अनवरत श्रम एवं भाग-दौड़ के इस ज़माने में थकान बड़ा ही स्वाभाविक सत्य बन गया है। हालाँकि कुछ देर के विश्राम के बाद इससे छुटकारा पाया जा सकता है, किन्तु थोड़े काम के बाद ही थक जाना, शरीर का शिथिल हो जाना व मन का भारीपन आज के जीवन का एक अभिन्न अंग बनता जा रहा है। कुछ लोग तो विश्राम एवं नींद के बाद भी तन-मन का हल्कापन एवं ताज़गी अनुभव नहीं कर पाते और स्थायी या जीर्ण थकान की गंभीर समस्या का शिकार हो जाते है। थकान की इस गहराती समस्या से स्कूली बच्चों से लेकर युवा, वृद्ध व श्रमिक से लेकर बुद्धिजीवी-व्यापारी तक और सामान्य गृहिणी से लेकर कामकाजी महिला तक न्यूनाधिक रूप से प्रभावित है। अमेरिका जैसे विकसित देशों में तो यह समस्या और गंभीर रूप ले रही है। जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल ऐसोसिएशन की एक रिपोर्ट के अनुसार वहाँ चिकित्सकों के पास आने वाले रोगियों में २४ प्रतिशत स्थायी थकान से पीड़ित होते है।
आश्चर्य होता है की धरती का सबसे बुद्धिमान एवं विकसित प्राणी मानव ही क्यों जड़ता के इस अँधेरे में खोता जा रहा है, जबकि मनुष्येत्तर प्राणी अन्य जीव-जंतु वनस्पति-जगत यहाँ तक कि तथाकथित जड़प्रकृति तक ऊर्जा से भरपूर एवं सतत् गतिशील है। पक्षी प्रातः उठते है, चहकते-गाते है। अथक श्रम से अपना घोंसला बनाते है व अपने बच्चों के लिए आहार जुटा लेते है। गिलहरी एक पेड़ से दूसरे पेड़ में व एक टहनी से दूसरी में उछल-कूद करती रहती है। वनस्पति-जगत तो बसंत में जैसे अपनी चरम जीवन्तता व उल्लास से अर्जित होकर प्रकट होता है। प्रकृति स्वयं भी ऊर्जा से भरी-पूरी है। लहरे समुद्री किनारों से टकरा रही है, नदियाँ अविरल सागर की ओर गतिशील है। हवा बहती हुई सबको अपने साथ झुलाती है। पृथ्वी अपनी धुरी पर सक्रिय है और सूर्य के इर्द-गिर्द निर्धारित गति से घूम रही है। सूर्य स्वयं भी हर पल कल्पनातीत गर्मी व प्रकाश बिखेर रहा है।
इंसान यदि थका-हारा और परेशान है, तो सिर्फ अपनी भोगवादी जीवन-पद्धति के कारण। इसी वजह से वह ऊर्जा के नैसर्गिक स्रोत से कटता जा रहा है। खान-पान की बिगड़ी आदतें, आहार-विहार का असंयम, निषेधात्मक चिंतन, अव्यवस्थित कार्यपद्धति व भावनात्मक जटिलताएं उसकी जीवनीशक्ति को निचोड़कर थकान के सघन तमस में धकेल रही है।
स्वाभाविक रूप से मनुष्य में शक्ति की सीमित मात्र होती है। इसी से उसका जीवन-व्यापार चलता रहता है। वह कुशलतापूर्वक तभी कार्य करता रह सकता है, जबकि यह शक्ति बनी रहे। शक्ति के क्षय के साथ ही उसकी कार्य-कुशलता में निरंतर ह्वास होने लगता है। इसी से कार्य में अरुचि होने लगती है। रह-रहकर ध्यान उचटने लगता है। मस्तिष्क की नसें तन-सी जाती है, कभी-कभी सरदर्द भी होने लगता है, आंखें पथरा-सी जाती है, स्वभाव में चिड़चिड़ापन एवं खीज आदि आने लगते है। ये सब-के-सब थकान के लक्षण है।
