रहस्यों और तिलिस्मों से भरी हुई अपनी दुनिया

May 1999

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

उड़नतश्तरियाँ हम धरतीवासियों के लिए एक पहेली हैं। इसके अविज्ञात तथ्य को अभी तक नहीं जाना जा सका है, पर इसे कपोल-कल्पना कहकर टाल भी नहीं सकते हैं। उड़नतश्तरियों से संबंधित प्रमाणों से पता चलता है कि अन्य विकसित ग्रहों के निवास धरती पर उतरने के लिए इन तीव्रगामी यानों का प्रयोग करते होंगे। इन पर सवार जीव भी बड़े विचित्र एवं अद्भुत होते हैं। उनकी संरचना भूलोकवासियों से एकदम भिन्न देखी गयी है। कुछ उड़नतश्तरियाँ पृथ्वी का चक्कर काट कर चली जाती हैं, तो कुछ धरती के लोगों का अपहरण कर ले जाती हैं। इन पर विश्व में अनेकों शोध-अनुसंधान किए जा रहे हैं। इस मामले में अमेरिका अग्रणी हैं।

आज के वैज्ञानिक अनुसंधानों के अलावा ऐतिहासिक प्रमाण भी इसकी पुष्टि करते हैं। २९ ईसा पूर्व के रोम के ऐतिहासिक वृत्तान्त में उड़नतश्तरी का वर्णन मिलता है। इल्जिरियाई सहारा के तसिली एवं सफारा नामक पहाड़ों की गुफाओं में अंतरिक्ष-वासियों का चित्र खुदा हुआ है। ये चित्र ९८ फुट ऊँचे हैं। उनकी भारहीन व्यवस्था के दर्शनों के लिए आस-पास चन्द्र-सूर्य कि आकृतियाँ बनी हुई हैं। जापान के डेंगू मूर्तियाँ अन्य लोकों की जान पड़ती है। इस्टर द्वीप की आँक नामक पत्थरों की विशाल प्रतिमाएँ उड़नतश्तरियों से मेल खाती हैं। असीरिया नामक क्षेत्र से मिली पुरानी मुद्राओं में अंतरिक्ष-परिधानों के सजे प्राणियों के चित्र अंकित हैं। अनंत आश्चर्यों से भरे अन्तरिक्षवासियों की अनेकानेक आकृतियाँ, संकेत व लिपियाँ जर्मन, इटली, स्पेन, अमेरिका आदि देशों में मिली हैं।

चीनी ग्रन्थ सरित्सागर में एक उड़नतश्तरी की घटना का उल्लेख हुआ है। इस कथा के अनुसार राजवर और प्राणधार नामक दो भाई माया यंत्र के निर्माण में निपुण थे। इन दोनों भाइयों ने उड़नतश्तरी बनाई एवं राजा के कोषागार से सारे धन को लेकर अंतरिक्ष के किसी अन्य लोक में चले गए। सन ८ में विख्यात चीनी पुरातत्वेत्ता चिपुईताई ने अपने देश की दरकन कला उला नामक कंदराओं में लोकोत्तर प्राणियों का शव ढूँढ़ निकालने का दावा किया था। मध्य अमेरिका की प्राचीनमय सभ्यता के लोग लोहे के यंत्रों से परिचित नहीं थे। इसके बावजूद उनके पास उच्चकोटि का पंचांग मौजूद था। यहाँ पर हवाईपट्टी भी मिली हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि यह उपलब्धि उनको किसी दूसरे ग्रह के प्राणियों द्वारा मिली थी। लेटिन अमेरिका के देश पेरु के पठारी क्षेत्र में इंका नामक पुरानी सभ्यता के समय की हवाईपट्टी जैसी रचनाएँ मिली हैं। यह सीधी एवं वृत्ताकार नागिनों से जड़ी रेखाओं के समान हैं। संभव है पर आवागमन हेतु इन्हें बनाया हो।

आस्ट्रिया के आल्पस पर्वतीय क्षेत्र में माल्ज्वर्ग नामक एक सुन्दर नगर बसा है। सन १६ में यहाँ कोयले की खान में ८ ग्राम पाइप का एक टुकड़ा प्राप्त हुआ। इसका कार्बन परीक्षण अत्यंत चौंकाने वाला था। वह पाइप इतना पुराना है कि इसके निर्माणकाल के समय पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म भी नहीं हुआ होगा। फिर यह सवाल है कि इसका निर्माता कौन है? जाहिर है यह अंतरिक्षवासियों द्वारा लाया गया होगा। सिंधुघाटी की सभ्यता तथा मौर्यकाल में तमाम ऐसी मूर्तियाँ मिलती हैं, जो अंतरिक्ष सूट जैसे वस्त्र पहने हैं इतिहासकार इन्हें आकाशवासियों की देन मानते हैं।

