मनुष्यता की जड़ें है आत्मा (Kahani)

July 1999

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स्वामीराम एक बगीचे में टहल रहे थे। उनके साथ दो-चार शिष्य और भी थे। बगीचे की एक क्यारी के समीप आकर वे रुक गए। उस क्यारी में एक मुरझाया हुआ पौधा था, जिसे किसी बालक ने खींच दिया था शायद। वे उस पौधे की ओर इशारा करके अपने शिष्यों से बोले “राम ने कल संध्या को भी यह पौधा देखा था। लेकिन कल संध्या और आज संध्या में इसमें जीवन-मृत्यु का फर्क आ गया है।

“ कल संध्या तक इस पौधे में प्राण थे। इसकी जड़ें जमीन के भीतर थी और इसके पत्तों में जीवन था। यह हरा -भरा था और इसी से एक उल्लास, एक मुसकान फूटकर खेल रही थी। इसमें जीवन था और जब हवा चलती और यह हवा की लहर में हिलता तो इससे आनंद बहने लगता। इसके पूर्व भी राम कई बार इस पौधे के समीप से गुजरा है और उसके जीवन संगीत को अनुभव कर चुका है।

“ लेकिन आज हुआ यह है कि किसी ने इसे खींच दिया। इसकी जड़ें हिल गयी और इसकी साँसें टूट गयी। सारा खेल जड़ों का है। वे दीखती नहीं पर जीवन का सारा रहस्य उन्हीं में है। केवल पौधों की ही जड़ें नहीं होती मनुष्य की भी जड़ें होती है। मनुष्यता की भी जड़ें होती है। पौधे जमीन पर खड़े रहने से जीवित रह सकते है। पौधे की जड़ें जमीन से हटते ही पौधा सूख जाता है। मनुष्यता की जड़ें भी जमीन से हटते ही मनुष्य भी कुम्हला जाता हैं मनुष्यता सूख जाती है। - ठीक इस पौधे की तरह। “

“ मनुष्यता की जड़ें है आत्मा ओर उसकी जमीन है धर्म। आधुनिकता और बुद्धिवाद के इस युग में मनुष्य की आत्मा का संबंध धर्म से टूटता जा रहा हैं? इसलिये चारों ओर अशान्ति, कोलाहल तथा मृत्यु का तांडव देखने में आ रहा है। जब तक नई उखड़ती हुई जड़ों का उखड़ना नहीं रोका जाता तब तक इस चतुर्दिक् फैली हुई अशान्ति को रोकने का का कोई उपाय नहीं है। बुद्धिवादी लोग इस अशान्ति को दूर करने के लिए आज अपने ढंग से विचार करते है। परंतु उनके विचारों में भटकन है, क्योंकि इस समस्या के मूल कारण तक उनकी दृष्टि पहुँच ही नहीं पाती। उनके सोचे हुए उपाय उसी तरह के साबित हो रहे हैं, जैसे किसी पौधे को उखाड़कर जमीन से अलग कर पानी से सींचते रहना।”

“अतएव आवश्यक है कि मनुष्य की जड़ों को, मनुष्यता की आत्मा को धर्म की जमीन पर खड़ा होने दिया जाये तथा उसे सत्कार्यों, सत्प्रवृत्तियों का पानी दिया जाए। इसके साथ ही एक कुशल बागवान की तरह मनुष्यता में संभावित पनपने वाली दुष्प्रवृत्तियों को खरपतवार की तरह साफ किया जाए। यह काम उत्साही, धर्मनिष्ठ, विवेकवान तथा नीतिपरायण व्यक्ति ही कर सकते हैं।


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