कर्मयोगी (Kahani)

July 1999

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तालाब में कम और तट पर गुलाब-दो फूल खिल रहे थे। दोनों बड़े लुभावने प्रतीत हो रहे थे। गुलाब के फूल ने अकड़कर कमल के फूल से कहा- मित्र तुम बड़े भले ही हो किन्तु सुगन्ध मेरी ही लोगों को आकर्षित करती है।

कमल ने कहा- भाई गुलाब बुरा मत मानो! हम दोनों एक ही उद्देश्य से है। आप सुगन्ध बिखेरते है और प्रकृति ने सौंदर्य मुझे प्रदान किया है। दोनों मिलकर जो काम कर रहे है, वह एक नहीं कर सकता था।

गुलाब अपने प्रदर्शन पर लज्जित हो गया और कमल दुगुने उत्साह से सौंदर्य बिखेरने लगा।

एक साधु नदी तट पर बैठा हुआ माला जप रहा था। पास बैठे एक ब्राह्मण ने जप का कारण पूछा तो उसने बताया स्वर्ग प्राप्ति के लिए। ब्राह्मण भी साधु के पास ही बैठ गया। वह एक एक मुट्ठी बालू नदी में डालने लगा। पूछने पर बताया कि नदी का पुल बनाऊँगा। उस पर होकर पार जाऊँगा। साधु ने कहा- मित्र पुल इस प्रकार नहीं बनता उसके लिए इंजीनियर, श्रमिक, समान एवं आवश्यक धन जुटाना पड़ेगा। बालू डालने भर से पुल नहीं बँध सकता। उलटकर ब्राह्मण बोला-मंत्र माला जपने से स्वर्ग कैसे मिल जाएगा। उसके लिए संयम ज्ञान एवं परमार्थ जैसे पुण्य भी तो करने पड़ेंगे।

साधु ने अपनी भूल समझी और कर्मयोगी बन गया।

दोनों पड़ोसियों के बालक आपस में उलझ पड़ खेल में छीना झपटी, मारा मारी हो गई दोनों ने अपने माता पिता से फरियाद की। उनकी शिकायत पर दोनों के अभिभावक भी लड़ पड़े। वर्षों पुरानी मित्रता में दरार पड़ गई। बोल चाल, मिलना जुलना, एक दूसरे के यहाँ आना जाना बंद हो गया। किन्तु दूसरे दिन देखा दोनों बालक आपस में मिलकर साथ-साथ खेलने में लगे है। न उनमें मनोमालिन्य है, न शिकवा गिला।


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