पेरु के नाज्कर क्षेत्र में भी ऐसे अनेक प्रमाण मिले हैं। वहाँ पाँच हज़ार पूर्व का इंका मंदिर भग्नावशेष अवस्था में हैं। इनकी दीवारों में आश्चर्यजनक चित्र अंकित हैं। इनमें से एक राकेट इंजन व पुर्जों का है। रॉकेट में हैलमेट पहने एक व्यक्ति को बैठे हुए दिखाया गया है। जिसके पीछे आग की लपटें दर्शायी गयी हैं। यहीं एक ओर गुफा भी है। उस गुफा के भित्तिचित्र पर एक विचित्र विमान पर एक व्यक्ति का चित्र खुदा हुआ है? वह व्यक्ति अंतरिक्ष सूट व हेलमेट धारण किए हुए है और उसके नीचे लिखा है- सूर्यपुत्र सातवें आसमान से उतरा। यह सूर्यपुत्र अंतरिक्षवासी रहा होगा। इसी प्रकार का एक प्रमाण अमेरिका के एण्डीज पर्वत में टीटीकाँग नामक झील में मिलता है। झील के निकट एक सूर्य-मंदिर का भग्नावशेष है। मंदिर के मुख्यद्वार पर विचित्र प्रकार का कैलेंडर खुदा है। इस कैलेंडर का वर्ष 290 दिन का है, जिसमें 24-24 दिनों के दस महीने एवं 25-25 दिनों के शेष दो महीने आते हैं इस मंदिर का निर्माण इंका राजाओं ने करवाया था, परंतु इस कैलेंडर का कहीं तुक नहीं बैठता। संभव है यह भी अंतरिक्षवासियों का उपहार हो इस पर उनके आने का दिन व तारीख भी अंकित है। इस प्रकार से समस्त प्रमाण बतलाते हैं कि पृथ्वी के अलावा भी ऐसी कई ग्रह होंगे, जिनमें धरती के निवासियों से अधिक बुद्धिमान प्राणी निवास करते हो, शायद वे अधिक उन्नतावस्था में भी हो।

प्रसिद्ध अमेरिकी विज्ञान-कथा लेखक हेर्ल्वग ने चौंकाने वाली भविष्यवाणी की है। इनके अनुसार बीसवीं सदी के अंत एवं इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ में भारी मात्रा में अंतरिक्षवासियों का अवतरण होगा। इस संबंध में अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं। पेरु के एक द्वीप इकेनारा में कुछ प्रस्तर-खंड प्राप्त हुए हैं। उस पर अज्ञात लिपि में कुछ लिखा है तथा विचित्र प्रकार के चित्र भी अंकित हैं। ऐलिकेंन पादरी डॉ. परियो एरेस ने उस लिपि को पढ़कर सबको हैरत में डाल दिया है। इन्होंने पत्थर को दो लाख वर्ष पुराना माना है तथा लिपि को दस हज़ार वर्ष प्राचीन कहा है। ये पत्थर सामान्य नहीं हैं, ये पानी में नाव की भाँति तैरते हैं। ये इस लोक के लगते भी नहीं पिछले किसी युग में लोकोत्तर प्राणी इन पत्थरों को यहाँ भूल गए होंगे। इनके किनारे पर बनी त्रिभुजाकार आकृति यह स्पष्ट संकेत करती है कि आकाशवासियों का अवतरण पिरामिडों के देश मिस्र में होना चाहिए। इस्टरद्धीप एवं फिलीपीन्स के भिजनाओं द्वीप के प्रमाण भी बतलाते हैं कि निकट भविष्य में अंतरिक्षवासी पृथ्वी पर संपर्क साधने एवं उतर पाने में सफल होंगे।

