युगपुरुष की लेखनी से पं. श्री राम शर्मा आचार्य वाङ्मय- अमृत कलश

May 1999

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२५- यज्ञ का ज्ञान-विज्ञान

सविता देवता की उपासना गायत्री महामंत्र का प्राण है वस्तुतः अग्नि ने ही भौतिकी ज्ञान-विज्ञान का मार्ग प्रशस्त किया है सामान्य अग्नि और यज्ञाग्नि में अंतर है। इस अंतर-ज्ञान के पठनीय विषय है-

गायत्री-यज्ञः उपयोगिता और आवश्यकता

यज्ञ के विविध लाभ-सुसन्तति प्रायश्चित, आत्मशान्ति

विश्व कल्पतरु यज्ञ- ब्रह्म, देव, पित्र तथा नृ-यज्ञ

गायत्री यज्ञ-विधान यज्ञाग्नि की शिक्षा, प्रेरणा।

यज्ञीय कर्मकाण्ड- बड़े तथा छोटे यज्ञ।

दैनिक उपासना में अग्निहोत्र, आरती, विसर्जन

गायत्री यज्ञों की विधिव्यवस्था, पंचवेदी, सर्वतोभद्र, पंचभूसंस्कारादि

ज्ञान और विज्ञान के स्रोत-गायत्री और यज्ञ।

मानव प्रगति का मूल तत्त्व-यज्ञ

यज्ञ के संपूर्ण विश्व का पालन कैसे?

हिन्दू धर्म में यज्ञों का स्थान और प्रयोजन

26 - यज्ञ एक समग्र उपचार प्रक्रिया

यज्ञों में समिधाओं, शाकल्य तथा मन्त्रों का उपयोग, एक विशेष विधि-व्यवस्था और एक विधान सम्मत विधि से रोग निवारक हो जाता है, यज्ञोपचार वस्तुतः मानसोपचार के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा-प्रक्रिया है, इसके लिए पढ़ें-

उपचार-मंत्रशक्ति यज्ञीय धूम, सूक्ष्मीकरण पर आधारित।

वेदों में यज्ञ चिकित्सा, प्राणोद्दीपन

यज्ञोपचार में उपयोगी समिधा, हवन सामग्री

यज्ञाग्नि और सामान्य अग्नि में अंतर

संधि पीड़ा-मनोरोगों का निवारण, गंध की उपादेयता

वातावरण परिष्कार, अध्यात्म उपचार, प्राण-पर्जन्य

अणु विकिरण और यज्ञ, अश्वमेध यज्ञ

बलिवैश्व, दीपयज्ञ, सामूहिक यज्ञायोजन।

बालसंस्कारशालाएँ, यज्ञकर्ता ध्यान दें

गायत्री यज्ञ अभियान

यज्ञोपैथी एक समग्र चिकित्सा पद्धति

यज्ञायोजन में ध्यान रखने योग्य तथ्य

२-युग परिवर्तन कैसे और कब?

यह युगपरिवर्तन का काल है विज्ञान की अतुल उपलब्धियाँ प्राप्त करके भी आज का मानव संतुष्ट और सुखी नहीं है। भविष्यताओं के अनुसार युग-परिवर्तन अवश्य होगा और हम सबका भविष्य उज्ज्वल है। इस आगामी युग के सम्बन्ध में आप जानना चाहेंगे-

युगनिर्माण, युगसंधि अभी ही क्यों?

मानवी दुर्बुद्धि और आसन्न संकट।

अब न चेते तो विनाश होकर रहेगा।

अंतर्ग्रही हलचल और विश्वव्यापी उथल-पुथल

युद्ध और अणु-आयुध-निराकरण व समाधान।

हमारी ऋषिसत्ता भविष्यवाणी

इक्कीसवीं सदी एवं भविष्यवेत्ताओं के अभिमत

भविष्यविज्ञानियों के अनुमान और आकलन।

सभ्यता का शुभारम्भ, निष्कलंक अवतार

अपना देश बनेगा सारी दुनिया का सरताज

2८- सूक्ष्मीकरण एवं उज्ज्वल भविष्य का अवतरण-1

आने वाले युग में सतयुग की वापसी सुनिश्चित है भावी युग हर दृष्टि से मंगलमय होगा और उसमें मानव का जीवन आज की अपेक्षा अधिक सुखी होगा। इसमें सूक्ष्मीकरण की क्या भूमिका होगी, इसके लिए पढ़े-

सूक्ष्मीकरण साधना- स्थूल का सूक्ष्म में परिवर्तन

प्रतिभाओं का उद्भव विकास, प्रचंड मनोबल की प्रतिभा में परिणति

सृष्टि का सर्वोपरि उपहार-प्रखर प्रज्ञा।

अनुष्ठानों की आवश्यकता क्यों?

