श्रुतायुध के पास शंकर जी के वरदान से प्राप्त एक गदा थी। शर्त मात्र यही थी कि वह उसका अनीतिपूर्वक प्रयोग न करे। यदि करेगा तो लौटकर वह उसी को नष्ट करेगी, महाभारत युद्ध में क्रोध के आवेश में उसने उस गदा का प्रयोग सारथी कि भूमिका निभा रहे भगवान् श्री कृष्ण पर कर डाला, गदा बीच से ही वापस लौटकर श्रुतायुध पर ही आ गिरी और उसे क्षत-विक्षत कर गयी।
भस्मासुर ने भी यही वरदान माँगा था कि वह जिसके सिर पर हाथ रख देगा वही भस्म हो जाएगा। जब उसने वरदान का दुरुपयोग आरम्भ किया, तो भगवान ने माया रची और उसकी दुर्बुद्धि ने उसे स्वयं अपने ऊपर हाथ रखवाकर भस्म कर डाला।
यह चयन की दिशाधारा ही है, जो मनुष्य का गंतव्य-भवितव्य निर्धारित करती है।