यह रहस्यमय आकाशीय यंत्र अभी भी वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य की वस्तु है। इनका उद्देश्य एवं क्रिया−कलाप रहस्य के घेरे में है। उड़नतश्तरियों को देखने की घटनाएँ आश्चर्यजनक एवं कौतूहलपूर्ण हैं। इनसे संबंधित कई रोचक जानकारियाँ प्राप्त हुई हैं। उड़नतश्तरियों को देखने की घटनाओं की गणना करने पर पता चलता है कि विश्व के लगभग 135 देशों में कोई 65 हजार बार इन्हें देखा गया है। सबसे अधिक बार इन्हें देखने का सौभाग्य अमेरिकी नागरिकों को प्राप्त हैं। सन 1947 से 1969 के बीच 12,618 उड़नतश्तरियाँ केवल अमेरिका में देखी हैं। इनसे प्राप्त किसी घटना में अमेरिका को कोई आशंका एवं खतरे का संकेत नहीं मिला इसलिए उड़नतश्तरियों पर अमेरिकी सी. आई. ए. द्वारा निगरानी करना बंद कर दिया गया था। इन दिनों यह मामला एक बार फिर चर्चा में आ गया है। हाल ही में उच्चतकनीकी यू. एफ. ओ. ( अनआइडेनटीफाइ फलाइंग आब्जेक्ट ) के सदस्यों द्वारा ली गई सामूहिक आत्महत्या के बाद पुनः इस ओर सक्रियता आई है।

इसके लिए अमेरिकी वायु सेना के जासूसी विमान यू. और एस. आर. 69 का प्रयोग किया जाता है। यू.2 में फोटोग्राफी से पता चलता है कि उड़नतश्तरियों की आकृति भिन्न-भिन्न होती है। एस. आर. 69 ने सर्वप्रथम 1964 में इसे देखा। सी. आई. ए. गैराल्ड के. हेंस ने भी इसके अस्तित्व की पुष्टि की है। सी. आइ. ए. की पत्रिका में गेराल्ड के. हैंस के उड़नतश्तरी संबंधित लेख को विशेष रूप से प्रकाशित किया गया था। इनका कहना है कि हज़ारों कोशिशों के बावजूद उड़नतश्तरी को पकड़ा नहीं जा सका है।

अब तक किए गए शोध-निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि उड़नतश्तरी केवल रात को ही दिखाई देती हैं। इनकी गति तीव्र एवं सीधी रेखाओं में होती है। ये अधिकतर निर्जन प्रदेशों या जलीय क्षेत्रों के निकट उतरती हैं या दिखाई देती हैं। उड़नतश्तरियाँ जिन मार्गों से गति करती हैं, वहाँ की रेडियोधर्मिता अत्यधिक बढ़ जाती है। इनसे निकली अदृश्य तरंगों या धुएँ से संचार-व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाती है। इन तमाम कारणों से उड़नतश्तरी की स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पाती। ये रहस्यमय यान पाँच वर्ष के चक्र में अत्यधिक दिखाई देते हैं। एक अन्य अनुमान के आधार पर पता चलता है कि पृथ्वी का डिग्री के आस-पास का क्षेत्र इन्हें ज्यादा ही पसंद है। इन क्षेत्रों में उड़नतश्तरियों को देखने की घटनाएँ सर्वाधिक हैं। उत्तरी अमेरिका, लेटिन अमेरिका और अफ्रीका के मध्य देखी गयी उड़नतश्तरियों की संख्या समूचे विश्व के तीन-चौथाई के बराबर है।

द्वितीय विश्वयुद्ध में जहाँ जापान की तबाही हो गयी वही इन रहस्यमय यानों की आवाजाही में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। बम विस्फोट के ठीक दूसरे वर्ष ही स्कैन्डनेविया में एक उड़नतश्तरी को सागर के आकार में पहचाना गया। इसके पूर्व सन 1896-97 में अमेरिका व ब्रिटेन में उड़न तश्तरियाँ दिखाई दी थी। इसके पश्चात 1908, 1909, 1915, 1917, 1917, 1930 एवं 1935 में इन अनजान यानों की झाँकी मिली। 30 जून, 1908 को सैबोरिया को साइबेरिया के तुँगुस्का इलाके में पृथ्वी से कोई रहस्यमय वस्तु टकराई, जिससे इतना प्रकाश हुआ कि तीन दिन वहाँ बिजली की जरूरत नहीं पड़ी। इसके प्रकाश की तीव्रता इतनी थी कि इसे फ्रांस तक देखा गया। 13 मई 1997 को पुर्तगाल के फातिमा नगर में लिस्बन से कोई सौ किलोमीटर दूर कारपी द इरिया नामक झरने के निकट उड़ान भर रही थी। यहाँ पर तीन लड़कों ने उन लोकोत्तर यात्री से बात करने का प्रयास किया। इसके ठीक दो माह बाद जुलाई को हजार लोगों ने उड़नतश्तरियों के नज़ारे का आनंद उठाया।

