कालनेमि की माया से बचें

July 1999

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गुरुपूर्णिमा 23.07.86 परिजनों के नाम वीडियो सन्देश

गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ भाइयो, बहनो! आज से लगभग पचास वर्ष पहले हमने गायत्री परिवार की स्थापना की थी और अखण्ड ज्योति पत्रिका निकालना शुरू किया था। बहुत लंबा समय हो गया। इस पचास साल में हमने क्या किया जिस तरीके से समुद्र में डुबकी लगाने वाली मोती ढूँढ़कर लाते है। हमने भी उसी तरीके संसार भर में डुबकी लगाई और यह देखा कि कौन से आदमी प्राणवान हैं, कौन जीवंत है? कौन ऐसे हैं जो आने वाले समय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में समर्थ होंगे। यह हमने बहुत गंभीरता से तलाश किया। हिंदुस्तान में हमको काफी लोग मिले, क्योंकि यह ऋषियों की भूमि है, देवताओं की भूमि है। यहाँ हमारे चौबीस लाख के करीब गायत्री परिवार के मेंबर है। फिर हमने देखा कि केवल हिंदुस्तान तक ही हमें सीमित नहीं रहना चाहिए वरन् सारे संसार में निगाह डालनी चाहिए, सारे संसार में खोजबीन करनी चाहिए।

मित्रो! सारे संसार की खोज बीन की तो सबसे पहले प्रवासी भारतीयों को देखा, क्योंकि वे ऋषि भूमि की संतान हैं। उनको देखना, उनको समझना सुगम था। इसके अलावा वे लोग भी हैं, जो हिंदुस्तान के निवासी नहीं हैं, लेकिन संसार के निवासी तो हैं। उन सभी को देखा और देखकर सभी को हमने अपने कुटुंब में-अपने परिवार में एक माला के तरीके से गूँथ लिया। ये गुँथी हुई माला है। गायत्री परिवार क्या है? एक गुँथी हुई माला है। इसमें कौन-कौन हैं? इसमें मोती हैं, हीरे हैं, पन्ना हैं, जवाहरात हैं। इन सबको-एक-से-एक बढ़िया आदमी को जोड़ करके हमने रखा है। जिसमें से आप लोग हैं।

आपसे हमारा संपर्क कब से है? आपसे हमारे बहुत पुराने संपर्क हैं, जन्म-जन्मान्तरों के भी संपर्क हैं। क्योंकि जब हमने तलाश किया जो अपनी आध्यात्मिक शक्ति से तलाश किया कि कौन आदमी हमारे हैं, कौन हमसे संबंधित हैं, कौन हमार साथ जुड़े हुए हैं। हमने जब यह पता लगा लिया और अखण्ड ज्योति पत्रिका भेजी, चिट्ठियाँ भेजी तो मालूम पड़ा कि आप लोग गायत्री परिवार में शामिल हो गए हैं। कब हुए थे? आज से पचास साल पहले। पचास वर्ष के बाद में पीढ़ियाँ बदलती चली गयी। कुछ पुराने आदमियों का स्वर्गवास हो गया, कुछ नए बच्चे पैदा हो गए। कुछ पुराने आदमी चले गये। इस तरह से परंपरा ज्यों-की-त्यों बनी रही। हार ज्यों-का-त्यों रहा। यह मिशन ज्यों-का-त्यों रहा। उसमें कोई कमी नहीं आने पाई। आप लोग वही हैं जो बड़ा काम करने के लिए जिस तरह के आदमियों की जरूरत पड़ती है, ठीक उसी तरह से है।

साथियो! हिंदुस्तान में भगवान बुद्ध हुए थे, सरकार पटेल हुए थे, जवाहर लाल नेहरू हुए थे, सुभाषचंद्र बोस हुए थे और बहुत से आदमी हुए थे। इसी तरह से प्रभावशाली व्यक्तियों में से हिन्दुस्तान से बाहर भी हमने देखा कि इस तरह के कौन से आदमी है जो अपना मुल्क-अपना देश संभाल सकें, वहाँ जाग्रति पैदा कर सकें और लोगों को ऊँचा उठा सकें, आगे बढ़ा सकें। यही सब बातें हमने देखी और सबको एक सूत्र में बाँधकर रखा है। आप उसी श्रृंखला में बंधे हुए हैं।

