कठिनाइयों से डरो मत, प्रयासरत रहो।

May 1999

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यदि हम कोई दोष सुधारना चाहते है या कोई कठिनाई दूर करना चाहते है, तो बस एक ही प्रक्रिया है। स्वयं को पूर्णतः चैतन्य बनाए रखो। पूर्णरूप से जाग्रत रहो। सबसे पहले तुम्हें लक्ष्य को साफ-साफ देखना होगा। परन्तु इसके लिए अपने मन पर निर्भर न रहो। क्योंकि वह बार बार इतस्ततः करता है। संदेह भ्रम एवं हिचकिचाहटों के अंबार पैदा करता है। इसलिए एकदम आरम्भ में ही तुम्हें यह ठीक ठीक जानना चाहिए बल्कि एकाग्रता के द्वारा, अभीप्सा के स्वर और पूर्णतः संकल्पशक्ति के द्वारा जानना चाहिए। यह बहुत ही आवश्यक बात है।

दूसरे धीरे धीरे निरीक्षण के द्वारा सतत् और स्थाई जागरूकता के द्वारा तुम्हें एक पद्धति ढूंढ़ निकालनी चाहिए, जो तुम्हारे अपने लिए व्यक्तिगत हो केवल तुम्हारे लिए ही उपयुक्त हो। प्रत्येक व्यक्ति को अपने निजी प्रक्रिया ढूंढ़ निकालनी चाहिए, जो व्यवहार में लाने पर धीरे धीरे अधिकाधिक स्पष्ट और सुनिश्चित होती जाए। तुम एक विषय को सुधारते हो दूसरे को एकदम सरल बना देते हो और क्रमशः इस तरह आगे बढ़ते रहते हो इस प्रकार कुछ समय तक ठीक ठाक चलता रहता है। परन्तु एक सुहावने प्रातः काल में तुम्हारे सामने कठिनाई आ उपस्थित होती है, एकदम अकल्पनीय और तुम निराश होकर सोचते हो कि सब व्यर्थ हो गया। पर बात ऐसी बिलकुल नहीं है। यह तुम निश्चित रूप से जान लो कि जब तुम अपने सामने इस तरह की कोई दीवार देखते हो तो यह किसी नई चीज़ का प्रारम्भ होता है। इस तरह बार बार होगा और कुछ समय बाद तुम्हें इसकी आदत पड़ जाएगी। निरुत्साहित होने और प्रयास छोड़ देने की बात तो दूर तुम प्रत्येक बार अपनी एकाग्रता अपनी अभीप्सा एवं अपने विश्वास को बढ़ाते जाओगे और जो नई सहायता तुम्हें प्राप्त होगी, उसके सहारे तुम दूसरे साधनों को विकसित करोगे और जिन साधनों को तुम पार कर चुके हो, उनके पर उन्हें बिठाओगे।

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जो कुछ तुम जानो उसे व्यवहार में ले आओ और यदि तुम सतत् प्रयास करते रहोगे, तो अवश्य सफल होंगे। कठिनाईयाँ बार बार आएगी जब तुम अपने लक्ष्य पर पहुँच जाओगे, तभी सभी कठिनाईयाँ एक ही बार में सदा के लिए विलीन हो जाएँगी।


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