एक फ्राँसीसी लेखक एमी माइकल ने भी 1952 और 1954 ईस्वी में फ्रांस के विभिन्न स्थानों पर सिगार नुमा उड़नतश्तरियों का उल्लेख किया है। आस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा में 3 मई, 1964 को मौसम विशेषज्ञों ने एक उड़नतश्तरी से कई छोटी-छोटी तश्तरियों को निकलते और पुनः उसी में समाते देखा। 1978-79 के दौरान इटली में और 19 अप्रैल 1979 को दक्षिण फिलीपीन्स के दो नगरों में उड़नतश्तरियाँ पहचानी गयी। मार्च 1979 में न्यूजीलैंड में उड़नतश्तरियों पर बकायदा फिल्म बनायीं गई। कुछ साल पूर्व सोवियत संघ के यूरोपीय हिस्से में उड़नतश्तरियों की हलचलें एवं इनकी गतिविधियाँ एक-एक बढ़ गई। यह क्षेत्र है काकेशस और साइबेरिया। यूकोलॉजी साइटीफिक सेंटर के प्रधान ब्लिदिमिर असना के अनुसार, रूस में 1992 में ही 300 से ज्यादा उड़नतश्तरियाँ दिखाई दी।

1978 को एक उड़नतश्तरी उदयपुर नगर में दिखी और एक फ्राँसीसी वैज्ञानिक द्वारा इसकी पुष्टि की गयी। इसके एक सप्ताह बाद उड़नतश्तरी के दिल्ली में जोरदार अंधड़ आया। इस शक्तिशाली तूफान में 28 लोग मर गए। प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार, यह वस्तु चक्रीनुमा थी। 3 अप्रैल 1978 को भारत के विभिन्न स्थानों पर एक ही उड़नतश्तरी देखे जाने की पुष्टि हुई है। इसके अलावा 20 अक्टूबर, 1978 को खासी पहाड़ियों में, 23 सितम्बर 1980 को मध्यप्रदेश में विलासपुर के पास, 16 फरवरी 1982 को बस्तर के काकेर में, 5 जुलाई 1982 को बस्तर के नारायणपुर में, 26 अप्रैल 1987 को भी भारत के अनेक स्थानों पर उड़नतश्तरियों को देखा गया।

उड़नतश्तरियों से उतरते हुए ऐसे विलक्षण जीवों को देखा गया है, जिनकी बनावट भूलोक के व्यक्तियों से भिन्न थी। अमेरिका के न्यूमैक्सिको प्रदेश में सन 1946 से 48 के मध्य कई उड़नतश्तरियों के आने जाने की घटना घटी। 7 जुलाई 1947 की शाम को 4 बजे के आसपास यांत्रिक खराबी के कारण एक उड़नतश्तरी टूटकर जमीन पर गिरी। अमेरिका रक्षा विभाग ने गोपनीयता की दृष्टि से दबाने की कोशिश की, परन्तु प्रत्यक्षदर्शियों ने मलबे में कुछ नाटे कद के मृत जीवों को देखने का दावा किया। सन् 1947 में ही रुजवेल्ट के पास स्थित सेंट आग्स्तियान के मैदान में उड़नतश्तरी टूटकर बिखर गयी।

इसके मलबे में 16 मृत व्यक्तियों के साथ चार फुट का एक जिन्दा व्यक्ति बरामद हुआ। उस लोकोत्तर प्राणी का शरीर रोओ से रहित था। इसका सिर बड़ा, आंखें बड़ी-बड़ी तथा कान -नाक विहित था। अमेरिका के पश्चिमी तट पर उड़नतश्तरी का जब चित्र लिया जा रहा था तभी वह टूट गई। इसके धात्विक परीक्षण से ज्ञात हुआ कि यह 16 मिश्रधातुओं से विनिर्मित है। इसके अधिकतर तत्व पृथ्वी पर नहीं पाए जाते है।10 सितम्बर 1947 को ब्राजील के सलोपलो नगर के पास उबतुबा नामक स्थान पर किसी उड़नतश्तरी के फटने से प्राप्त मलबे का परीक्षण किया गया। यह तश्तरी मैग्नीशियम धातु की बनी थी।

