ईसा की लोककथाएँ-नीतिकथाएँ सर्वप्रचलित है। एक गुलाम कहे जाने वाले व्यक्ति ईसा के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ एक घटनाक्रम से आया। ईसा जिस जमींदार का गुलाम था वह किसी दूसरे जमींदार से शर्त हार गया। अतः शर्त के अनुसार हारे हुए जमींदार को एक विचित्र सजा भुगतनी पड़ी। शराब के नशे में सजा भी बड़ी विचित्र सुनाई गई। समुद्र का पूरा पानी पीने की सजा शर्त हारने वाले जमींदार को मिली। भला आदमी के लिए यह कैसे संभव है? किंतु सनकियों और शराबियों के लिए तो कुछ भी कहकर अपनी प्रभुता स्थापित करने के घटनाक्रम इतिहास में कई है। ईसा ने अपने मालिक को परेशान देखकर कहा -यदि आज्ञा दें, तो मैं मुक्ति का उपाय बतलाता हूँ। जमींदार बोला कि यदि इससे यह पीछा छुड़ा दे तो ईसा को वह मुक्त कर देगा।
सायंकाल सभा आयोजित की गयी। सभी समुद्रतट पर पहुँचे। शर्त बतायी गयी व ईसा के मालिक को समुद्र में निरंतर गिर रही नदियों को थोड़े समय के लिए रोक दे तो हमारे मालिक निश्चित ही समुद्र का पानी आनन-फानन में पी जाएँगे। ईसा की यह चतुराई भरी बात सुनकर सभी ताकते रह गए। ईसा ने अपनी बात को नीतियुक्त बताते हुए समझाया-मानव जीवन भी इसी प्रकार है। जब तक मन की इच्छाओं की पूर्ति होती रहती है, तब तक वह आपाधापी में लगा रहता है। मन रूपी समुद्र में यदि वासनाओं की नदियों को न बहने दिया जाए तो वासनाएँ स्वतः तिरोहित हो जायेगी।
ईसा ने केवल मुक्त हो गए, वही से उनके अंदर के नीति कथाकार के रूप में उनका अवतार हुआ। आज विश्वभर में साहित्य में उनका महत्वपूर्ण स्थान है।