निरुत्साह (Kahani)

July 1999

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एक दिन शैतान का जी जब अपने काम से ऊब गया, तो उसने तय किया कि वह अब संन्यास ले लेगा। फलतः उसने अपने गुलामों को बेचना शुरू कर दिया। बुराई, ईर्ष्या, कलह, दर्प सब एक कतार में खड़े हुए। शैतान के भक्त आते गए और उन्हें पहचानकर एक-एक कर खरीदते गये। पर एक ओर बहुत ही जीर्ण-शीर्ण कुरूप गुलाम खड़ा था, जिसे कोई पहचान नहीं पा रहा था। आश्चर्य की बात तो यह थी कि उसका मूल्य अन्य सभी गुलामों से बढ़कर था। अंततः एक ने साहस कर शैतान से पूछ ही लिया-यह कौन है?

ओह, यह? शैतान मुस्कराया-यह मेरा सर्वाधिक प्रिय और उपयोगी गुलाम है। बहुत कम ही व्यक्ति जानते हैं कि यह मेरे दाहिने हाथ सरीखा है। मैं इसके सहारे बड़ी आसानी से लोगों को अपने शिकंजे में कस लेता हूँ। नहीं पहचाना अभी भी? वह अट्टहास कर उठा-यह निरुत्साह है, निरुत्साह।


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