प्रत्यक्ष घाटे के पीछे, परोक्ष लाभ-ही-लाभ है।

शाँतिकुँज और उसका प्रज्ञा अभियान।

युगसंधि वेला में सृजनशिल्पियों के दायित्व।

लोकसेवा आज का सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ

हमारी भविष्यवाणी-विनाश नहीं सृजन।

प्रतिभा का प्रकटीकरण स्वयं के बूते।

पूज्यवर ने अपने सभी मानसपुत्रों, अनुयायियों के लिए मार्गदर्शन एवं विरासत में जो कुछ भी लिखा है- वह अलम्य ज्ञानामृत (पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वाङ्मय सत्तर खण्डों में) अपने घर में स्थापित करना ही चाहिए। यदि आपको भगवान ने सम्पन्नता दी है, तो ज्ञानदान कर पुण्य अर्जित करें। विशिष्ट अवसरों एवं पूर्वजों की स्मृति में पूज्यवर का वाङ्मय विद्यालयों, पुस्तकालयों में स्थापित कराएँ। आपका यह ज्ञानदान आने वाली पीढ़ियों तक को सन्मार्ग पर चलाएगा, जो भी इसे पढ़ेगा धन्य होगा।

२9 - सूक्ष्मीकरण एवं उज्ज्वल भविष्य का अवतरण-2

समाज का नवनिर्माण सदा विचार-क्राँति से प्रारंभ हुआ। भविष्य के उज्ज्वल निर्माण के लिए भी यह आवश्यक है। विचारक्राँति के कुछ प्रमुख बिंदु है, उनको जानने के लिए पढ़ें-

अनौचित्य का प्रतिकार, परिवर्तन के महान क्षण।

अपने युग की असाधारण महाक्रान्ति

शिव की तृतीय नेत्रोंमीलन और कम-कौतुक की समाप्ति, नवयुग का स्वरूप

इक्कीसवीं सदी और उसकी उज्ज्वल भावनाएँ।

इक्कीसवीं सदी अवतरण के आवश्यक अनुबंध

हम बिछुड़ने के लिए नहीं जुड़े

तीर्थप्रक्रिया का पुनर्जीवन, प्रज्ञावतार का लीलासंदोह

सहस्रकुण्डीय महायज्ञों का देशव्यापी सरंजाम

आस्था-संकट की विभीषिका और उससे निवृत्ति। प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया

यह समय चूकने का नहीं है

सतयुग की वापसी- महामानव बादलों की भूमिका में।

३-मर्यादा पुरुषोत्तम राम

भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम माना है। उन्होंने अपने जीवन में पारिवारिकता का, बंधुत्व का, दाम्पत्य-प्रेम का और लोक-मर्यादाओं का पालन जिस तरह से किया है, उससे वे विश्व-वन्दनीय बन गए हैं। इस संबंध में जानने के लिए पढ़ें-

पारिवारिक जीवन का आदर्श- पिता-पुत्र संबंध

स्त्री का सुशील तथा गुनी होना

सास-बहु संबंध, राज-कर्मचारियों की स्वामी भक्ति।

भारत का माता से विरोध, शबरी के बेर, सुग्रीव की मैत्री

वर्ग विहीन समाज की स्थापना

राम-राज्य में आर्थिक स्थिति, सामाजिक स्वच्छता

परिवार नियोजन, नारी की दशा, प्रजा का हित चिंतन।

विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा।

लक्ष्मण के वीरोचित वचन, हनुमान का शौर्य।

अंगद तथा वानर-भालुओं का शौर्य

परहित भावना, कृपा, दया, क्षमा।

सद्बुद्धि की प्रतीक कौशल्या माता।

यातायात के तीव्रगामी साधन

३२-रामायण की प्रगतिशील प्रेरणाएँ

बाल्मीकि रामायण और श्रीरामचरितमानस दोनों ही आदर्श ग्रन्थ हैं इन दोनों ही ग्रंथों का भारतीय समाज पर गहन प्रभाव है। इन ग्रंथों में जीवन को सफल बनाने के लिए अनेक दिव्य सन्देश भरे हुए हैं इन्हें जानने के लिए पढ़े-

श्रीरामचरितमानस प्रगतिशील प्रेरणा

पुरुष पत्नीव्रत धर्म पालें, संतानोत्पादन की मर्यादा

रामराज्य, धर्मराज्य की शासन-पद्धति

विवेकयुक्त हंसवृत्ति, अवतारीपुरुष एवं उनके लक्षण।

बाल्मीकि रामायण से प्रगतिशील प्रेरणा

सत्संग और कुसंग का प्रतिफल

धार्मिकता अर्थात् कर्तव्यपरायणता।

वाणी का शील और संतुलन, यज्ञीय संस्कृत का संरक्षण

शिष्टाचार का अभ्यास बचपन से हो। समाज प्रकरण, नागरिक कर्तव्यों का पालन।

रामकथा का उद्देश्य लोक-मंगल

मानवजीवन का सदुपयोग।

मूल्य प्रति खण्ड १२५/- व सत्तर खण्डों का सेट रु. 7000/- मात्र


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