कृतघ्न की भी रक्षा करती है गुरुसत्ता

May 1999

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बैजूबावरा स्तब्ध रह गया। उसने कल्पना भी नहीं की थी कि उसका परमप्रिय शिष्य गोपाल उसे अचानक छोड़कर चला जायेगा। कृष्णभक्त बैजूबावरा वैरागी, साधु, ब्रह्मचारी और सुरों के देव थे। उनकी छाँव में गोपाल न केवल पला-बढ़ा बल्कि संगीत में भी निपुण बना। जब वह कृष्णमंदिर में धमारस गाता तो लगता सारा वातावरण शाँत हो गया है, वातावरण में पत्ता भी आवाज़ नहीं दे रहा होता, ताकि गोपाल की आवाज़ सबके कानों में पहुँच सके और स्वयं पेड़-पौधे भी उसके स्वर में झूमने लगते।

एक दिन मंदिर में बैठे जोधपुर नरेश के एक सामंत प्रभंजन सिंह ने गोपाल का गीत सुना तो ठगे- से रहे गए।

इतना रस, इतनी मिठास उन्होंने पहले कभी नहीं सुनी थी। गायन के बाद जब गोपाल से एकांत में मुलाकात हुई, तो प्रभंजन सिंह ने उससे कहा, लगता है आपके कंठ से तो स्वयं सरस्वती गीतवर्षा करती हैं। आप यहाँ इस मंदिर में पड़े-पड़े क्या कर रहे हैं, मेरे साथ चलिए जोधपुर नरेश आपका गायन सुनेंगे तो आपका जीवन भी आनंदमय हो उठेगा।

गोपाल न तो हाँ कह सका था और न ही न कह सका। वह दुविधा में था। ठाकुर प्रभंजन सिंह ने उसकी मनोदशा समझ ली थी। इसलिए वह लगातार उसे उकसाते रहे, ललचाते रहे। बार-बार गोपाल के मन में यह बात जमाते रहे कि उसके जैसा गायक इस संसार में नहीं है। वह सर्वथा अद्वितीय है।

और फिर गोपाल आखिर उनके चक्रव्यूह में फँस ही गया। एक दिन गुरु को बताये बिना, बिना बातचीत किये वह कृष्ण-मंदिर से चुपचाप प्रभंजन सिंह के साथ खिसक गया और जोधपुर नरेश के दरबार में जा पहुँचा। जोधपुर नरेश के दरबार में गोपाल ने प्रवेश किया, तो वह वहाँ की चकाचौंध से चकित रह गया। फिर भी उसने अपने निर्मल मन पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ने दिया और अवसर मिलते ही मन से गाया। जोधपुर नरेश का दरबारी संगीतकार समझ गया कि उसका वास्ता आज किससे पड़ा है? फिर भी उसने साहस कर गाया और खूब गाया, परन्तु गोपाल के स्वरों ने उसे उखाड़ दिया। धमार और चाँवेर, तीन ताल और दादरा, दीपचंदी और ध्रुपद बस गिरीराज एक बार उखड़ा तो जम नहीं सका। जोधपुर नरेश उसकी बुरी हालत का भी आनंद ले रहे थे। अन्तः वह खामोश हो गया। गोपाल की विजय स्पष्ट थी।

जोधपुर नरेश ने अपने गले से मोतियों का हार उतारकर गोपाल के गले में डालते हुए पूछा- आपके गुरु कौन हैं? गोपाल के मन पर विजय का उल्लास अभिमान बनकर छू चुका था। उसने सगर्व कहा- महाराज! जो कुछ सीखा कृष्णमंदिर में बैठकर, सुन-सुन कर कईयों के संगीत से सीखा। गुरुज्ञान से मैं वंचित ही रहा, राजन।

