रैदास और धनिक (Kahani)

July 1999

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक धनी व्यक्ति संत रैदास से बहुत प्रभावित था। उनके प्रति मन में विशेष अनुराग भी था। उनकी गरीबी देखकर उसने उन्हें चाँदी के पचास सिक्के दिए और बोला जरूरत हो तो और बताना। रैदास ने उस धनिक को बहुत समझाया कि वे मुफ्त में किसी का कुछ ग्रहण नहीं करते। किंतु धनिक अपने आग्रह पर डटा रहा और रुपये छोड़कर चला गया।

संत रैदास उठे और उन्होंने वह पोटली उठाकर छप्पर में खोंस दी। कुछ समय बीतने पर फिर वही साहूकार उनके पास आकर बोला-महाराज यदि वे रुपये खर्च हो गये हों तो और ले लीजिए। रैदास ने छप्पर की ओर इशारा किया। बोले - मेरी मेहनत से कमाया गया धन ही मेरे लिए पर्याप्त है। तुम्हारी अमानत को खर्च करने का अवसर ही नहीं आया। उसने देखा पोटली जैसी की-तैसी धरी है। रैदास ने हँसते हुए कहा- भाई सादगी से रहा जाए और संयम बरता जाए, तो ये दो हाथ इतना कमा लेते है कि कमी पड़ती ही नहीं और दूसरों की मदद लेने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles