आमतौर से सादगी का ब्राह्मणोचित जीवन लोगों को रास नहीं आता। सभी आलसी और विलासी रहना चाहते हैं। समय प्रवाह के सर्वथा विपरीत शाँतिकुँज रूपी शक्ति केंद्र के साथ जुड़े हुए और निजी जीवन में बढ़-चढ़कर आदर्श उपस्थिति करने वाले सद्गृहस्थ पर रहकर भी पुरातनकाल के ब्राह्मणों जैसी जीवनचर्या अपनाते है। जो गड़बड़ करते है, मार्गभ्रष्ट होते हैं, वे या तो हट जाते हैं या हटा दिए जाते हैं। जनसमुदाय ऐसे व्यक्तियों को किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं करता व लोकैषणा में उलझा व्यक्ति स्वयं अपने पैरों कुल्हाड़ी मारकर ग्लानि भरा भारभूत जीवन जीता देखा जा सकता है।