रोज लेक्जेम्बर (Kahani)

July 1999

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जर्मनी की महान विचारक रोजा लेक्जेम्बर से लोगों ने कहा कि उनके विरुद्ध समाचारपत्रों में जो कुछ असहनीय, अनर्गल छापा गया है, वे उसका प्रतिरोध-प्रतिवाद क्यूँ नहीं करती। इस तरह चुप बैठे रहने से तो लोगों के मनों में तरह -तरह शंकाएँ -कुशंकाएँ घुमड़ रही है।

रोज लेक्जेम्बर ने बड़ी नम्रता से उत्तर दिया कि जब वे छोटी थीं तब उनके पिता ने एक बात कही थी जिसे वे आज तक नहीं भूलती कि जो अकारण दूसरों के दोष देखता है और उँगली उठाने का यत्न करता है उसे ज्ञात ही नहीं होता कि दूसरों की ओर तो एक उँगली ही उठाई गई है, तीन उँगली स्वयं उसकी ओर रहकर संकेत कर रही है। कि पहले तू अपनी ओर तो देख, कही ये गलतियाँ ,ये दोष तेरे में तो नहीं।

घटना सन् 1914 की है वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडीसन की प्रयोगशाला और कारखाना धू-धू कर जल रहा था। उसकी लपटें आकाश छूने के लिए होड़ कर रही थी। एडीसन उन लपटों में अपनी आशाओं को जलता देख रहा था। पास ही उसका पुत्र खड़ा था। इस भयंकर अग्निकांड को देखकर स्तब्ध रह गया।

एडीसन ने कहा बेटे देखते क्या हो दौड़कर अपनी माँ को बुला लाओ फिर ऐसा दृश्य जीवन में देखने को नहीं मिलेगा। कुछ देर बाद उनकी पत्नी भी आ गई। उसने कहा बीस लाख डॉलर के कीमती यंत्र और आपके द्वारा जीवनभर की गई मेहनत सब अग्नि को समर्पित हो गई। अब क्या होगा।

पहले तो ईश्वर को धन्यवाद दो कि हम सबकी भूलें भी इसमें जलकर राख हो गई अब नए सिरे से कार्य आरंभ करेंगे प्रत्येक हानि के गर्भ में कुछ लाभ के अंश तो छिपे ही रहते है।आविष्कारक फिर अपनी आविष्कार साधना में जुट गया और अंत में सफलताएँ ही हाथ लगी। अदम्य साहस, धैर्य अटूट ईश्वरविश्वास, लग्न और निष्ठा के सहारे जीवन जीने वाले हिम्मत कभी नहीं हारते।


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