इतनी साधना गुरु के बिना? जोधपुर नरेश आश्चर्य से कुछ सोचते हुए बोले- गोपाल! तुमने कृष्णमंदिर में संगीत सीखा, इसका मतलब हुआ कि तुम साक्षात् मुरलीमनोहर के शिष्य हो। आज से तुम हमारे राजगायक हुए, तुम्हें सभी सुविधाएँ हमारे यहाँ से मिलेंगी।

बैजूबावरा का शिष्य राजसी सुविधाएँ पाते ही एकाएक बदल गया, उधर बैजू का बुरा हाल था। गोपाल के एकाएक लुप्त हो जाने से वह बेचैन हो उठे। लाठी टेकते कभी इधर जाते-कभी उधर जाते, कभी भक्तों से कहते, तो कभी मुलाकातियों से प्रार्थना करते- मेरा गोपाल खो गया! मेरा बच्चा कहाँ चला गया? जाओ कोई ढूँढ़कर लाओ उसे। कोई पता लाकर दो मेरे बच्चे का, बड़े व्यग्र थे, बैजू अपने प्रिय शिष्य के बिना। अपने गुरु को दिए वचन अनुसार जीवन को केवल भक्ति एवं संगीत को आत्मसात् करने वाले बैजू गोपाल के वियोग में इतने दुखी हुए कि मथुरा के कृष्णमंदिर में आने वाले हर दर्शनार्थी से वह यही प्रश्न करते, तुमने मेरे गोपाल को देखा है और एक दिन उन्हें अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया। किसी ने उन्हें गोपाल की उपलब्धि का पूरा लेखा-जोखा दे दिया। यह पता चलते ही कि गोपाल जोधपुर नरेश का राजगायक बन चुका है, बैजूबावरा लाठी टेकते अपने शिष्य से मिलने चल पड़े। मार्ग में चलते-चलते उनके पाँव में छाले पड़ गए। एक दिन जयपुर के पास एक मंदिर में कुछ यात्री मिल गए। यात्रियों ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह उन्हें अपने रथ पर बिठा कर जोधपुर ले चलेंगे और गोपाल तक पहुँचा देंगे।

वसंतोत्सव के दिन बैजू को लेकर यात्री जोधपुर दरबार में पहुँचे। वहाँ गोपाल वसन्त राग गा रहा था। हर कोई उसमें ध्यान लगाये हुए था। बैजू ने गोपाल को देखा तो रह नहीं सके। सभी मर्यादाएँ तोड़कर गाते हुए गोपाल से जा लिपटे। रंग में भंग पड़ गया, महाराज के संकेत पर बैजू को उनके पास ले जाया गया। उन्होंने पूछा- तुम कौन हो। बैजू को भावविह्वल हो रहा था, रोते हुए बोला- महाराज आपका राजगायक गोपाल मेरा शिष्य है, मेरा बेटा है। मैं नहीं जनता इसे, यह कौन हैं?, गोपाल ने कहा। उधर बैजूबावरा कह रहे थे गोपाल! तू यह कह क्या रहा है? तू अपने गुरु को नहीं पहचानता। तभी जोधपुर नरेश ने हाथ ऊपर करके उन्हें शाँत रहने के लिए कहा। वह बैजूबावरा से बोले- संगीत सम्राट! आपकी ख्याति तो सारे संसार में है। यह मेरे अहोभाग्य हैं कि आप जैसे महान गुनी व्यक्ति के दर्शन मुझे हो सके। हे महान संगीतकार!हमें अपने कंठ- स्वर से निकले रस का पान जरूर कराओ।

बैजू कुछ उत्तर दे पाते, उससे पहले महारथ ने फिर कहा- गोपाल को आपके साथ प्रतियोगिता करनी होगी। बैजूबावरा ने गंभीरता से कहा- महाराज प्रतियोगिता क्या मैं अपने बेटे से करूंगा? परन्तु तभी गोपाल का दंभ मुखरित हो उठा वह बोला- मैं प्रतियोगिता के लिए तैयार हूँ।