शारीरिक ऊर्जा का प्रमुख स्रोत आहार है। प्राकृतिक रूप से उपलब्ध सुपाच्य एवं पौष्टिक आहार से शरीर को प्रचुर मात्रा में ऊर्जा मिलती है। आहार नियत समय पर उचित मात्रा में लिया जाये, तो ही ठीक है अन्यथा पाचनतंत्र पर बोझ डालने से वह थकान को ही बढ़ावा देता है। सफेद चीनी की जगह प्राकृतिक शर्करा, डिब्बा बंद फास्टफूड व कोलापेय की जगह हरी सब्जी, दूध-फल अंकुरित अन्न आदि स्वस्थ विकल्प है। थकान के कुछ स्पष्ट कारण शरीर के गंभीर रोग जैसे-अनीमिया थायराइड समस्या, कृमिज्वर, मधुमेह, गुर्दारोग, टी. बी. या अन्य जीर्ण रोग हो सकते है, जिसमें ऊर्जा व जीवनशक्ति का तीव्रगति से ह्वास होता है। इनका चिकित्सकीय परामर्श द्वारा उपचार आवश्यक है। सामान्यक्रम में थकान का शरीर से अधिक मन से गहरा सम्बन्ध है। भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं से उपजा तनाव वस्तुतः शरीर को बुरी तरह थका देता है। एक अध्ययन के अनुसार, स्थायी थकान से पीड़ित रोगी अवसाद या तनावजन्य मानसिक रोगों से ग्रसित थे। तनाव में शरीर के अन्दर लड़ो या भागो की स्थिति से निपटने में ऊर्जा खर्च होती है। यदि तनाव की स्थिति दीर्घकाल तक बनी रहे, तो ऊर्जा का अतिशय क्षय होता है। तनाव की, भय या उदासीनताजन्य स्थिति में मस्तिष्क से ऐसे न्यूरोरसायनों इम्यूनोमोडूलेटर प्रतिरक्षा-तंत्र को दुर्बल बनाता है। मानसिक तनाव से उत्पन्न थकान का मुख्य कारण व्यक्ति का निषेधात्मक चिंतन ही होता है। जीवन में सार्थक कार्य के अभाव में या खाली व निठल्ला व्यक्ति इससे अधिक ग्रसित पाया जाता है। ऐसा व्यक्ति जीवन को भार की तरह ढोता फिरता है और अपनी ही कुंठाओं के कारण उसे स्थाई थकान की शिकायत बनी रहती है। ऐसी थकान को अनिद्रा या नींद की कमी पूरी करने के लिए नींद की गोली खाने से तात्कालिक राहत तो मिलती है, किन्तु थकावट यथावत बनी रहती है। नींद न आने से उतना नुकसान नहीं होता, जितना नींद की गोलियाँ खाने से होता है। ऐसा व्यक्ति यदि चाहे तो अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति एवं आहार-विहार के परिवर्तन द्वारा अनिद्रा रोग पर काबू पा सकता है।
जीवन को सार्थक उद्देश्य के निमित्त खपाकर व अपनी अभिरुचियों को व्यापक आधार देकर व्यक्ति बहुत कुछ थकान की समस्या से मुक्ति पा सकता है। जहाँ आरामतलब एवं उद्देश्यहीन व्यक्ति थोड़े-से काम से ही थक जाते है, वही उद्देश्यनिष्ठ व्यक्ति दीर्घकाल तक बिना थके श्रम कर सकता है। थकान के कारण इससे प्रभावित व्यक्ति को अपनी समूची जीवनशैली का अवलोकन करना चाहिए और तनाव के कारक तत्वों को दूर करने का यथायोग्य प्रयास करना चाहिए। वैसे थकान का तात्कालिक एवं सबसे महत्वपूर्ण उपचार विश्राम है। थके हुए शरीर व मन को पूर्ण विश्राम देने से थकान से राहत पाई जा सकती है। अल्पकालीन विश्राम के अतिरिक्त पूर्ण विश्राम का अचूक उपाय नींद है, जो थके-हारे व्यक्ति के लिए टॉनिक का काम करती है। अत्यधिक श्रम व मानसिक तनाव से खर्च ऊर्जा की भरपाई अच्छी व गहरी नींद से बखूबी हो जाती है।