भगवान राम जब लंका विजय के लिए और राम राज्य की स्थापना के लिए गये थे, तो उनके साथ चलने के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ क्योंकि रावण से लड़ाई करने के लिए कौन तैयार हो? कुम्भकरण से लड़ने के लिए कौन तैयार हो? कोई तैयार नहीं हुआ। रामचन्द्र जी के भाई भी आये थे सेना को लेकर, जनक जी भी आये थे सेना को लेकर, जिनकी बेटी सीता को रावण हरण करके ले गया था, परन्तु कोई भी साथ नहीं आया। कोई राजा महाराजा, कोई सैनिक सिपाही भी नहीं आया। मनुष्यों में से कोई तैयार नहीं हुआ। लेकिन रीछ-बंदर आगे आए। ये रीछ-बंदर कौन थे? वे देवता थे। इन देवताओं ने कहा कि भगवान! हम आपके साथ चलेंगे। उन्होंने अपना देवता का स्वरूप छोड़कर रीछ-बंदर का रूप बना लिया। देवताओं के रूप में आते तो उनको वाहन लाने पड़ते, अपने हथियार लाने पड़ते? फिर रामचंद्र जी की सेना में भर्ती कैसे होते यदि देवता बने रहते तो? अतः देवता नहीं, रीछ-बंदर बन गए। रीछ-बंदर बनकर उन्होंने वह काम किया जो भगवान का संकल्प था।

भगवान के दो संकल्प थे-एक तो यह कि जो दैत्य-राक्षस हैं और विध्वंस कर रहे हैं, उनको दिलाऊँगा। यह बात कैकेयी की समझ में आ गयी और मंथरा की भी समझ में आ गयी और उन दोनों ने ऐसा ही किया। इसी तरह कालनेमि ने सूर्पणखा को भी ऐसे ही बहका दिया। उससे यह कहा कि यहाँ के राक्षस काले है। इनके साथ में यदि तेरा ब्याह होगा तो काली संतान उत्पन्न होगी। दो गोरे लड़के आए हुए है, बड़े सुंदर राजकुमार है। चल तू हमारे साथ और उनसे कहना कि वे तेरे साथ ब्याह करके कर लें। रामचंद्रजी खट से तुझसे ब्याह कर लेंगे। अरे उनके पिता जी के भी तो तीन ब्याह हुए थे। उनकी सीताजी रही आएँगी और तू भी रही आएगी।

बस, वह बेचारी कालनेमि के बहकावे में आ गयी। उसकी कैसी मिट्टी पलीद हुई? मंथरा की कैसी मिट्टी पलीद हुई? कैकेयी की कैसी मिट्टी पलीद हुई? आपने पढ़ा होगा। इसी तरह तपस्वी कुम्भकरण ब्रह्माजी से यह वरदान माँगने को था कि मैं साल भर में एक दिन सोएँ और छह महीने जागूँ। लेकिन कालनेमि ने उसको इस तरह से पट्टी पढ़ा दी जिससे वह यह वरदान माँग बैठा कि वह छह महीने सोया करे और एक दिन जागा करें। वह रावण का विरोधी था। कालनेमि किसी को भी चैन से नहीं रहने देना चाहता था। उसका मन था कि कोई भी चेन से न रहने पाए। मारीच वरदान माँगता था कि मैं स्वर्ग जाऊँ। तप करने के बाद उसने स्वर्ग माँगा था। कालनेमि ने उसे भी पट्टी पढ़ाई कि तू यह माँग कि जब मैं चाहूँ तब मेरा शरीर सोने का हो जाए। सीताहरण के समय उसका शरीर सोने का हो गया। सोने का नहीं होता, मामूली मृग होता तो क्यों मारा जाता? लेकिन वह मारा गया।

मित्रो! यह कालनेमि इसी तरीके से किया करता है। बच्चों को चुरा ले जाने वाला कालनेमि अभी भी इस युग में सक्रिय है। मथुरा में संत-बाबा जी के रूप में ठग लोग आते है। और बच्चों को चुरा ले जाते है। बच्चों को जहर की मिठाई खिला देते है। इसी महीने 40-45 लोग मारे गए। संत बाबा जी का कपड़ा पहनकर कुछ लोगों ने व्यक्तियों को लड्डू खिलाकर बेहोश कर दिया और उनका माल लेकर भाग गए। आजकल कालनेमि की माया इस तरीके से भी चल रही है। शायद आपके यहाँ भी कोई कालनेमि जा पहुँचे, तो आप सावधान रहना। अपने प्रयास से -प्रयत्न से सावधान रहना। कही ऐसा मत करना कि अपनी मेहनत, अपना श्रम और अपना पैसा किसी ऐसे काम में लगा दें, जो किसी खास व्यक्ति के काम आए। वह न समाज के काम आए, न संस्था के काम आए, न मिशन के काम आए न जनता के काम आए, किसी काम नहीं आए वरन् व्यक्ति के काम आए।

आपके यहाँ ऐसी कितनी ही घटनाएँ है कि जो आदमी कल तक दो कौडी के थे, आज देखो उनके यहाँ क्या हाल हो रहे है? कैसे -कैसे बंगले बने हुए है? कैसी कैसी मोटरें आ रही है? करोड़ों रुपये कहाँ से इकट्ठा हो रहा है? आप अपने यहाँ देख लीजिए ना? निगाहें फैंकिए, आपको मालूम पड़ जाएगा कि पहले ये क्या थे और साल दो साल के भीतर क्या हो गए। इतने पर भी इनको संतोष नहीं होता तो मिशन को ही बदनाम करने पर तुल गए। अभी जो दो महीने पहले गुरु जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर पी-एच-डी-करते थे, वो ही है जो दो महीने बाद गालियाँ सुनाते है, चोर और बेईमान कहते है। नहीं बेटे, ये कभी भी विश्वास मत करना। अगर हम चोर और बेईमान होते तो जो हमारी पिताजी की दी हुई संपत्ति थी, वह सारी -की सारी संपत्ति हम अपने गाँव का हाईस्कूल बनवाने के लिए क्यों दे जाते? इसके अलावा जो कुछ भी रह गया, वह सारा-का-सारा हमने गायत्री तपोभूमि बनाने में दान कर दिया। पैसा हमारे पास इतना था कि अगर हमने उसको संभाल कर रखा होता तो सात पीढ़ी तक काम आता। जितनी किताबें हमने लिखी है, उन सबका कापीराइट हमारे पास होता तो लाखों रुपये महीने की आमदनी होती। लेकिन हम तो यही वही रोटी खाते है जो माताजी के चौके में सबके लिए बनती है इस संस्था के कपड़े पहनते है। इनके अलावा कानी–कौड़ी भी हमारे पास नहीं है।

बच्चो! आपको यही कहना है कि इस तरह की बातों से आप बहकना मत। हाथी अपनी राह सड़क पर चला जाता है और कुत्ते भौंकते रहते है भौंकने के बाद में जब वे थक जाते है, तो बैठ जाते है हाथी पर कोई असर नहीं पड़ता।उसको जैसा चलना चाहिए, जिस दिशा में चलना चाहिए, उसी गंभीरता से, उसी तरीके से चलता रहता है कुत्तों के ऊपर कोई ध्यान नहीं देता। सूरज के ऊपर कोई धूल फेंकता है, तो वह धूल उसी के ऊपर गिरेगी। इससे क्या सूरज गंदा हो जाएगा? सूरज मैला हो जाएगा? सूरज बदनाम हो जाएगा? नहीं, सूरज बदनाम नहीं हो सकता। सूरज बदनाम होगा तो अपने कामों से बदनाम होगा, किसी के करने से बदनाम नहीं हो सकता। अगर हम कभी बदनाम होंगे तो अपने कृत्यों से बदनाम होंगे। और कोई दूसरा हमें बदनाम नहीं कर सकता। अगर कोई हमको बदनाम कर रहा हो, शाँतिकुँज को बदनाम कर रहा हो, तो आपको उसको ओर जरा भी निगाह उठाने की जरूरत नहीं है। उससे क्या हम लड़ाई-झगड़ा करें? नहीं, उससे लड़ाई झगड़ा क्या करना है? झूठ के पाँव कहाँ होते है? झूठ जिंदा रहता है क्या? झूठ जिंदा नहीं रहता। झूठ अगर जिंदा रहता तो चोर और उचक्के और उठाईगीर अब तक करोड़पति हो गए होते। लेकिन वे ऐसा थोड़े दिन ही कर पाते हैं, ज्यादा दिन तक इनका मायाजाल नहीं चल पाता।

आप सबसे हमारा निवेदन है कि मिशन को मजबूत बनाने के लिए मिशन को सही रखने के लिए सही आदमियों को अपने आप में इकट्ठा रखिए और उनका मनोबल बढ़ाते रहिए, हिम्मत बढ़ाते रहिए। किसी आदमी के विरोध करने से उलटा-सीधा बकने से आप कभी भी उसके चक्कर में मत आइए। आपको कोई बात तलाश करनी हो तो आप यहाँ आ सकते हैं। यहाँ के रजिस्टर खुले पड़े हैं। हमारी जिंदगी खुली हुई है। हमारी जिन्दगी खुली किताब के तरीके से है। इसमें कोई पन्ना ऐसा नहीं है जिसको कोई आदमी यह अंगुली उठा सके कि इसमें काला धब्बा लगा हुआ है। न हमारी जिंदगी में काला धब्बा लगा हुआ है और न हमारे विचारों पर काला धब्बा लगा है। जिस किसी को सबको हम चैलेंज करते हैं कि कोई भी आदमी यहाँ आए और देखे कि यहाँ कोई दाग-धब्बे की बात तो नहीं है। यहाँ दाग धब्बे की बात आपको कभी नहीं मिलेगी। हमारा इतना 76 वर्ष का जीवन हो गया है। इसे हमने कबीर की तरीके से रखा है।

