आदर्शों के प्रति सजग (Kahani)

May 1999

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गुरु गोविन्दसिंह ने अपने बड़े पुत्र अजीतसिंह को आज्ञा दी कि तलवार लो और युद्ध में जाओ। पिता की आज्ञा पाकर अजीतसिंह युद्ध में कूद पड़े और वही बलिदान हो गया। इसके बाद गुरु ने अपने द्वितीय पुत्र जोझासिंह को वही आज्ञा दी। पुत्र ने इतना कहा - पिताजी प्यास लगी है, पानी पी लूँ। इस समय पर पिता ने कहा - तुम्हारे भाई के पास खून की नदियाँ बह रही है। वही प्यास बुझा लेना। जोझासिंह उसी समय युद्ध क्षेत्र को चल दिया और वह अपने भाई का बदला लेते हुए मारा गया।

इन बच्चों का बलिदान से सिखों में ऐसी आग पैदा हुई कि दुश्मन को अपना खेमा उखाड़ते ही बना। आदर्शों से जुड़ने वाले दैवी अनुग्रह के पात्र किस प्रकार बनते है, इसका यह प्रत्यक्ष उदाहरण है।

यह दैवी अनुग्रह ही था, जो उनके अंत में प्रेरणा के रूप में उभरा एवं आदर्शवादी उत्तकर्शत्ता से जुड़ कर बदले में उन्हें यश सम्मान भी दिया।


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