बैजू सहज भाव से गा रहे थे। आनंदमय हो उनके कंठ से संगीत की मनमोहक सरिता बहने लगी, परन्तु गोपाल की आवाज़ काँपने लगी। थोड़ी देर में वह गुमसुम होकर बैठ गया। गीत समाप्त करते ही बैजू गोपाल की ओर लपके और कहने लगे जोधपुर के बजाय कृष्ण दरबार में गाओ बेटा, वही गाने से सच्चा सुख मिलता है।

मगर जोधपुर नरेश क्रोध में थे। बोले- नहीं संगीत सम्राट! इस गोपाल ने गुरु का अपमान किया है। इसे कल सुबह हाथी के पाँव के नीचे कुचल दिया जाएगा। बैजू दहाड़ें मारकर रो उठा। उसने जोधपुर नरेश से कई तरह से याचना की, परन्तु उन पर कोई असर न हुआ।

एकाएक बैजू ने कहा- महाराज! मैंने प्रतियोगिता जीती है, क्या मुझे इसका पुरस्कार नहीं मिलेगा?

जोधपुर नरेश ने कहा- मान्यवर! गोपाल के प्राणों के अतिरिक्त आप जो चाहें माँग लीजिये, मैं इनकार नहीं करूंगा। परन्तु इसे दंड देने से कोई छूट नहीं दे सकता।

बैजूबावरा ने गंभीर और दृढ़. स्वर में कहा-नहीं महाराज! मैं आपसे गोपाल के प्राणों की भीख नहीं माँग रहा, मैं तो आपसे यही चाहता हूँ कि जिस समय गोपाल पर हाथी छोड़ा जाए, उस समय मुझे वहाँ गाने की इजाज़त दे दी जाय। जोधपुर नरेश ने सहमति दे दी।

अगले दिन सुबह एक विशाल मैदान में गोपाल को ला खड़ा किया गया। एक पागल हाथी को जब मैदान के सिरे पर लाया गया, तो मैदान के एक ओर बैजूबावरा के कंठ से गणेश राग की स्वर लहरियाँ गूँजने लगी। बैजू गाते-गाते खो गए। उधर मस्त हाथी को छोड़ दिया गया। वह एक बार जोर से चिंघाड़ा और गोपाल की ओर दौड़ा। परन्तु जैसे बैजू के स्वर का उस पर जादू होने लगा। वह चलते-चलते रुका और बैजू के पास आकर खड़ा हो गया और जोर से चिंघाड़ा। थोड़ी देर बाद जब उन्होंने अपना स्वर बदला तो हाथी मस्त होकर झूमने लगा और फिर थोड़ी देर बाद उनके पास बैठ गया। बैठकर कुछ देर वह सूँड को संगीत की स्वर लहरियों के साथ हिलाता रहा और अंततः वह पूर्ण शाँत होकर बैठ गया। जब बैजू ने गायन समाप्त किया, तो हाथी ऐसे पड़ा था जैसे वह निर्जीव हो।

बैजूबावरा उठे। उन्होंने अपने गले की माला निकाली और हाथी के सूँड पर रख दी। फिर उसके सिर पर हाथ फेरा, जैसे उसे दुलार रहे हो। उसके बाद जोधपुर नरेश के पास गए और बोले- महाराज आपका दंड पूरा हो चुका है अब तो मेरे गोपाल को जाने दीजिये।

जोधपुर नरेश बैजू के पैरों पर गिर पड़े और बोले- आप जैसे महान गुरु के रहते ईश्वर भी गोपाल का कुछ नहीं बिगाड़ सकता, फिर मैं तो एक साधारण-सा राजा हूँ। आप आज विश्राम करें, कल प्रातः आपको राजरथ वृंदावन छोड़ आएगा। इस सारे दृश्य को अपनी आँखों से देखकर वहाँ सभी जन हर्षातिरेक में कह उठे, हे गुरु! आपकी बलिहारी है, जिन्होंने कृतघ्न की भी रक्षा की।


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