जुलाई ६९ में चंद्रमा पर जाने वाले अंतरिक्षयात्री के इर्द-गिर्द कुछ अदृश्य प्राणियों की उपस्थिति महसूस की गई। उस समय यह यान पृथ्वी से लाख हजार किलोमीटर दूर अन्तरिक्ष में था। इस पर अध्ययन करने वालों में एक अन्वेषक और भौतिकी के प्राध्यापक हार्ट रुट्लेग थे। उन्होंने उड़नतश्तरी का अध्ययन प्रारंभ किया। रुट्लेग ने तीन उड़नतश्तरी को काफी करीब से देखा 19 सितम्बर 1967 में स्पेन में 11.5 मित्र व्यास का बकुरे व नीले रंग के वस्त्र पहने हुए हट्टे - कट्टे लंबे कद के अद्भुत प्राणी थे।

22 अक्टूबर 1974 को एक इंजीनियर कैवित्न अपनी दूरबीन से सुदूर आकाश की ओर निहार रहे थे। उन्हें आकाश में एक विलक्षण वस्तु दिखाई दी, जो धीरे धीरे चक्कर लगाती हुई पृथ्वी पर उतरी। उसमें से विचित्र किस्म के आदमी को देखते ही इंजीनियर महोदय बेहोश होकर गिर गए। अन्तरिक्षवासियों की संरचना यहाँ के निवासियों से भिन्न थी। ऐसी ही एक घटना अगस्त 1961 में रोजर्स केन्टकी में घटी विवन्स नामक एक महिला अपनी दो बच्चियों के साथ कृषि फार्म के निरिक्षण हेतु गई थी। वही उसने उड़नतश्तरियों का दृश्य देखा। उसमें से एक अजीबोगरीब परछाई उतरी और विवन्स का पीछा करते-करते अदृश्य हो गयी। विवन्स अपनी बच्ची के साथ सोई हुई थी। डेढ़ बजे जब अचानक आँख खुली, तो वह डर के मारे काँप उठी। गोलमटोल सिर का एक अजीब व्यक्ति उनके पास खड़ा था।

सन १ में डॉ. बीटा ७० मिल प्रति घंटे की रफ्तार से कार में जा रहे थे। उन्होंने अचानक एक चमकीली उड़नतश्तरी दिखी, जो चक्कर लगाती हुई एक सुनसान क्षेत्र में उतर रही थी। उसमें सवार सभी आकाशवासी उड़नतश्तरी से उतरे और हरी घास पर बैठ गए। उनकी ऊँचाई फीट के आस पास थी। उनके चेहरे एकदम काले थे। जैसे कोई काला पेंट कर दिया गया हो। इस घटना के तुरंत बाद डॉ. बीटा अपने अन्य मित्रों को बुला लाए। वहां उन्हें राख का ढेर मिला। जिसे छूने पर उनके हाथ बैगनी रंग के हो गए और वर्षों तक साफ नहीं हुए। इसके कुछ दिनों बाद डॉ. बीटा ने तीन उड़नतश्तरियों को देखा। इस दृश्य को देखने के पश्चात डॉ. बीटा के शरीर पर फफोले पड़ गए। इस दृश्य को देखनेे के बाद उन्हें अत्यधिक बुखार आया, जो उनके जीवन काल की अंतिम बिमारी साबित हुई।

म्यूचल यू. ऍफ़. ओ. नेटवर्क के डायरेक्टर के अनुसार यूनियन टाउन के फेतेकौती में ६ फरवरी को एक लम्बे पैरों वाले व्यक्ति को उड़नतश्तरी से नीचे उतरते देखा गया। गार्डेन महाशय ने ऐसी ९८ विलक्षण यातना का वर्णन किया है। जिसमें उड़नतश्तरी से पृथ्वी पर आने वाला अद्भुत प्राणी का उल्लेख किया गया है। उड़नतश्तरी अनुसन्धान केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार अब तक १५० घटनाओं में प्राणियों की संरचना पृथ्वीवासियों से सर्वथा भिन्न पाई गई।

कैलीफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के भौतिकशास्त्री एच. पी. रॉबर्टसन ने बताया कि यु. फ़. ओ. समाज के लिए घातक हो सकती है। इनके रेडिएनस का प्रभाव भयंकर होता है।यह बात इस घटना की पुष्टि करती है पुल्किस, फिनलैंड की दो लड़कियों ने दिसंबर २ को गुंबदाकार उड़नतश्तरी को आकाश में उड़ते देखा। जैसे ही लड़कियों पर प्रकाश की किरणें पड़ी तो दोनों का शरीर सिर से पाँव तक लकवाग्रस्त हो गया। उनकी इतनी दुर्दशा हो गयी कि उनमें सुनने व श्वास लेने की क्षमता नहीं रही। उड़नतश्तरियों ने लोगों को तथा विमानों को या तो लापता कर दिया या अपहरण कर लिया। ऐसी ही एक घटना 28 अगस्त 1995 के दिन घटी जिसमें फस्टफोथ्नार्फाक नामक ब्रिटिश रेजिमेंट के कई सिपाही एकाएक गायब हो गए। यह दल प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गेलीपोली अभियान के तहत श्हिल 70 श् पर चढ़ाई कर रहा था। उन्हें आकाश में उड़नतश्तरी दिखी और पूरा दल लापता हो गया। 7 जनवरी 1948 को दोपहर एक बजकर 15 मिनट पर चार अमेरिकी 51 विमान पर गए। फ्लाइट लेफ्टिनेट आर विल्सन ने 1250 की. मी. तक उड़नतश्तरी का अनुसरण किया। इसके बाद इस अद्भुत आकाशीय वस्तु ने विमान सहित विल्सन का अपहरण कर लिया। इसी प्रकार लेक्न्हीथ, इंग्लैंड में 13 अगस्त 1956 को रात साढ़े तीन बजे दो उड़नतश्तरी ने लड़ाकू विमानों का अपहरण कर लिया।

17 सितम्बर 1963 को ही प्रातः 8 बजे जापान के कनामाची स्थान पर टोकियो की एक कार का उड़नतश्तरी ने अपहरण कर लिया। स्पेन के जेट विमान को वैलेशिया हवाई अड्डे पर 12 नवंबर 1979 को अचानक उतरना पड़ा। इसका कारण था, चार उड़नतश्तरी जेट विमान का पीछा कर रही थी। 4 सितम्बर 1983 को एक उड़नतश्तरी ने एक चीनी युवती को बीहड़ के पास छोड़ दिया। युवती पहाड़ी सड़क पर कार ड्राइव कर रही थी। 13 सितम्बर 1967 को एक महिला तथा कई पुलिस वालों सहित 58 व्यक्तियों ने इस रहस्यमयी यान को देखा। इनमें से एक तश्तरी ने कार ले जा रही महिला का 15 किलोमीटर तक पीछा किया। अक्टूबर 1973 में ओहियो आर्मी के हेलीकॉप्टर के चालक ने उड़नतश्तरी के चंगुल से जैसे-तैसे अपने को सुरक्षित कर पाया। उनके अनुसार एक रहस्यमय यान हेलीकॉप्टर से कोई 500 मीटर ऊँचाई पर रुका और उन्हें ऊपर खींच लिया।

विशेषज्ञों के अनुसार उड़नतश्तरी की कल्पना कहानी नहीं है। अमेरिका के ५ फीसदी से अधिक से लोग इस पर विश्वास करते है। अमेरिका में कई एकेडेमी इन घटनाओं का अध्ययन कर रही है। वहां के एक विश्वविद्यालय में भी यु फ़. ओ. सम्बन्धी अध्ययन-अध्यापन कार्य जारी है, कैलीफोर्निया और कनाडा में इसका गुप्त अध्ययन केंद्र है। इनका सम्बन्ध ब्रिटेन, पश्चिम जर्मनी, ताईवान से भी है। अमेरिका के प्रसिद्ध अन्तरिक्ष विज्ञानी गार्डेन कूपर ने यू. फ. ओ. को अन्तर्ग्रही वाहन कहा है। इनके अनुसार उड़नतश्तरी एन्तिग्रेविती प्रोपल्सन के तहत प्रयोग में लायी जाती है। कैलीफोर्निया में आयोजित एक संघोष्टि में खगोलविदों और अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने खुले मन से स्वीकारा है कि उड़नतश्तरी किसी अन्य ग्रहों के कुशल मस्तिष्क द्वारा संचालित होती है। उड़नतश्तरियों की दिशा नियंत्रक क्षमता तथा उन्नत वैज्ञानिक प्रणाली को देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि इसके पीछे कोई विशिष्ट उद्देश्य होगा।

वैज्ञानिकों का मानना है कि उड़नतश्तरी के रहस्य को उजागर किया जा सके, तो अन्य ग्रहों के बारे में जानकारियाँ मिल सकती है। अगर ऐसा हो सका तो भावी सदी में उड़नतश्तरी से अन्तर्ग्रही यात्रा मात्र सपना नहीं रह जाएगी। सम्भव है कि इक्कीसवीं सदी के प्रज्ञावान मनीषी इस सम्भावना को सत्य साकार कर ले।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118