल दर्जे का यकीन हो, ऐसे संत बिरले ही होते है सौंदर्य प्रसाधन सुन्दर नहीं कुरूप बनाते हैं।

ब्रह्माजी कमल के फूल पर बैठे हुए चिंतन में लीन थे। वे सोच रहे थे सृष्टि का निर्माण कैसे करूं? इसी असमंजस में पड़े हुए, ब्रह्मा को एक आकाशवाणी सुनाई दी, जो कह रही थी- तप कर! तप कर!! ब्रह्माजी आकाशवाणी को ईश्वरीय आदेश मानकर तप में संलग्न हो गए। उन्होंने लम्बे समय तक घोर तप किया और उसी के बल पर उन्हें सृष्टि के निर्माण की क्षमता प्राप्त हुई। पुरुषार्थ और साहस करके ही ब्रह्माजी ने कुछ पाया था। यही मार्ग ब्रह्मा द्वारा रचे गए प्रत्येक प्राणी के लिए है। उद्योगी मनुष्य उन्नति करते एवं सुख पाते है और अकर्मण्य व्यक्ति भाग्य को दोष देकर रोते-झींकते जिंदगी पूरी करते है। प्रगतिशीलों के लिए आज भी ईश्वर की आकाशवाणी का एक सन्देश है-तप कर! तप कर!!


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