कार्य को सुव्यवस्थित एवं सुनियोजित ढंग से करने पर भी व्यक्ति अनावश्यक तनाव एवं थकान से बच सकता है। रुचिकर कार्य करने से भी व्यक्ति कम थकता है और एक साथ देर तक कार्य कर सकता है। अतः कार्य में रुचि का समावेश थकान को दूर करता है। कार्य करने के समय को यदि अपेक्षाकृत छोटे-छोटे खंडों में बाँट दिया जाये, तो कार्य करने वाला शीघ्र नहीं थकता। कार्य करते समय बीच-बीच में थोड़ी-थोड़ी देर के लिए विश्राम कर लेने से थकान शीघ्र नहीं आती। विश्राम की थोड़ी-सी अवधि व्यय-शक्ति को वापस लौटा देती है। कार्य के बीच-बीच में मनोरंजन की व्यवस्था भी थकान को पास फटकने नहीं देती।
कार्य की एकरसता भी थकान का कारण बनती है। ऐसे में कार्य में परिवर्तन करने से थकान दूर हो जाती है। महात्मा गाँधी इस सिद्धाँत का बखूबी पालन करते थे। शारीरिक कार्य के बाद मानसिक कार्य और मानसिक कार्य के बाद शारीरिक कार्य अदलते-बदलते रहने से थकान दूर होती रहती है। इसमें शीघ्र कार्य निपटने की प्रवृत्ति भी अच्छी होती है। दीर्घसूत्री व्यक्ति कार्य करने की योजना पर ही विचार करते रह जाते है। ऐसा सोचने से ही उनको थकान घेर लेती है। अतः योजना को व्यवहारिक रूप देकर उसे छोटे-छोटे खंडों में क्रियान्वित किया जाना चाहिए। छोटी-छोटी सफलताएँ मन को उत्साहित बनाये रखती है और थकान पास तक नहीं फटकने पाती, बीच-बीच में विगत उपलब्धियों का स्मरण भी थके-हारे मन को उत्साह से भरने का प्रभावशाली उपाय है।
कोई भी व्यक्ति शक्ति भर ही कार्य कर सकता है। अतः अपनी शारीरिक एवं मानसिक शक्ति के अनुरूप कार्य करने से भी थकान की समस्या असाधारण नहीं होने पाती। अपनी पुस्तक बाऊंडलेस एनर्जी में सुप्रसिद्ध लेखक दीपक चोपड़ा लिखते है कि किसी भी क्षण व्यक्ति का ऊर्जा स्तर कई चीजों पर निर्भर करता है, जैसे- आहार व उसकी पाचनक्रिया, वातावरण, ताप, विचार व भाव। लेकिन दैनिक जीवन में मूल जीवनशक्ति का निर्धारण चारों ओर संव्याप्त घनीभूत ऊर्जा का भंडार करता है। जिसके एक अंश मात्र से सारी प्रकृति चैतन्य एवं गतिशील है। इसी ऊर्जा भंडार का संपर्क हमारे शरीर में ऊर्जा व जीवनशक्ति के प्रवाह को निर्धारित व नियंत्रित करता है। जैसे अंधकार का स्वयं कोई अस्तित्व नहीं है, बल्कि प्रकाश का अभाव ही अन्धकार मात्र है। वैसे ही थकान स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है, वह मात्र ऊर्जा का अभाव है।
सही कहें तो आज की गंभीर होती जा रही थकान की समस्या का एकमात्र निदान की जीवनशक्ति के स्रोत की ओर विमुखता के त्याग में निहित है। अपनी प्रकृति के अनुरूप सार्थक उद्देश्य से जुड़कर रुचिपूर्ण कार्य में जुट जाएँ। अपनी शक्ति एवं क्षमता भर कार्य करते हुए सतत् सक्रिय रहे। आहार विहार के संयम व विधेयात्मक चिंतन को जीवन का अभिन्न अंग बनायें। इस तरह स्वयं ही स्फूर्ति एवं आनंद के साथ जीवन प्रगतिशील एवं विकसित रहेगा।