महाराज रंतिदेव (Kahani)

May 1999

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महाराज रंतिदेव की प्रचंड तपश्चर्या से जब इन्द्रासन रो उठा, तो प्रजापति ब्रह्मा को उनके सामने प्रकट हो वरदान देने के लिए बाध्य होना पड़ा। उन्होंने कहा-तुम्हारी तपश्चर्या से मैं अत्यधिक प्रसन्न हूँ। चाहो जो वरदान माँग लो। महाराज रंतिदेव बोले- देवराज! अगर आप मुझ पर प्रसन्न है और वरदान देना चाहते है, तो मैं चाहता हूँ- मेरे राज्य में ही नहीं, समस्त पृथ्वी पर कोई भूखा न रहे, कोई पीड़ित-शोषित दिन-हीन न रहे। पृथ्वी हिरन्यगर्भा हो। जन-जन के मन में बैर, द्वेष, कलह व दुर्भावनाओं का नाम- निशान न रहे। कोई रोगी न हो, दुखी न हो, यह मेरा कर्तव्य है और मुझे इस कर्तव्य के पालन की शक्ति दीजिये।

यही आदर्श न केवल राष्ट्रप्रमुख का अपितु हर नागरिक का होना चाहिए। सभी एक ही माँ के पुत्र है।


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