“दास कबीर जतन से ओढ़ी, ज्यों-की त्यों धरि दीनी चदरिया।”

मित्रो! हमारा क्रिया -कृत्य ऐसा है जिसमें हमको भी घमंड है और आपको भी गर्व होना चाहिए, आपको भी प्रसन्न होना चाहिए, आपको भी संतोष होना चाहिए। संतोष और प्रसन्नता के साथ-साथ में आपको इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि आप किसी के भी बहकावे में न आवें। बल्कि पूरी हिम्मत के साथ में अपना पूरा जोश कायम रखते हुए अपने संगठन को कायम रखें। इस मिशन की गतिविधियों में ढील न आने दे वरन् और भी अच्छे तरीके से करें।

साथियो! अभी मैंने अपनी बात समाप्त कर दी थी, लेकिन कुछ बातें एकाएक याद आ गयी। वह यह कि किसी ने यह अफवाह फैला दी थी कि गुरु जी मर गए। किसी किसी ने तो मुण्डन भी करा लिया था। अभी हम मरे हैं क्या? नहीं बेटे, हम बिलकुल जिंदा है और अभी बहुत दिनों तक जिंदा रहेंगे। अगर हम मरेंगे भी तो पाँच गुने होकर काम करेंगे। अभी तो हमारा मरने का कोई सवाल ही नहीं। सन 2000 तक हम बराबर बने रहेंगे। जिस किसी ने यह अफवाह फैलाई हो और जिस किसी ने मुण्डन कराया हो, यह आप उसी से पूछना और उससे कहना कि गुरुजी को तो हम अपनी आँखों से देखकर आए हैं और उनका टेप सुनकर आये हैं। माता जी भी जिंदा हैं, हम भी जिंदा है, हमारा क्रिया कलाप भी जिंदा है और भी सब जिंदा है। किसी किसी ने यह अफवाह फैलाई है कि गुरुजी ने शाँतिकुँज अपने जमाई को दे दिया है। गायत्री परिवार अपने साढू को दे दिया। इन बेहूदी बातों के बारे में आप कभी विचार मत करना।

मित्रो! यह सार्वजनिक संस्था है। इसका एक ट्रस्ट बना हुआ है। सात आदमी इसके ट्रस्टी है। जब कभी एक आदमी नहीं रहेगा। तो उसके स्थान पर दूसरा आदमी नियुक्त हो जाएगा। किसी के बिना काम रुकेगा नहीं। यह कोई राजकुमार नहीं है, जो गद्दी पर लाकर के बैठाया जाए। यह कोई जमींदारी नहीं, दुकान नहीं, जिस पर लाकर किसी को बैठा दिया जाए। यह सार्वजनिक पारमार्थिक संस्था है। चार्टर अकाउंटेंट इसका हिसाब किताब चैक करते है। अगर हमारा उत्तराधिकारी कोई होगा तो वह समर्पित कार्यकर्ताओं की टीम ही होगी, व्यक्ति नहीं। गायत्री तपोभूमि की भी कोई होगी तो टीम होगी। वहाँ युगनिर्माण योजना ट्रस्ट है। इसका भी कोई उत्तराधिकारी हुआ तो टीम होगी। कोई व्यक्ति विशेष नहीं हो सकता। व्यक्ति विशेष के मरने से इस संस्था पर कोई असर नहीं पड़ता। व्यक्ति विशेष के चले जाने या न रहने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता, कोई बात नहीं बिगड़ती, क्योंकि इसको चलाने वाला भगवान है।

इसको चलाने वाले हमारे गुरु है। अब तक जितना काम बढ़ा है इसे आपने देखा है कि वह सौ गुना, हजार गुना हो चुका है। आगे भी हमारे रहते हुए भी और न रहते हुए भी यह काम हजार गुना होगा और सौगुना होगा- निरंतर बढ़ेगा सारे विश्व में बढ़ेगा। यह विश्वास दिलाना रह गया था, सो दुबारा टेप करा दिया।

गुरुपूर्णिमा का संदेश आपके लिए यही है आप सब लोग अच्छे रहें, सुखी रहें। आपके बच्चे सुखी रहें, आप फले-फूले आपकी उन्नति हो।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।

इन शब्दों के साथ हम अपनी बात समाप्त करते हैं।


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